वीर तेजाजी महाराज का इतिहास
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| नाम | लोकदेवता वीर तेजाजी महाराज |
| जन्म | 29 जनवरी 1074 ईस्वी (माघ शुक्ल सप्तमी) |
| जन्मस्थान | खरनाल गाँव, नागौर (राजस्थान) |
| पिता का नाम | ताहड़ जी (धोलीया जाट) |
| माता का नाम | राजकंवर थकाण |
| पत्नी | पेमल दे (पेमली) |
| उपाधि | नागों के देवता, गौ-रक्षक वीर |
| विशेषताएँ | पशु रक्षा और गौ रक्षा के लिए बलिदान – वचन निभाने के लिए जीवन समर्पित – नागों के देवता के रूप में पूजा |
| जीवन कथा | तेजाजी ने अपनी प्रतिज्ञा निभाने के लिए विषधर नाग के डंक को स्वेच्छा से स्वीकार किया और लोकदेवता बने |
| समाधि स्थल | सुरसुरा, अजमेर ज़िला (राजस्थान) |
| पूजा-पाठ | ग्रामीण क्षेत्र में तेजाजी को सर्पदंश से मुक्ति दिलाने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है |
| मेला | तेजा दशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) पर सुरसुरा व अन्य स्थानों पर मेला भरता है |
- उपनाम – नागों के देवता / गायों का मुक्तिदाता / काला व बाला के देवता / अजमेर के देवता / धौलिया वीर / खेती के उपकारक देवता
- जीवनकाल – 1073 ई. से 1103 ई.
- तेजाजी का जन्म – खड़नाल (नागौर) में 29 जनवरी, 1073 ई. को माघ शुक्ल चतुर्दशी को हुआ था।
- पिता – ताहड़ जी तेजाजी के पिता थे।
- माता – राजकंवर थकाण तेजाजी की माता थी।
- पत्नी – पैमल दे ( पनेर गांव, अजमेर के रायमल जी झांझर की पुत्री थी ) तेजाजी की पत्नी थी।
- घोड़ी – लीलण ( सिणगारी ) तेजाजी की घोड़ी।
- प्रतीक – तलवार धारी अश्वारोही , जीभ पर सर्पदंश करती हुई मूर्ति।
- तेजादशमी – भाद्रपद शुक्ल दशमी
| तेजाजी के चबूतरे को थान व पुजारी को घोड़ला ( जो सांपों का जहर चूसते हैं ) कहा जाता हैं। |
तेजाजी का मेला –
तेजाजी का गौरक्षार्थ बलिदान –
- तेजाजी की की धर्मपत्नी पेमल सती हुई थी।
तेजाजी के मुख्य मंदिर
- सैन्दरिया ( ब्यावर ) – में नाग ने तेजाजी को डसा।
- सुरसुरा ( अजमेर ) – में तेजाजी की मृत्यु 23 अगस्त 1103 ई. भाद्रपद शुक्ल दशमी को हुई।
- दुगारी गांव ( बूंदी ) – तेजाजी की कर्मस्थली रही है।
- तेजा चौक – ब्यावर यहां तेजाजी का सबसे प्राचीन मंदिर ( थान ) है।
- अन्य मंदिर – सुरसुरा ( अजमेर ) , सैन्दरिया ( अजमेर ) , भावता ( अजमेर )
- तेजाजी पर डाक टिकट – 2011 में 5 रूपये का जारी हुआ था।
वीर तेजाजी महाराज की कथा –
तेजाजी का विवाह बचपन में ही हो गया था एक बार तेजाजी हल लेकर खेत में गये हुये थे , इनकी भाभी खाना लेकर देर से खेत में गयी , तेजाजी ने पूछा की भाभी आज खेत मे खाना लेकर देर से कैसे आई हो तब इनकी भाभी ने ताना देकर कहा की तुम्हारी पत्नी तो अपने बाप के घर बैठी है और मुझे कह रहे हो की इतनी देरी कैसे हुई। जिस पर तेजाजी गुस्सा हो गये और बिना खाना खाये ही खेत में से घर आ गये।
अपनी घोड़ी लीलण लेकर अपने ससुराल पेनर रवाना हुये , रवाना होते ही अपशगुन हुआ तो ज्योतिषी से पूछा तो बताया की इस यात्रा में तेजाजी की मृत्यु होगी। तेजाजी की मां ने रोकना चाहा पर तेजाजी नहीं रुके। ससुराल पहुंचे तब इनकी सास गाय का दूध निकाल रही थी। तेजाजी को देखकर गाय ने दूध की बाल्टी को लात मार दी।
सास ने बिना देखे तेजाजी को गालियां निकाल दी , जिससे नाराज होकर तेजाजी वापिस रवाना हुये , लेकिन तेजाजी की पत्नी पेमल ने इन्हें पहचान लिया , तेजाजी को रोकने के लिए पेमल ने अपनी सहेली लाछा गुजरी को भेजा, तो तेजाजी ने अपने ससुराल जाने से मना कर दिया। तब लाछा गुजरी के कहने पर रात को उसके घर रुके।
उसी रात लाछा गुजरी की गायों की मेर के मीणा चुरा ले गये। तब लाछा गुजरी की प्रार्थना पर तेजाजी गायों को छुड़ाने चले गये और मंडावरिया ( अजमेर ) में भयंकर युद्ध हुआ और तेजाजी गाये छुड़ाकर ले आये , घर आये तो पता चला एक गाय का बछड़ा वही रह गया। इस पर तेजाजी पुनः युद्ध स्थल की ओर गये। रास्ते में जंगल में आग में जलता नाग दिखा तो अग्नि से बाहर निकाल कर नाग की जान बचाई , जिससे नाग नाराज हो गया क्योंकि नागराज तपस्या कर रहा था, और तेजाजी को डसना चाहा तब तेजाजी ने उसे वापिस आने का वचन दिया।
इस बार युद्ध में तेजाजी गंभीर घायल हो गए , बछड़ को बचाकर लाछा गुजरी के घर ले आये। और वचनानुसार वापिस नाग के पास पहुंचे , नाग तेजाजी का इंतजार कर रहा था , तेजाजी के शरीर पर घाव देखकर नाग ने डसने से मना कर दिया। तेजाजी ने कहा वादानुसार अपना एक अंग सुरक्षित लाया हूं ये कहकर तेजाजी ने नाग को अपनी जीभ पर डसने को कहा। नाग ने द्रवित होकर भविष्यवाणी की, कि जहां कहीं।