बप्पा रावल / कालभोज / (734 –753ई.)
बप्पा रावल की कहानी – कर्नल टॉड के अनुसार भीलों द्वारा नागादित्य की हत्या के बाद राजपूत को उसके 3 वर्ष से पुत्र बप्पा रावल के जीवन की चिंता सताने लगी , उसकी विधवा रानी ने अपने पुत्र बप्पा को वीर नगर की कमलावती के वंशज जो गोहिल/गुहिल राजवंश के कुल पुरोहित थे उन नागर जाति के ब्राह्मणों को सौंप दिया।
उन्होंने प्रारंभ में ही बप्पा को भंडार दुर्ग दतिया मध्य प्रदेश में रखा, उसे जगह को सुरक्षित ना मानकर बप्पा को प्रसार पारासर नामक स्थान पहुंचे इसी के पास त्रिकूट पर्वत की तलहटी में नागेंद्र नामक नगर वर्तमान जो नागदा में स्थित है उन्ही ब्राह्मण ने नागदा में बप्पा का लालन पालन किया।
बप्पा रावल और हारित ऋषि की कहानी –
बप्पा रावल नागदा में उन ब्राह्मणों की गाय चराता था, उन गायों में एक गाय सुबह सबसे ज्यादा दूध देती थी व शाम को दूध नहीं देती थी तब ब्राह्मणों को बप्पा पर संदेह हुआ, तब बप्पा ने जंगल में गाय की वास्तविकता जानी चाहिए तो देखा कि वह गाय जंगल में एक गुफा में जाकर बेल पत्तों के ढेर पर अपने दूध की धार छोड़ रही थी, बप्पा ने पत्तों को हटाया तो वहां एक शिवलिंग था वही शिवलिंग के पास ही समाधि लगाए हुए एक योगी थे। बप्पा ने उस योगी हारित ऋषि की सेवा करनी प्रारंभ कर दी इस प्रकार उसे एकलिंग जी के दर्शन हुए वह उसको हारित ऋषि से आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
मुहणोत नैणसी के अनुसार – बप्पा अपने बचपन में हारित ऋषि की गाये चराता था। इस सेवा से प्रसन्न होकर हारित ऋषि ने राष्ट्रसेनी देवी की आराधना से बप्पा के लिए राज्य मांगा देवी ने ऐसा हो का वरदान दिया इसी तरह हारित ऋषि ने भगवान महादेव का ध्यान किया जिससे एकलिंगी का लिंक प्रकट हुआ हारित ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की , जिससे प्रसन्न होकर हारित को वरदान मांगने को कहा। हारित ने महादेव से बप्पा के लिए मेवाड़ का राज्य मांगा।
जब हरित ऋषि स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने बप्पा रावल को बुलाया लेकिन बप्पा रावल ने आने में देर कर दी बप्पा उङते हुए विमान के निकट पहुंचने के लिए 10 हाथ शरीर में बढ़ गए। हारित ने बप्पा को मेवाड़ का राज्य तो वरदान में दे ही दिया परंतु यह बप्पा को हमेशा के लिए अमर करना चाहते थे इसलिए उसने अपने मुंह का पान बप्पा को देना चाहा लेकिन मुंह में ना गिरकर बप्पा के पैरों में जा गिरा हारित ऋषि ने कहा कि यह पान तुम्हारे मुंह में गिरता तो तुम सदैव के लिए अमर हो जाते लेकिन फिर भी यह पान तुम्हारे पैरों में पड़ा है तो तुम्हारा अधिकार से मेवाड़ राज्य कभी नहीं हटेगा हारित ऋषि ने बप्पा को एक स्थान बताया जहां उस खजाना 15 करोड़ मुहरें मिलेगी और उस खजाना की सहायता से सैनिक व्यवस्था करके मेवाड़ राज्य विजीत कर लेने का आशीर्वाद दिया
बप्पा रावल की उपाधि –
- कालभोज
- हिंदू सूरज
- राजगुरु
- चक्कवै ( चारों दिशाओं को जीतने वाला)
बप्पा रावल के संबंध में विद्वानों के मत –
- श्यामलदास ने अपनी पुस्तक वीर विनोद में बप्पा रावल को सील का पुत्र महेंद्र का है बप्पा किसी राजा का नाम नहीं अपितु किताब था
- कर्नल जेम्स टॉड ने बप्पा रावल का वास्तविक नाम शील बताया है ।
- प्रोफेसर रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा रावल का नाम खुम्माण बताया है।
- गौरी शंकर हीरानंद ओझा ने बताया कि कालभोज की उपाधि बप्पा रावल थी।
- सी वी वैद्य ने बप्पा की तुलना चार्ल्स मार्टेल से की है जो एक फ्रांसीसी सेनापति था जिसने यूरोप में सर्वप्रथम मुसलमानों को परास्त किया था।
इन सब विद्वानों में डॉक्टर गौरी शंकर हीरानंद ओझा का मत सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता है
बप्पा रावल का वास्तविक समय – जिस प्रकार बप्पा रावल के नाम को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं इस प्रकार बप्पा रावल के समय को लेकर भी विद्वानों में मतभेद हैं।
कवि श्यामल दास ने बप्पा रावल द्वारा मौर्यो से चित्तौड़ विजित करने का काल 734 ई. तथा डॉ. ओझा ने चित्तौड़ को जीतने का काल 713 ई. के बाद मानकर बप्पा का समय 734 से 754 ई बताया है
बप्पा रावल ने हारित ऋषि के आशिर्वाद से 734 ई. में चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया और राजा मान मौर्य को हराकर चित्तौड़ में गुहिल वंश के साम्राज्य की स्थापना की।
बप्पा रावल ने कैलाशपुरी उदयपुर में एकलिंग नाथ मंदिर का निर्माण कराया। मेवाड़ के शासक एकलिंग जी को मेवाड़ का वास्तविक शासक मानते हैं एकलिंग जी गुहिल वंश के कुल देवता हैं।
- बप्पा रावल ने नागदा में सहस्त्रबाहु मंदिर बनवाया।
- बप्पा रावल ने नागदा को अपनी राजधानी बनाया।
- बप्पा रावल ने सोने के सिक्के चलवाए जिनमें एक तरफ त्रिशूल का चिन्ह दूसरी तरफ सूर्य अंकित था जो 115 ग्रेन का था।
- बप्पा रावल ने खुरासन पर विजय प्राप्त की यह उसका अंतिम अभियान था।
- बप्पा रावल की मृत्यु नागदा में हुई बप्पा रावल की समाधि एकलिंग जी से कुछ दूरी पर स्थित नागदा में है।
- 753 ईस्वी में पापा रावण ने संन्यास लिया था इसका स्रोत एकलिंग प्रशस्ति 1488 ई. है।
- गौरी शंकर हीरानंद ओझा के शब्दों में बप्पा स्वतंत्र प्रतापी और एक विशाल राज्य का स्वामी था।
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