मेवाड़ में 1857 की क्रांति – एक वीरता और स्वाभिमान की गाथा

1857 ई. की क्रांति के समय मेवाड़ की जनता में भी अंग्रेजों के विरुद्ध काफी रोष था। मेवाड़ के अधिकांश सामंत ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे। क्योंकि अंग्रेजों ने सामंतों के अधिकारों को छीन लिया। नसीराबाद बाद में हुई क्रांति की सूचना मेवाड़ उदयपुर पहुंच चुकी थी। सूचना मिलने पर मेवाड़ की जनता में विद्रोह की ज्वाला को जगा दिया।

मेवाड़ की सेना भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार थी। लेकिन मेवाड़ महाराणा स्वरूप सिंह को ब्रिटिश कप्तान शावर्स ने पहले ही इस स्थित से अवगत करा दिया था। अत: महाराणा तथा कप्तान शावर्स की सूझबूझ ने मेवाड़ की स्थिति को बिगड़ने से संभाल लिया। सामंतों के रवैए के कारण महाराणा स्वरूप सिंह को ब्रिटिश सरकार का समर्थन करने के लिए बाध्य थे।

A.G.G. लॉरेंस ने मेवाड़ के महाराणा को पत्र लिखा कि वो सभी सामंतों को पत्र भेजकर ब्रिटिश सरकार की सैनिक कारवाई में सहायता करें। तथा पॉलिटिकल एजेंट कप्तान शावर्स के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें। मेवाड़ के सामंतों को कप्तान शावर्स ने कहा कि कोई भी सामंत ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रांतिकारियों की सहायता करेगा उसे शांति भंग के आरोप में कठोर दंड दिया जाएगा।

1857 की क्रांति जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है, ने समूचे देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ज्वाला सुलगा दी। उत्तर भारत के अनेक भागों की तरह राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में भी यह क्रांति जनचेतना, स्वाभिमान और आज़ादी के लिए उठे विद्रोह का प्रतीक बनी।

मेवाड़ की वीर भूमि ने सदियों से विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध प्रतिरोध किया था, और 1857 में भी यह परंपरा जारी रही। आइए विस्तार से जानते हैं, 1857 की क्रांति के दौरान मेवाड़ में क्या हुआ

मेवाड़ का राजनैतिक परिप्रेक्ष्य (1857 से पहले)

  • मेवाड़ रियासत (उदयपुर) एक स्वतंत्र और गौरवशाली राज्य था, जिसकी पहचान महाराणा प्रताप जैसे नायकों से जुड़ी थी।
  • ब्रिटिशों से 1818 में संधि करके मेवाड़ ने एक रक्षक संधि (Subsidiary Alliance) स्वीकार की थी।
  • इस संधि के तहत अंग्रेजों को मेवाड़ की रक्षा की ज़िम्मेदारी मिली, लेकिन साथ ही वह उनकी नीतियों से बंध गया।

1857 की क्रांति के समय मेवाड़ की स्थिति

तत्वविवरण
शासकमहाराणा स्वरूप सिंह (1842–1861)
राजधानीउदयपुर
ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंटकर्नल शॉ (Colonel Shaw)
ब्रिटिश छावनीनाथद्वारा, एरिनपुरा

क्या मेवाड़ ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया?

  • मेवाड़ की शाही रियासत ने सीधे तौर पर विद्रोह नहीं किया, क्योंकि महाराणा स्वरूप सिंह अंग्रेजों के साथ राजनैतिक समझौते में बंधे हुए थे।
  • लेकिन, जन स्तर पर और कुछ जागीरों में विद्रोह की लपटें उठीं, खासकर निम्न क्षेत्रों में:
    • चित्तौड़गढ़
    • नाथद्वारा
    • एरिनपुरा
    • गोगुन्दा और आसपास की जागीरें
एरिनपुरा छावनी का विद्रोह
  • एरिनपुरा (वर्तमान पाली ज़िला में) स्थित ब्रिटिश सैन्य छावनी में तैनात राजपूत सैनिकों ने 1857 में विद्रोह कर दिया।
  • उन्होंने न केवल अंग्रेज अफसरों का विरोध किया, बल्कि सैन्य छावनी को लूटकर भाग निकले।
  • विद्रोही सैनिकों ने मालवा की ओर भागते हुए क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया।
नाथद्वारा में विद्रोह और जनचेतना
  • नाथद्वारा में स्थित प्रमुख वैष्णव मंदिरों और व्यापारिक समुदाय में भी अंग्रेजी शासन के प्रति आक्रोश था।
  • यहाँ पर ब्रिटिश राज के आदेशों और धार्मिक हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज़ें उठीं, हालाँकि कोई सशस्त्र संघर्ष नहीं हुआ।
स्थानीय जागीरों का सहयोग
  • कुछ स्थानीय ठाकुरों और जमींदारों ने गुप्त रूप से क्रांतिकारियों को समर्थन दिया
  • कई क्षेत्रों से हथियार, राशन और गुप्त जानकारी विद्रोहियों तक पहुँचाई गई।

मेवाड़ की भूमिका – समर्थन या तटस्थता?

दृष्टिकोणविवरण
राजकीय भूमिकामहाराणा ने अंग्रेजों के प्रति तटस्थता दिखाई
जन समर्थनकई क्षेत्रों में अंग्रेज विरोधी चेतना सक्रिय
सैनिक विद्रोहएरिनपुरा में सैन्य बगावत सबसे उल्लेखनीय
सहयोगकुछ जागीरदारों द्वारा अप्रत्यक्ष सहयोग

ऐतिहासिक निष्कर्ष

1857 की क्रांति के दौरान, भले ही मेवाड़ के शाही दरबार ने अंग्रेजों के खिलाफ खुला विद्रोह नहीं किया, लेकिन मेवाड़ की भूमि पर जो गतिविधियाँ हुईं, वे यह दर्शाती हैं कि जनता और कुछ सैनिक अंग्रेजी हुकूमत से नाखुश थे
एरिनपुरा का विद्रोह, नाथद्वारा की धार्मिक चेतना, और स्थानीय ठाकुरों का गुप्त सहयोग, मेवाड़ की भूमिकाओं को ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं।

मेवाड़ ने भले ही प्रत्यक्ष रूप से 1857 की क्रांति में हथियार नहीं उठाए, लेकिन उसके सैनिकों, जागीरों और जनमानस में आज़ादी की आग धधकती रही
यह क्रांति संघर्ष और चेतना का बीज थी, जो आने वाले स्वतंत्रता आंदोलनों के लिए प्रेरणा बनी

महाराणा स्वरूप सिंह और अंग्रेजों को दिया गया सहयोग (1857 की क्रांति के दौरान)

1857 की क्रांति के समय भारत की कई रियासतें अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़ी हुईं, लेकिन कुछ रियासतों ने विद्रोह को समर्थन देने की बजाय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का साथ दिया।
इन्हीं में से एक थे मेवाड़ के शासक महाराणा स्वरूप सिंह जिन्होंने क्रांति के समय अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखाई और उन्हें हरसंभव सहायता दी।

महाराणा स्वरूप सिंह: एक संक्षिप्त परिचय

विवरणजानकारी
शासनकाल1842 – 1861 ई.
राज्यमेवाड़ (उदयपुर)
रियासत की स्थिति1818 की संधि के बाद ब्रिटिश अधीनस्थ रियासत
प्रमुख नीतिअंग्रेजों के प्रति निष्ठा, आंतरिक स्थायित्व बनाए रखना

महाराणा द्वारा अंग्रेजों को दिया गया सहयोग

1. राजनीतिक समर्थन
  • महाराणा स्वरूप सिंह ने 1857 के विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार का पूर्ण समर्थन किया।
  • उन्होंने ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट (कर्नल शॉ) को भरोसा दिलाया कि उनकी रियासत में कोई विद्रोह नहीं होने देंगे।
2. सैन्य सहायता
  • अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों के दमन हेतु माँगे जाने पर महाराणा ने सैनिक सहायता भी दी।
  • मेवाड़ से कुछ घुड़सवार टुकड़ियाँ अंग्रेजी सेना के साथ भेजी गईं।
3. विद्रोहियों को शरण नहीं दी
  • महाराणा ने आदेश दिया कि विद्रोही सैनिकों या नेताओं को मेवाड़ में शरण न दी जाए
  • यदि कोई विद्रोही सीमा में प्रवेश करता है, तो उसे गिरफ्तार कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया जाए।
4. ब्रिटिश अधिकारियों की सुरक्षा
  • अंग्रेज अफसरों और व्यापारियों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध किए गए।
  • ब्रिटिश अधिकारियों को उदयपुर दरबार द्वारा सुरक्षा आश्वासन मिला।

“नाथद्वारा क्षेत्र में विद्रोह की आशंका को देखते हुए महाराणा ने तुरंत सुरक्षा बल तैनात कर दिए और पॉलिटिकल एजेंट को स्थिति शांत रखने का आश्वासन दिया।”
ब्रिटिश रिपोर्ट, 1857

सहयोग के पीछे संभावित कारण

कारणविवरण
रक्षक संधि (1818)मेवाड़ पहले ही ब्रिटिश सुरक्षा में था, इसलिए विद्रोह नहीं करना चाहता था
आंतरिक स्थिरतामहाराणा स्वरूप सिंह का उद्देश्य राज्य को भीतर से सुरक्षित और शांत रखना था
विदेशी आक्रमणों की स्मृतिबार-बार की लूट और हमलों के कारण मेवाड़ अब युद्ध नहीं चाहता था
व्यक्तिगत रुझानमहाराणा स्वरूप सिंह की नीति “ब्रिटिश के साथ सहयोग” पर आधारित थी

महाराणा स्वरूप सिंह ने 1857 की क्रांति के दौरान ब्रिटिश सत्ता के प्रति निष्ठा बनाए रखी और राजनीतिक व सैन्य सहायता प्रदान की।
उनकी यह नीति मेवाड़ को किसी बड़े सैन्य टकराव से तो बचा गई, लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसे आज़ादी की चिंगारी को नकारने वाला कदम भी माना गया।


मेवाड़ में 1857 की क्रांति और महाराणा स्वरूप सिंह की भूमिका

1857 की क्रांति भारतवर्ष में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध पहला संगठित जनविरोध था। उत्तर भारत के कई हिस्सों की तरह राजस्थान, विशेष रूप से मेवाड़ (उदयपुर रियासत) भी इससे अछूता नहीं रहा।

महाराणा स्वरूप सिंह, जो उस समय मेवाड़ के शासक थे, ने इस क्रांति के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के साथ सहयोग की नीति अपनाई। यह लेख मेवाड़ में क्रांति की स्थिति, जनभावनाओं, सैनिक गतिविधियों, और शासक के रुख को समग्र रूप में प्रस्तुत करता है।

मेवाड़ की स्थिति (1857 से पूर्व)

पक्षविवरण
शासकमहाराणा स्वरूप सिंह (1842–1861)
राजधानीउदयपुर
ब्रिटिश संधि1818 की रक्षक संधि के अंतर्गत ब्रिटिश अधीनता स्वीकार
ब्रिटिश एजेंटकर्नल शॉ (Political Agent in Udaipur)

महाराणा स्वरूप सिंह और ब्रिटिश अधिकारियों के संबंध

  • महाराणा स्वरूप सिंह ने 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश प्रशासन के प्रति पूरी निष्ठा दिखाई
  • अंग्रेज अफसर कर्नल शॉ और अन्य पॉलिटिकल एजेंटों के साथ उनका संबंध राजनयिक और सहयोगात्मक था।
सैन्य सहयोग
  • महाराणा ने ब्रिटिश अफसरों को सुरक्षा देने हेतु मेवाड़ी सैन्य टुकड़ियाँ भेजीं।
  • एरिनपुरा, नाथद्वारा जैसे क्षेत्रों में विद्रोह की आशंका पर भी उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन को सूचना व सहायता दी।
विद्रोहियों को शरण न देना
  • महाराणा स्वरूप सिंह ने आदेश दिया कि किसी भी विद्रोही सैनिक या नेता को मेवाड़ की सीमा में प्रवेश की अनुमति न दी जाए।
  • यदि कोई शरण मांगता है, तो उसे गिरफ़्तार कर अंग्रेजों के हवाले किया जाए।
मेवाड़ में विद्रोह के स्वर

हालाँकि शाही दरबार अंग्रेजों के साथ था, लेकिन मेवाड़ की जनता और कुछ ठिकानों पर विद्रोह की चिंगारी जरूर भड़की, जैसे:

1. एरिनपुरा छावनी का विद्रोह
  • यहां राजपूत सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह किया और छावनी छोड़कर चले गए।
2. नाथद्वारा में जन असंतोष
  • धार्मिक भावनाओं और व्यापारिक हितों को लेकर ब्रिटिश प्रशासन के प्रति असंतोष देखा गया।
3. गोगुन्दा, सलूम्बर जैसे क्षेत्रों में जागीरदारों का गुप्त समर्थन
  • कुछ स्थानीय ठाकुरों ने विद्रोहियों को गुप्त रूप से राशन, हथियार व जानकारी दी।

महाराणा की नीति: क्यों था अंग्रेजों के साथ सहयोग?

कारणविवरण
1818 की संधिमेवाड़ पहले से ब्रिटिश अधीनता में था, इसलिए विद्रोह टालना था
आंतरिक सुरक्षामहाराणा राज्य में शांति व व्यवस्था बनाए रखना चाहते थे
नीति-परंपरापूर्व शासकों द्वारा शुरू की गई ब्रिटिश मैत्री की नीति को बनाए रखना
राजनीतिक चतुराईक्रांति की असफलता की स्थिति में राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना

1857 की क्रांति में मेवाड़ रियासत ने राजनीतिक चतुराई का परिचय दिया। महाराणा स्वरूप सिंह ने अंग्रेजों को हरसंभव सहयोग देकर अपने राज्य को क्रांति की आग से बचाया, जबकि जनसामान्य और कुछ क्षेत्रों में देशभक्ति की लहर साफ़ झलकती है।

यह विरोध और सहयोग का एक ऐसा मिश्रित चित्रण है, जो इतिहास में मेवाड़ को एक संतुलित लेकिन रणनीतिक दृष्टिकोण वाली रियासत के रूप में प्रस्तुत करता है।

Leave a Comment