रावल रतनसिंह (1302–1303 ई.)
रावल रतन सिंह का इतिहास – रावल रतन सिंह समर सिंह का पुत्र था, रतन सिंह अपने पिता समर सिंह की मृत्यु के पश्चात मेवाड़ की गद्दी पर 1302 ईस्वी में बैठे। कुंभलगढ़ प्रशस्ति के वह एकलिंग महात्म्य के अनुसार कुंभकरण ने नेपाल में गुहिल वंश की स्थापना की। रावल रतन सिंह रावल शाखा के अंतिम राजा थे, रावल रतन सिंह की रानी का नाम पद्मिनी था। रतन सिंह का इतिहास वीरता और साहस के साथ भरा है, जो भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है।
रावल रतनसिंह व अलाउद्दीन –
रावल रतन सिंह के समकालीन दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था। रतन सिंह के चित्तौड़ का शासन मिलते हैं अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का सामना करना पड़ा।
चित्तौड़ घेराबंदी 1303, रानी पद्मिनी, अलाउद्दीन खिलजी, गोरा-बादल, मेवाड़ का इतिहास, प्रथम साका, गुहिल/गहलोत वंश-
कुछ विद्वानों ने चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का कारण रतनसिंह की अति सुंदर रानी पद्मिनी को माना है। यह बात एक काल्पनिक लगती है क्योंकी मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत ग्रंथ को 1540 में शेरशाह सूरी के समय में लिखी जबकि रावल रतन सिंह, रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी की यह घटना 1302 की है।
अलाउद्दीन खिलजी और चित्तौड़ का घेराव 1303
28 जनवरी 1303 को अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए दिल्ली से रवाना हुआ। लेखक अमीर खुसरो ने लिखा है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना का शाही शिविर गंभीरी और बेड़च नदियों के मध्य लगाया जो की चित्तौड़गढ़ किले के पास है। अलाउद्दीन खिलजी ने अपना स्वयं का शिविर चितौड़ी नामक पहाड़ी पर लगाया था, वहीं से अलाउद्दीन रोज चित्तौड़ के किले के घेरे के संबंध में निर्देश देता था। लगभग 8 माह तक शाही सेना को का घेरा किले के बाहर रहा।
गोरा–बादल का शौर्य और उद्धार योजना
8 माह के बाद किले के द्वारा खोले गए क्योंकि रसद सामग्री की कमी होने लगी, किले के द्वार पर रतन सिंह के सेनापति गोरा और बादल के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने केसरिया वस्त्र धारण कर चित्तौड़ दुर्ग के द्वार खोलकर शत्रु पर टूट पड़े और वीरगति को प्राप्त हुए, गोरा रानी पद्मिनी का चाचा तो बादल रानी पद्मिनी का भाई था। जब महल के बाहर चारों ओर सर्वनाश दिखाई दे रहा था तब महल के अंदर 1600 राजपूत रानियां ने रानी पद्मिनी के नेतृत्व में जौहर किया जो चित्तौड़ का प्रथम साका था।
अमीर खुसरो के अनुसार 26 अगस्त 1303 को अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर अधिकार हो गया जब अलाउद्दीन खिलजी महल के अंदर पहुंचा तो उसने देखा कि 1600 राजपूत रानियां ने जौहर कर लिया है उनके महल सुनने पड़े थे किले में चारों ओर आग और राख के ढेर दिखाई दे रहे थे।
यह सब देखकर अलाउद्दीन खिलजी आग बबूला हो उठा और चित्तौड़ की निर्दोष जनता का कत्लेआम शुरू कर दिया जिसमें उसने चित्तौड़ की 30000 आम जनता का कत्लेआम का आदेश दे दिया। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी कुछ दिनों तक चित्तौड़ में रुककर अपने पुत्र खिज्र खां को चित्तौड़ का शासन सौंपकर दिल्ली लौट गया तथा उसने चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद रख दिया।
खिज्र खां ने चित्तौड़ दुर्ग व आसपास के मंदिर तुड़वाकर किले पर पहुंचने के लिए गंभीरी नदी पर पुल बनवा दिया इस पुल में शिलालेख भी चुनवा दिए जो मेवाड़ इतिहास के लिए बड़े प्रमाणिक हैं।
चित्तौड़ किले की तलहटी में एक मकबरा बनवाया जिसमें लगे एक फारसी लेख में किसी तुगलक शाह बादशाह को ‘ईश्वर की छाया व संसार का रक्षक’ बताया गया है। जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर कुछ किया उसे समय उनके साथ अमीर खुसरो भी था अमीर खुसरो ने इस युद्ध का वर्णन अपने ग्रंथ तारीख- ए-अलाई (खजाईन-उल- फुतुह) में किया है।
रतन सिंह व अलाउद्दीन के संघर्ष का कारण –
- समर सिंह ने सी को मार्ग देने का कर वसूला।
- अलाउद्दीन की साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा।
- पद्मिनी का शौर्य।
- रतन सिंह का हिंदू राजा होना।
- चित्तौड़ दुर्ग का सामरिक महत्व होना।
- चित्तौड़ का दिल्ली से मालवा गुजरात मार्ग पर होना।
- मेवाड़ का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
- अलाउद्दीन की साम्राज्य-विस्तार नीति और पश्चिम-भारतीय मार्गों पर नियंत्रण की महत्वाकांक्षा।
चित्तौड़ दुर्ग का सामरिक महत्व और व्यापारिक मार्ग (दिल्ली–मालवा–गुजरात) पर स्थिति।
पद्मिनी/पद्मावती—कथा और इतिहास
पद्मावत ग्रंथ का लेखक मलिक मोहम्मद जायसी था इसका रचना काल 1540 ई शेरशाह सूरी के समय का है इस रचना में रानी का नाम पद्मावती बताया गया है जबकि अन्य ग्रंथ में उसका नाम पद्मिनी मिलता है।
पद्मावत (लगभग 1540) का काव्य-स्वरूप; ऐतिहासिकता पर मतभेद
नोट:- रानी पद्मिनी की इस कहानी का अबुल फजल, फरिश्ता, कर्नल जेम्स टॉड व मुहणौत नैणसी ने भी अपनी रचनाओं में थोड़े हेयर पर के साथ उल्लेख किया लेकिन कई सूर्यमल मिश्रण व डॉ गौरीशंकर हीरानंद ओझा सहित कुछ आधुनिक इतिहासकार मलिक मोहम्मद जायसी की इस कथा को ऐतिहासिक नहीं मानते हैं।