देवनारायण जी
- उपनाम – आयुर्वेद के ज्ञाता / राज्य क्रांति के जनक / विष्णु के अवतार / गुर्जर जाति के आराध्य देव
- जीवनकाल –1243 से 1290 ई.
- देवनारायण जी का जन्म – इनका जन्म गौठ दड़ावत ( आसींद, भीलवाड़ा ) के पास मालासेरी के जंगलों में 1243 ई. में माघ शुक्ल षष्ठी को हुआ था।
- पिता – सवाईभोज / भोजा देवनारायण जी के पिता थे।
- माता – सेढू खटाणी ( देवास , मध्यप्रदेश ) देवनारायण जी की माता थी।
- वंश: गुर्जर (नागवंशी वंश)
- वास्तविक नाम – उदय सिंह / उदय जी देवनारायण जी वास्तविक नाम था।
- पत्नी – पीपल दे ( धार नरेश जयसिंह की पुत्री ) देवनारायण जी की पत्नी थी।
- संतान – बाला व बाली
- घोड़ा – लीलागर
- अवतार: भगवान विष्णु के 24वें अवतार
उद्देश्य: अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना
देवनारायण जी की बाल लीलाएँ-
देवनारायण जी बचपन से ही चमत्कारी शक्तियों से युक्त थे। उनके जन्म के समय आकाश से पुष्पवर्षा हुई, और नागों ने उनकी रक्षा की।
उन्होंने बचपन में ही कई अन्यायियों को पराजित किया और अपने पूर्वजों की मृत्यु का रहस्य जानकर बदला लेने का संकल्प लिया।
देवनारायण जी का संदेश
देवनारायण जी ने केवल युद्ध नहीं किया, बल्कि समाज में न्याय, एकता, भाईचारे और धर्म की स्थापना की। उन्होंने पशुबलि, अन्याय, भेदभाव आदि का विरोध किया और एक समतामूलक समाज की कल्पना की।
भक्ति परंपरा और पूजा
देव नारायण जी के भजन और पर्चे (चमत्कारी कथाएँ) पूरे राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात में प्रसिद्ध हैं।
देवरा (मंदिर) बनाकर लोग पूजा करते हैं।
भोपों के द्वारा फड़ (चित्रयुक्त कथा-पट) के माध्यम से देव नारायण की गाथा गाई जाती है।
इनकी कथा लोकसंगीत और लोकनाट्य के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आई है।
देवनारायण जी मुख्य मंदिर –
सवाई भोज का मंदिर – आसींद (भीलवाड़ा) यहां मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को लगता है। देवनारायण जी के मंदिरों व देवरों में उनकी प्रतिमा के साथ ईंटों की पूजा की जाती है। इनके मेले के दिन गुर्जर जाति के लोग दूध नहीं बेचते/ दही नहीं जमाते हैं। मंदिर में नीम के पत्तों का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं।
लोकदेवता देवनारायण जी की कहानी –
इनके पिता इनके जन्म से पहले ही भिनाय के शासक राव दुर्जन से युद्ध करते हुये अपने 23 भाइयों सहित मारे गये थे, तब इनकी माता सेढू इन्हें लेकर अपने पीहर मालवा चली थी , इनका लालन पालन ननिहाल में ही हुआ था। 10 वर्ष की अल्पायु में वे पिता की मृत्यु का बदला लेने राजस्थान की ओर लौट रहे थे तो मार्ग में धारा नगरी में जयसिंह देव परमार की पुत्री पीपल दे से इन्होंने विवाह किया।
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प्रमुख स्थल
देव नारायण जी का मुख्य मंदिर – मालासेरी डूंगरी, जिला टोंक, राजस्थान।
इस मंदिर में हर वर्ष पंचमी मेले में लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
राजा सवाई भोज और बगड़ावत भाइयों की गाथा –
देवजी ने अपने पिता व भाईयों की मृत्यु का बदला लेने के लिए लम्बी लड़ाईयां लड़ी व दुर्जनशाल का वध किया। देवजी और बगड़ावतो से सम्बन्धित इन्हीं गाथाओं का वर्णन बगड़ावत महाभारत कहलाता है।
राजा सवाई भोज और उनके 23 भाई (बगड़ावत) धर्मात्मा, वीर और प्रजा के रक्षक थे। वे नागवंशी गुर्जर थे। एक बार एक कुटिया में रह रही तपस्विनी गौरी गूजरी का अपमान हो गया। उसने श्राप दिया कि बगड़ावतों का नाश होगा।
इस श्राप के फलस्वरूप सवाई भोज और उनके सभी भाई एक युद्ध में मारे गए, लेकिन सवाई भोज की पत्नी सादल उस समय गर्भवती थी। उनके गर्भ से जन्मे देव नारायण ही बाद में अपने पिता और चाचाओं की मृत्यु का बदला लेने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अवतरित हुए।
बगड़ावत महाभारत की रचना – लक्ष्मी कुमारी चुंडावत ने की थी।
देवनारायण की फड़ –
गुर्जर भोपो द्वारा जंतर नामक वाद्ययन्त्र के साथ बांची जाती है। सभी लोकदेवताओं की फड़ में यह सबसे प्राचीन व सबसे लम्बी फड़ है।
2 सितम्बर 1992 को देवनारायण जी की फड़ पर 5 रु का डाक टिकट जारी किया गया। यह राजस्थान में फड़ पर जारी किया गया सर्वप्रथम डाक टिकट है।
स्वयं देवनारायण जी पर भी 2011 में 5 रु का डाक टिकट जारी हुआ है।
देवनारायण जी ने 1290 ई. में मुस्लिम आक्रमणकारियों से युद्ध करते हुए देवमाली ब्यावर में ( भाद्रपद शुक्ल सप्तमी ) देह त्यागी थी।
आयुर्वेद के ज्ञाता – इन्होंने गोबर व नीम का औषधि के रूप में महत्व बताया।
राज्य क्रांति का जनक – देवनारायण जी ने भिनाय ( अजमेर ) के शासक को मारकर अपने बड़े भाई महेंदु को वहां का राजा बनाया।
ये लोकदेवता पाबूजी के समकालीन थे।
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अन्य मंदिर –
- देवमाली ( ब्यावर , अजमेर ) – यहीं पर देवनारायण जी ने देह त्यागी थी , यहीं पर इनके पुत्रों ने तपस्या की।
- देवधाम – जोधपुरिया ( निवाई , टोंक ) यहां दीवारों पर बगड़ावतो के शोर्य गाथाओं के चित्र बने हैं।
- देव डूंगरी पहाड़ ( चितौड़गढ़ ) – इस मंदिर का निर्माण राणा सांगा ने करवाया।
- देवास (मध्यप्रदेश) – में भी इनका मंदिर है।