- उपनाम – ऊंटो के देवता / प्लेग रक्षक / गौरक्षक / लक्ष्मण का अवतार
- जीवनकाल – 1239 से 1276 ई.
- पाबूजी का जन्म – इनका जन्म कोलू ( फलौदी , जोधपुर ) में 1239 ई. में चैत्र अमावस्या को हुआ था।
नोट:– इतिहासकार मुहणौत नैणसी व महाकवि मोडजी आशिया के अनुसार पाबूजी का जन्म बाड़मेर से आठ कोस आगे खारी खावड़ के पास जूना नामक ग्राम में एक अप्सरा के गर्भ से हुआ था।
- पिता – धांधल देव राठौड़ पाबूजी के पिता थे।( राव आसथान के पुत्र , राव धुहड़ के भाई ) जो राव सीहा के वंशज थे। इस प्रकार पाबूजी मारवाड़ के राठौड़ राजवंश से संबंधित थे।
- माता – कमला दे ( अप्सरा थी ) पाबू जी की माता।
- बहन – सोहन बाई / पेमदे ( जायल शासक जींदराव खींची से विवाह हुआ था।
- बड़े भाई – बूढो जी ( इनका विवाह गिरनार गुजरात की केशर कंवर से हुआ था )
- पत्नी – सुपियार दे / फूलम दे ( सुर्पणखा की अवतार ) पाबूजी की पत्नी थी। जो अमरकोट ( पाकिस्तान ) के शासक सूरजमल सोढ़ा की पुत्री थी।
- गुरु – समरथ भारती पाबूजी के गुरू थे।
- घोड़ी – केसर कालमी , पाबूजी राठौड़ को यह घोड़ी देवल चारणी द्वारा दी गई थी।
- प्रतीक चिन्ह – भाला लिये अश्वारोही , बायी ओर झुकी पाग
- पाबूजी का मुख्य मंदिर – कोलूमंड ( जोधपुर ) यहां का पुजारी राठौड़ होता है।
- पाबूजी का मेला – पाबूजी राठौड़ का मेला कोलुमंड में प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को भरता है।
पाबूजी री फड़ – ऊँट के स्वस्थ होने पर पाबूजी की फड़ का वाचन नायक जाति के भोपे रावण हत्थे वाद्ययंत्र के साथ करते हैं , यह राजस्थान की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है। सभी लोकदेवताओं की फड़ो में सबसे छोटी फड़ मानी जाती हैं।
पाबूजी के पवाड़े – पाबूजी की वीरता से संबंधित गाथा गीत माठ वाद्ययंत्र के साथ रेबारी/ थोरी जाति के द्वारा गाये जाते हैं।
मेहर जाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है जबकि हिन्दू इन्हें लक्ष्मण का अवतार मानते हैं।
मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही है। ऊँट अपनी भतीजी केलम दे को दहेज में देने के लिए लाये थे। राइका/रेबारी जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है।
थोरी जाति के आराध्य देव है – इन्होंने थोरी जाति को संरक्षण दिया था , आना बघेला जैसे शक्तिशाली शासक के भगोड़े सात थोरी भाइयों को पाबूजी ने आश्रय देकर उनकी रक्षा की।
पाबूजी की जीवनी – 1276 ई. में पाबूजी का विवाह हो रहा था तब इन्हें इनके प्रतिद्वंद्वी बहनोई जींदराव खींची द्वारा देवल चारणी की गायें ले जाने का समाचार मिला , तो पाबूजी बीच फेरों ( साढ़े तीन फेरों ) में से उठकर देवल चारणी की घोड़ी केसर कालमी लेकर रवाना हो गये , जोधपुर के देचू गाँव में अपने बहनोई जायल नरेश जींदराव खींची से देवल चारणी गायों को छुड़ाने हुए पाबूजी अपने साथियों के साथ वीरगति को प्राप्त हो गये।
इस युद्ध का वर्णन नैणसी री ख्यात में है। पाबूजी की पत्नी फूलमदे पाबूजी के वस्त्रों के साथ सती हो गयी।
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थाली नृत्य – पाबूजी के भक्तों द्वारा थाली नृत्य किया जाता है।
पाबूधणी री रचना – थोरी जाति द्वारा सांरगी पर किया जाने वाला पाबूजी का यशोगान।
पाबूजी के सहयोगी – चांदा नायक , डेमा नायक , हरमल रेबारी।
पाबूजी नारी सम्मान, गौरक्षा, शरणागत रक्षा और वीरता के लिये प्रसिद्ध है।
पाबूजी के भतीजे रूपनाथ जी ने जींदराव खींची को मारकर पाबूजी की हत्या का बदला लिया।
मुगलकालीन पाटन शासक मिर्जा खां , जो बड़े पैमाने पर गौ हत्या में लिप्त रहा , उनके विरुद्ध पाबूजी ने युद्ध किया तथा गौ हत्या रूकवाई।
जींदराव खींची – पाबूजी का बहनोई व जायल का शासक था। जींदराव खींची ने देवल चारणी से उसकी काले रंग की केसर कालमी घोड़ी मांगी थी पर देवल चारणी ने मना कर दिया था, देवल चारणी ने बाद में यही घोड़ी पाबूजी को देते समय अपनी गायों की रक्षा का वचन लिया था, इसी कारण जींदराव खींची पाबूजी और देवल चारणी से दुश्मनी रखने लगा।
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पाबूजी से संबंधित साहित्य –
- पाबूजी रा छंद – बीठू मेहा
- पाबूजी रा दोहा – लघराज
- पाबू प्रकाश – आशिया मोडजी ( पाबूजी की जीवनी )
- पाबू सोरठा – रामनाथ कविया
- पाबू जी री बात – लक्ष्मी कुमारी चुंडावत
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