जसनाथजी का जीवन परिचय | जसनाथी सम्प्रदाय का इतिहास और अग्नि नृत्य

जसनाथजी राजस्थान के महान संत, समाज सुधारक और जसनाथी सम्प्रदाय के संस्थापक थे। इनका जन्म सन् 1482 ईस्वी (विक्रम संवत 1539) में कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) के दिन कतरियासर गाँव, बीकानेर में हुआ।

जसनाथजी का जन्म और परिवार

  • पिता – हमीरजी जाणी
  • माता – रूपादे
  • जाति – जाट
  • बचपन का नाम – जसवंत सिंह
  • गुरु – गोरखनाथ
  • समाधि -सन् 1506 ईस्वी में आश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन जसनाथजी ने कतरियासर (बीकानेर) में समाधि ली। आज भी उस दिन वहाँ भव्य मेला आयोजित होता है।

जसनाथजी ने बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति अपनाई। उन्होंने बीकानेर के गोरखमालिया स्थान पर 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की और बाद में समाज सुधार और आध्यात्मिक जागरण का कार्य प्रारंभ किया।

जसनाथजी सम्प्रदाय की स्थापना

सन् 1504 ईस्वी में जसनाथजी ने कतरियासर (बीकानेर) में जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना की।

  • इस सम्प्रदाय में 36 नियम मानने का प्रावधान है।
  • अनुयायी गले में काले धागे को धारण करते हैं।
  • जाल वृक्ष और मोर पंख को पवित्र माना जाता है।

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सन् 1506 ईस्वी में आश्विन शुक्ल सप्तमी को जसनाथजी ने कतरियासर में समाधि ली। इस दिन प्रतिवर्ष यहाँ भव्य मेला आयोजित होता है।

गुरु और शिक्षा

जसनाथजी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति वाले थे। वे बचपन में ही गोरखनाथ के शिष्य बने और उनसे आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की। बीकानेर के गोरखमालिया स्थान पर उन्होंने 12 वर्ष की तपस्या की और योग, ध्यान एवं साधना में निपुण हुए।

जसनाथजी सम्प्रदाय की प्रमुख विशेषताएँ

अग्नि नृत्य

जसनाथी सम्प्रदाय का सबसे प्रसिद्ध अनुष्ठान है – अग्नि नृत्य

  • साधक धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं।
  • नृत्य के समय “फटे-फटे” का जयघोष किया जाता है।
  • बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने इस नृत्य को संरक्षण दिया।

परमहंस और सिद्ध

  • जो साधक पूर्ण रूप से सांसारिक जीवन त्याग देते हैं, उन्हें परमहंस कहा जाता है।
  • जो विवाह करके गृहस्थ जीवन जीते हैं, उन्हें सिद्ध कहा जाता है।

ऐतिहासिक योगदान

दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी भी जसनाथजी के चमत्कारों से प्रभावित हुए और उन्होंने कतरियासर में 500 बीघा भूमि दान दी।

जसनाथी सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ

  • जसनाथी पुराण (36 नियम) – सम्प्रदाय का मूल ग्रंथ
  • सिंभूड़ड़ा – जसनाथजी के उपदेशों का संकलन
  • कोड़ा – धार्मिक काव्य ग्रंथ
  • जलम झूमरो – भक्ति एवं लोकगीत संग्रह
  • सिद्ध जी रो सिरलोकों – अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन

जसनाथजी के प्रमुख शिष्य

  • लालनाथ जी
  • रामनाथ जी
  • रूतनाथ जी

जसनाथजी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठें

  1. गालासर (बीकानेर)
  2. लखासरसर (बीकानेर)
  3. पुनरासर (बीकानेर)
  4. बामठू (बीकानेर)
  5. पांलवा (नागौर)

प्रमुख मेले और त्योहार

  • कतरियासर मेला – हर साल आश्विन शुक्ल सप्तमी को आयोजित होता है।
  • अग्नि नृत्य – जसनाथी अनुयायियों का विशेष अनुष्ठान, जिसमें वे जलते अंगारों पर नृत्य करते हैं और “फटे-फटे” का जयघोष करते हैं।
  • यह परंपरा बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के संरक्षण में और अधिक प्रसिद्ध हुई।

जसनाथजी केवल संत ही नहीं बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अंधविश्वासों, बुराइयों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और समाज को आध्यात्मिक एवं नैतिक जीवन जीने का मार्ग दिखाया। आज भी जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायी उनके सिद्धांतों पर चलते हुए समाज सेवा और आध्यात्मिक साधना में लगे हुए हैं।

वर्तमान में जसनाथी सम्प्रदाय की स्थिति

आज भी जसनाथजी के अनुयायी बड़ी संख्या में राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में पाए जाते हैं।

  • कतरियासर पीठ सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र है।
  • यहाँ नियमित धार्मिक आयोजन, साधु-संत सम्मेलन और भजन संध्या होती हैं।
  • जसनाथी अनुयायी शिक्षा, पर्यावरण और सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं।

जसनाथी सम्प्रदाय का विस्तार

  • प्रारंभ में यह सम्प्रदाय बीकानेर तक सीमित रहा, लेकिन बाद में नागौर, जोधपुर, सीकर, चुरू और जयपुर जिलों में फैल गया।
  • हरियाणा, पंजाब और गुजरात तक इस सम्प्रदाय का प्रसार हुआ।
  • सम्प्रदाय की प्रमुख पीठें – कतरियासर, गालासर, लखासरसर, पुनरासर, बामठू (बीकानेर) और पांलवा (नागौर)

अनुयायी और सामाजिक प्रभाव

  • जसनाथजी ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, भेदभाव और अन्याय को समाप्त करने का प्रयास किया।
  • उनके अनुयायी साधारण किसान, व्यापारी और ग्रामीण समाज से जुड़े लोग थे।
  • जसनाथजी के अनुयायी दो प्रकार के माने जाते हैं –
    • परमहंस – जो पूर्ण रूप से वैराग्य जीवन अपनाते हैं।
    • सिद्ध – जो विवाह करके गृहस्थ जीवन जीते हैं लेकिन सम्प्रदाय के अनुयायी रहते हैं।

इस प्रकार, जसनाथी सम्प्रदाय ने समाज में आध्यात्मिक जागृति और नैतिक अनुशासन स्थापित किया।

जसनाथजी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (FAQ)

Q1. जसनाथजी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
जवाब: जसनाथजी का जन्म सन् 1482 ईस्वी (विक्रम संवत् 1539) में कार्तिक शुक्ल एकादशी को कतरियासर गाँव, बीकानेर में हुआ था।

Q2. जसनाथजी के माता-पिता कौन थे?
जवाब: इनके पिता का नाम हमीरजी जाणी और माता का नाम रूपादे था।

Q3. जसनाथजी का बचपन का नाम क्या था?
जवाब: जसनाथजी का बचपन का नाम जसवंत सिंह था।

Q4. जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना कब हुई?
जवाब: जसनाथजी ने सन् 1504 ईस्वी में बीकानेर के कतरियासर गाँव में जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना की थी।

Q5. जसनाथी सम्प्रदाय में कितने नियम होते हैं?
जवाब: जसनाथी सम्प्रदाय के कुल 36 नियम होते हैं।

Q6. अग्नि नृत्य क्या है और इसकी शुरुआत किसने की?
जवाब: अग्नि नृत्य जसनाथी सम्प्रदाय की विशेष परंपरा है, जिसमें साधक जलते हुए अंगारों पर नृत्य करते हैं और “फटे-फटे” का जयघोष करते हैं। इसकी शुरुआत जसनाथजी ने की थी।

Q7. जसनाथजी के प्रमुख ग्रंथ कौन-कौन से हैं?
जवाब: जसनाथी सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ हैं – सिंभूड़ड़ा, कोड़ा, जलम झूमरो, सिद्ध जी रो सिरलोकों और जसनाथी पुराण (36 नियम)

Q8. जसनाथजी के प्रमुख शिष्य कौन थे?
जवाब: लालनाथ जी, रामनाथ जी और रूतनाथ जी जसनाथजी के प्रमुख शिष्य थे।

Q9. जसनाथी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठें कहाँ-कहाँ स्थित हैं?
जवाब: कतरियासर, गालासर, लखासरसर, पुनरासर, बामठू (बीकानेर) और पांलवा (नागौर) प्रमुख पीठें हैं।

Q10. जसनाथजी से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने क्या किया था?
जवाब: दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी जसनाथजी के चमत्कारों से प्रभावित होकर कतरियासर में 500 बीघा जमीन दान दी थी

जसनाथजी के 36 नियम – तालिका सहित

क्रमांकनियमसंक्षिप्त विवरण
1झूठ न बोलनासत्य बोलना और असत्य से बचना।
2चोरी न करनाकिसी की वस्तु अनुचित रूप से न लेना।
3व्यभिचार न करनापरस्त्री/परपुरुष संग संबंध से बचना।
4नशा न करनाशराब, भांग, अफीम, तम्बाकू आदि का त्याग।
5मांसाहार न करनाजीव हत्या और मांस-मछली का सेवन वर्जित।
6जीव हिंसा न करनाप्राणी मात्र पर दया रखना।
7जुआ/सट्टा न खेलनाअनुचित धनार्जन से बचना।
8परनिन्दा न करनादूसरों की बुराई से दूर रहना।
9क्रोध न करनासंयम और शांति से रहना।
10लालच न करनासंतोषी जीवन जीना।
11दया भाव रखनासबके प्रति करुणा रखना।
12निर्धनों की सहायता करनाजरूरतमंदों की मदद करना।
13स्त्री-पुरुष भेदभाव न करनासभी को समान मानना।
14माता-पिता, गुरु व वृद्धों का सम्मानबड़ों का आदर करना।
15साधु-संतों का आदरधार्मिक जनों का सम्मान करना।
16अतिथि का सत्कार करनाअतिथि देवो भव की भावना।
17सदैव सत्य बोलनावाणी में पवित्रता रखना।
18वचन का पालन करनावचनभंग न करना।
19रोज़ाना प्रार्थना करनाभजन-पूजन करना।
20सुबह-संध्या आरती करनानियमित आरती करना।
21साधु-संगति करनासत्संग में रहना।
22नियमपूर्वक उपवास करनाधार्मिक उपवास करना।
23ग्रंथ अध्ययन करनाजसनाथी व अन्य धार्मिक ग्रंथ पढ़ना।
24अग्नि नृत्य व मेले में भागधार्मिक परंपराओं का निर्वाह।
25कीर्तन व सत्संग करनाभजन-कीर्तन करना।
26गुरुमंत्र का जाप करनानियमित मंत्र जाप।
27स्नान करके पूजा करनाशुद्धता के साथ आराधना।
28भोजन से पहले हाथ-पैर धोनास्वच्छता बनाए रखना।
29बासी भोजन न करनाताजा भोजन करना।
30चोरी-छिपे भोजन न करनापवित्रता से भोजन करना।
31ब्रह्मचर्य पालन (साधु)संयमित जीवन जीना।
32ईर्ष्या न करनादूसरों से द्वेष न रखना।
33दान-पुण्य करनाधर्मार्थ कार्यों में लगना।
34दूसरों को कष्ट न देनासबके साथ प्रेमभाव रखना।
35पराई वस्तु की इच्छा न करनासंतोषी रहना।
36संतोष व सरलता से रहनासादा और शांत जीवन जीना।
  • इन नियमों को जसनाथजी ने इसलिए बनाया था ताकि समाज में नैतिकता, अनुशासन, समानता और शुद्धता बनी रहे।
  • खास बात यह है कि ये नियम आज भी जसनाथी साधु-साध्वियों और अनुयायियों के जीवन का आधार हैं

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