वीर तेजाजी | वीर तेजाजी की कथा

  • उपनाम – नागों के देवता / गायों का मुक्तिदाता / काला व बाला के देवता / अजमेर के देवता / धौलिया वीर / खेती के उपकारक देवता 
  • जीवनकाल – 1073 ई. से 1103 ई. 
  • तेजाजी का जन्म – खड़नाल (नागौर) में 29 जनवरी, 1073 ई. को माघ शुक्ल चतुर्दशी को हुआ था।
  • पिता – ताहड़ जी तेजाजी के पिता थे।
  • माता – राजकंवर थकाण तेजाजी की माता थी।
  • पत्नी – पैमल दे ( पनेर गांव, अजमेर के रायमल जी झांझर की पुत्री थी ) तेजाजी की पत्नी थी।
  • घोड़ी – लीलण ( सिणगारी ) तेजाजी की घोड़ी।
  • प्रतीक – तलवार धारी अश्वारोही , जीभ पर सर्पदंश करती हुई मूर्ति।
  • तेजादशमी – भाद्रपद शुक्ल दशमी

तेजाजी के चबूतरे को थान व पुजारी को घोड़ला ( जो सांपों का जहर चूसते हैं ) कहा जाता हैं।
तेजाजी का मेला – परबतसर ( नागौर ) यहां भाद्रपद शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक मेला भरता है। इसी समय यहां विशाल पशु मेला भी लगता है।

तेजाजी सहरिया जनजाति के भी आराध्य देव हैं इनके नाम पर सीताबाड़ी ( बांरा ) में भी तेजाजी का मेला भरता है।

नोट – प्रारम्भ में तेजाजी का मुख्य मंदिर सुरसुरा (अजमेर) में था। जिसकी मूर्ति को 1734 ई. में जोधपुर महाराजा अभयसिंह के काल में परबतसर के हाकिम परबतसर ले आया तब से तेजाजी का प्रमुख पूजा स्थल परबतसर ही है।

तेजा जी का इतिहास

गौरक्षार्थ बलिदान – तेजाजी ने भी गौ रक्षार्थ करते हुए घायलावस्था में अपने वचन के कारण अपनी जीभ को सांप से डसवाया। जिससे उनकी मृत्यु हो गई। तेजाजी महाराज की मृत्यु का समाचार लीलण ने उनके घर पहुंचाया। ऐसी मान्यता है की सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति यदि दांये पैर में तेजाजी की तांती (डोरी) बांध ले तो विष नही चढ़ता।

नोट – सर्पदंश के इलाज के लिए सबसे पहले इन्होंने ही गोबर की राख व गौमूत्र के प्रयोग की शुरूआत की थी।

  • तेजाजी की की धर्मपत्नी पेमल सती हुई थी।

अजमेर के हर गांव में तेजाजी का मंदिर मिल जाता है। तेजाजी की पूजा मुख्यत: मारवाड़, अजमेर, किशनगढ़, में जाट जाति द्वारा की जाती है।

  • सैन्दरिया ( ब्यावर ) – में नाग ने तेजाजी को डसा।
  • सुरसुरा ( अजमेर ) – में तेजाजी की मृत्यु 23 अगस्त 1103 ई. भाद्रपद शुक्ल दशमी को हुई।
  • दुगारी गांव ( बूंदी ) –  तेजाजी की कर्मस्थली रही है। 
  • तेजा चौक – ब्यावर यहां तेजाजी का सबसे प्राचीन मंदिर ( थान ) है।
  • अन्य मंदिर – सुरसुरा ( अजमेर ) , सैन्दरिया ( अजमेर ) , भावता ( अजमेर )
  • तेजाजी पर डाक टिकट – 2011 में 5 रूपये का जारी हुआ था। 
वीर तेजाजी महाराज की कथा – तेजाजी का विवाह बचपन में ही हो गया था एक बार तेजाजी हल लेकर खेत में गये हुये थे , इनकी भाभी खाना लेकर देर से खेत में गयी , तेजाजी ने पूछा की भाभी आज खेत मे खाना लेकर देर से कैसे आई हो तब इनकी भाभी ने ताना देकर कहा की तुम्हारी पत्नी तो अपने बाप के घर बैठी है और मुझे कह रहे हो की इतनी देरी कैसे हुई। जिस पर तेजाजी गुस्सा हो गये और बिना खाना खाये ही खेत में से घर आ गये। अपनी घोड़ी लीलण लेकर अपने ससुराल पेनर रवाना  हुये , रवाना होते ही अपशगुन हुआ तो ज्योतिषी से पूछा तो बताया की इस यात्रा में तेजाजी की मृत्यु होगी। तेजाजी की मां ने रोकना चाहा पर तेजाजी नहीं रुके। ससुराल पहुंचे तब इनकी सास गाय का दूध निकाल रही थी। तेजाजी को देखकर गाय ने दूध की बाल्टी को लात मार दी। सास ने बिना देखे तेजाजी को गालियां निकाल दी , जिससे नाराज होकर तेजाजी वापिस रवाना हुये , लेकिन तेजाजी की पत्नी पेमल ने इन्हें पहचान लिया , तेजाजी को रोकने के लिए पेमल ने अपनी सहेली लाछा गुजरी को भेजा,  तो तेजाजी ने अपने ससुराल जाने से मना कर दिया। तब लाछा गुजरी के कहने पर रात को उसके घर रुके। उसी रात लाछा गुजरी की गायों की मेर के मीणा चुरा ले गये। तब लाछा गुजरी की प्रार्थना पर तेजाजी गायों को छुड़ाने चले गये और मंडावरिया ( अजमेर ) में भयंकर युद्ध हुआ और तेजाजी गाये छुड़ाकर ले आये , घर आये तो पता चला एक गाय का बछड़ा वही रह गया। इस पर तेजाजी पुनः युद्ध स्थल की ओर  गये। रास्ते में जंगल में आग में जलता नाग दिखा तो अग्नि से बाहर निकाल कर नाग की जान बचाई , जिससे नाग नाराज हो गया क्योंकि नागराज तपस्या कर रहा था, और तेजाजी को डसना चाहा तब तेजाजी ने उसे वापिस आने का वचन दिया। इस बार युद्ध में तेजाजी गंभीर घायल हो गए , बछड़  को बचाकर लाछा गुजरी के घर ले आये। और वचनानुसार वापिस नाग के पास पहुंचे , नाग तेजाजी का इंतजार कर रहा था ,  तेजाजी के शरीर पर घाव देखकर नाग ने डसने से मना कर दिया। तेजाजी ने कहा वादानुसार अपना एक अंग सुरक्षित लाया हूं ये कहकर तेजाजी ने नाग को अपनी जीभ पर डसने को कहा। नाग ने द्रवित होकर भविष्यवाणी की, कि जहां कहीं।

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