गोगाजी का जीवन परिचय
- उपनाम – सांपो के देवता / जाहरपीर / जीवित पीर / गोगापीर / नागराज भी कहते हैं।
- जीवनकाल – 946 ई. से 1024 ई.
- वंश – नागवंशी चौहान
- गोगाजी का जन्म – गोगा जी का जन्म ददरेवा ( चुरू ) में 1003 विक्रम संवत ( 946 ई. ) में भाद्रपद कृष्ण नवमी को हुआ था।
- पिता – जेवर ( जीवराज चौहान ) गोगाजी के पिता थे
- माता – बाछल गोगाजी की माता थी।
- पत्नी – केलम दे ( कोलुमंड के बुडोजी राठौड़ की पुत्री थी ) गोगाजी की पत्नी थी।
- गोगाजी के पुत्र – केसरिया कुंवर जी ( इन्हे भी लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं। )
- गोगाजी के पौत्र – सामंत चौहान
- गोगाजी के गुरु – गोरखनाथ
- वाहन – नीला घोड़ा ( गोगा बापा )
- गोगाजी की ध्वजा – निसाण
- गोगाजी का प्रतीक चिन्ह – भाला लिए घुड़सवार व सर्प
- गोगाजी के सहयोगी – भज्जू कोतवाल , जवाहर पांड्या
- उपाधि – जाहर वीर, गोगा पीर
- गोगाजी रसावला के लेखक – बिठू मेहा
- गोगाजी के बारे में कहावत – गांव – गांव खेजड़ी, गांव – गांव गोगा
गोगा जी जन्म कथा और बाल्यकाल –
- इनकी माता बाछल को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद गुरु गोरखनाथ द्वारा दिया सुगन्धित पदार्थ गुगल से हुआ था।
- गोगा जी को गुरु गोरखनाथ व महमूद गजनवी के समकालीन माना जाता है।
गोरखनाथ ने उन्हें नीले घोड़े पर सवार नागदेवता के रूप में जन्म लेने वाले पुत्र का वरदान दिया।
गोगाजी का जन्म नागपंचमी के दिन हुआ था, इसी कारण उन्हें नागों का स्वामी भी कहा जाता है।गोगा जी का पत्थर पर उत्कीर्ण सर्प मूर्ति युक्त पूजास्थल / थान प्राय: गांवों मे खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है।
हिन्दू इन्हें नागराज तो मुस्लिम इन्हें गोगापीर के रूप में पूजते हैं।
गोगा के गीत छावली कहलाते हैं।
गोगा जी का मंदिर मेड़ी कहलाता हैं।
गोगा जी की आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं।
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युवावस्था और पराक्रम
गोगा जी बचपन से ही अत्यंत वीर, साहसी और न्यायप्रिय थे।
वे नागों की भाषा समझते थे और उनकी रक्षा करते थे।
उन्होंने अपने क्षेत्र में धर्म, न्याय और साहस का परिचय दिया।
गोगा जी ने अपने चाचा से युद्ध कर ददरेवा का राज्य पुनः प्राप्त किया।
प्रमुख स्थल
गोगामेड़ी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) – मुख्य समाधि स्थल
ददरेवा, चुरू – जन्मस्थल
उत्तर भारत के गाँवों में गोगाजी के चबूतरे (थान)
गोगाजी का मुख्य मंदिर –
ददरेवा चुरू , यह स्थान शीर्षमेड़ी कहलाता है , युद्ध में लड़ते वक्त गोगा जी का सिर यहीं गिरा था , यह गोगाजी का जन्म स्थान भी है। यहां पर भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला भरता है।
गोगामेड़ी –
यह हनुमानगढ़ में है , यह स्थान धुरमेड़ी कहलाता है। यही पर लड़ते हुए गोगाजी का धड़ गिरा था। गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था तथा वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी ने बनवाया था। गोगामेड़ी की बनावट मकबरेनुमा है ड्योढी पर बिस्मिलाह अंकित है। यही पर गोरख तालाब बना है। गोगामेड़ी में एक हिन्दू और एक मुस्लिम पुजारी ( चोयल मुसलमान ) रहता है, गोगाजी का मेला हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
गोगाजी की ओल्डी – सांचौर ( जालौर )
गोगाजी ने महमूद गजनवी के साथ 1024 ई. में युद्ध किया था। महमूद गजनवी ने गोगा जी को जाहरपीर की उपाधि दी अर्थात् साक्षात देवता के समान प्रकट होने वाला कहा था। इस युद्ध का वर्णन कायम खां रासौ में किया हैं। हिन्दू इन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं।
सर्प दंश के उपचार में गोगा जी की आराधना की जाती है। इनके गुरु गोरखनाथ ने ही इन्हें सांपों की सिद्धि प्रदान की थी।
नोट:– रणकपुर प्रशस्ति व दयालदास री ख्यात के अनुसार गोगाजी ने गायों को बचाने के लिए अपने मोसेरे भाइयों अर्जन व सुर्जन के विरुद्ध भीषण युद्ध किया व वीरगति को प्राप्त हुए। इसलिए योद्धा के रूप में इनकी पूजा होती है।
गोगा राखड़ी – हल जोतने से पूर्व हल व हाली के 9 गाठों की गोगा राखड़ी बांधी जाती है, रक्षाबंधन के दिन बांधी गई राखियां गोगानवमी के दिन खोले जाने की परंपरा है।
गोगाजी की प्रथम शादी उत्तरप्रदेश में हुई थी, गोगाजी के मेले में राजस्थान के बाद सर्वाधिक अनुयायी उत्तरप्रदेश से ही आते है, जो पीले वस्त्र पहन कर आते हैं , जिन्हें पूर्बिया कहते हैं।
कायमसिंह – गोगाजी की 17 वीं पीढ़ी में कायमसिंह चौहान हुये। जिन्हें मुसलमान बनाया गया, जो कायम खां बन गए , इनके ही वंशज कायमखानी मुसलमान हैं। कायमखानी आज भी गोगाजी को अपना पूर्वज मानते है।
लोक साहित्य और भजन
गोगा जी के अनेक लोकगीत, पर्चे, भजन और गाथाएँ प्रसिद्ध हैं जैसे:
“गोगा जी को पर्चा आया…”
“नीले घोड़े वाले राजा…”
“जय हो जाहरवीर की…”
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गोगाजी के विवाह के समय ही उनकी पत्नी केलम दे को एक सर्प ने डस लिया जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने आग पर कढ़ाई में तेल डालकर अपनी सिद्धि का प्रयोग करते हुए मंत्रों का उच्चारण करना शुरू किया जिससे संसार के सभी सांप गर्म तेल की कढ़ाई में आकर गिरने लगे, तब सांपो के रक्षक तक्षक नाग ने गोगाजी से माफी मांगी , केलम दे का जहर चूसकर पुनः जीवित किया और गोगाजी को सांपो के देवता के रूप में पूजे जाने का आशीर्वाद दिया।
गोगाजी की मृत्यु के संबध में मत है कि कहा जाता है कि इनके मोसेरे भाइयों अर्जन व सुर्जन ने भूमि बंटवारे को लेकर नाराज होकर इनके इलाके की सारी गाये घेर कर मोहमद गजनवी को दे दी थी। जिस पर गोगाजी ने अपने 47 पुत्रों , 60 भतीजों व 1100 सैनिकों के साथ सतलज नदी पार कर मोहमद गजनवी से युद्ध कर गायों को मुक्त करवाया लेकिन वापस आने पर इनके चचेरे भाइयों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुये।