1857 की नसीराबाद में क्रांति

नसीराबाद में क्रांति

(Nasirabad 1857 Revolt – A Forgotten Chapter of India’s First War of Independence)

भूमिका: नसीराबाद – एक वीरभूमि

“1857 की क्रांति का प्रभाव राजस्थान तक फैल गया, और अजमेर जिले की ऐतिहासिक नसीराबाद छावनी (Nasirabad Cantonment) भी विद्रोह की ज्वाला से अछूती नहीं रही। यहाँ भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध शौर्य और बलिदान की अद्वितीय मिसाल पेश की।”

नसीराबाद छावनी की स्थापना और महत्त्व

नसीराबाद छावनी की स्थापना 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। यह एक प्रमुख सैन्य केंद्र था, जहां बंगाल आर्मी के अनेक रेजीमेंट्स तैनात थे। यहां स्थित भारतीय सिपाही सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से असंतुष्ट थे, जो आगे चलकर विद्रोह का कारण बना।

नसीराबाद में 1857 की क्रांति का आरंभ

1857 में जब मेरठ में विद्रोह हुआ और मंगल पांडे जैसे वीरों ने अंग्रेजी सेना को चुनौती दी, तो नसीराबाद भी इससे अछूता नहीं रहा।

28 मई 1857 को नसीराबाद में तैनात 15वीं नेटिव इन्फैंट्री (15th Native Infantry) और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री ने अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

मुख्य कारण

  • गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों का प्रयोग
  • धर्म और संस्कृति का अपमान
  • अंग्रेजों द्वारा सेना में भेदभावपूर्ण व्यवहार
  • स्वतंत्रता की भावना

विद्रोह का विस्फोट

नसीराबाद के विद्रोही सिपाहियों ने—

  • छावनी में तोड़फोड़ की
  • ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या की
  • शस्त्रागार और सैन्य सामग्री को अपने कब्जे में ले लिया

इन सिपाहियों ने आगे बढ़कर टोंक रियासत की ओर कूच किया और वहाँ के नवाब से सहयोग माँगा।

ब्रिटिश प्रतिक्रिया और दमन

ब्रिटिश सरकार इस बगावत से चौंक गई और उसने नसीराबाद छावनी पर पुनः कब्जा करने के लिए जबरदस्त सैन्य कार्रवाई की। अंग्रेजों ने नसीराबाद के आसपास के गांवों को लूटा और विद्रोहियों को पकड़कर सख्त सजा दी।

नसीराबाद के नायक

हालाँकि अधिकांश विद्रोही सिपाहियों के नाम इतिहास में दर्ज नहीं हुए, लेकिन स्थानीय जनमानस में ये नायक अमर हैं। उन्होंने अपने जीवन को देश की आज़ादी के लिए न्योछावर कर दिया।

नसीराबाद की क्रांति का ऐतिहासिक महत्व

  • यह राजस्थान में 1857 की पहली संगठित सैन्य बगावत थी।
  • नसीराबाद से निकले सिपाही विद्रोह को अजमेर, टोंक और कोटा तक ले गए।
  • इसने ब्रिटिश प्रशासन की नींव को हिला दिया।

आज का नसीराबाद – इतिहास का साक्षी

आज नसीराबाद एक शांत शहर है, लेकिन यहाँ की छावनी, कब्रगाहें और सैन्य स्थल 1857 की वीरगाथा की गूंज अब भी सुनाते हैं। अगर आप इतिहास प्रेमी हैं, तो यह स्थल आपके लिए एक प्रेरणास्रोत हो सकता है।

नसीराबाद की क्रांति पर उपयोगी तथ्य (FAQs)

Q. नसीराबाद की 1857 की क्रांति कब हुई थी?
A. 28 मई 1857 को

Q. कौन-कौन सी रेजीमेंट्स ने बगावत की थी?
A. 15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री

Q. विद्रोह के बाद सिपाही कहां गए थे?
A. टोंक और उसके आगे अन्य रियासतों की ओर

Q. नसीराबाद का 1857 में क्या ऐतिहासिक महत्व है?
A. यह राजस्थान में पहली सैन्य बगावत का केंद्र था।

नसीराबाद की 1857 की क्रांति भले ही इतिहास के पन्नों में छिप गई हो, लेकिन इसका महत्व अमूल्य है। यह विद्रोह आज भी हमें सिखाता है कि आज़ादी सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि बलिदान और संघर्ष का प्रतीक है।


क्रांति के मुख्य कारण

1. कारतूस विवाद (चर्बी वाले कारतूस)

ब्रिटिश सेना द्वारा सिपाहियों को दिए गए एनफील्ड राइफल के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी लगी होने की अफ़वाह थी। यह:

  • हिंदू सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था (गाय पूजनीय है)
  • मुस्लिम सिपाहियों के लिए हराम (सूअर निषिद्ध)

इसने सैनिकों में गहरी असंतोष की भावना उत्पन्न की।

2. धार्मिक और सामाजिक हस्तक्षेप

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों की धार्मिक और सामाजिक परंपराओं में दखल देना (जैसे – धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देना, हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी रूप देना) लोगों में रोष पैदा कर रहा था।

3. ब्रिटिश अधिकारियों का भेदभावपूर्ण व्यवहार

अंग्रेज अधिकारी भारतीय सिपाहियों को निम्न स्तर का मानते थे:

  • वेतन में असमानता
  • पदोन्नति में भेदभाव
  • अपमानजनक भाषा और व्यवहार

यह सैनिकों के मन में विद्रोह की भावना भर रहा था।

4. देशभक्ति और आज़ादी की भावना

1857 तक भारतीय सिपाही यह समझने लगे थे कि अंग्रेज केवल व्यापार नहीं, बल्कि राजनीतिक व सांस्कृतिक दासता थोप रहे हैं। यह भावना धीरे-धीरे जागृत हो रही थी।

5. अन्य क्षेत्रों से प्रेरणा

मेरठ, दिल्ली और झांसी जैसे क्षेत्रों में शुरू हुई बगावत की खबर नसीराबाद तक पहुँच चुकी थी। इससे यहाँ के सिपाहियों को भी विद्रोह के लिए प्रोत्साहन मिला।

6. स्थानीय असंतोष और कष्ट

  • जनता पर अत्यधिक कर (tax)
  • भूमि-संबंधी अन्यायपूर्ण नीतियाँ
  • सामाजिक दमन ने सैनिकों और आम लोगों दोनों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया

नसीराबाद की क्रांति सिर्फ सैनिक असंतोष नहीं थी, यह धार्मिक अपमान, सामाजिक अन्याय, अंग्रेजी दमन और राष्ट्रीय भावना का मिला-जुला विस्फोट था। यही कारण था कि 28 मई 1857 को नसीराबाद की छावनी में सिपाहियों ने खुला विद्रोह कर दिया।


नसीराबाद की 1857 की क्रांति में 15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री की भूमिका
(Role of 15th and 30th Native Infantry in Nasirabad Revolt of 1857)

1. परिचय: ब्रिटिश भारतीय सेना की रेजीमेंट्स

1857 में नसीराबाद (Nasirabad) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक प्रमुख सैन्य छावनी थी। यहाँ पर मुख्यतः दो रेजीमेंट्स तैनात थीं:

  • 15वीं नेटिव इन्फैंट्री (15th Native Infantry)
  • 30वीं नेटिव इन्फैंट्री (30th Native Infantry)

दोनों रेजीमेंट्स भारतीय सैनिकों से बनी थीं, जिनमें अधिकांश हिन्दू और मुसलमान सिपाही थे।

2. विद्रोह की पृष्ठभूमि
  • 1857 की शुरुआत में ही चर्बी वाले कारतूसों की खबर फैल चुकी थी।
  • नसीराबाद के सैनिक पहले से ही असंतोष में थे।
  • मेरठ में हुए विद्रोह (10 मई 1857) की सूचना ने सैनिकों में जोश भर दिया।
3. विद्रोह की शुरुआत (28 मई 1857)
  • 28 मई को 15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री के सिपाहियों ने खुले तौर पर बगावत कर दी।
  • उन्होंने अपने ब्रिटिश अफसरों पर हमला किया और सैन्य छावनी में तोड़फोड़ की।
  • गोदाम और हथियार डिपो को लूटा गया, ताकि ब्रिटिश सत्ता को कमजोर किया जा सके।
4. टोंक की ओर कूच
  • विद्रोह के बाद, इन रेजीमेंट्स के सैकड़ों सैनिकों ने नसीराबाद छोड़कर टोंक रियासत की ओर कूच किया।
  • वहाँ उन्होंने नवाब से सहयोग माँगा और कुछ विद्रोही अन्य रियासतों की ओर भी गए।
5. अंग्रेजों की प्रतिक्रिया
  • अंग्रेजों ने जल्दी ही नसीराबाद छावनी को दोबारा अपने नियंत्रण में लिया।
  • विद्रोही सिपाहियों की धरपकड़ की गई, कई को फाँसी या गोली मारी गई।
  • 15वीं और 30वीं रेजीमेंट को “dismantled” घोषित कर दिया गया।
6. ऐतिहासिक महत्त्व
  • यह घटना राजस्थान में 1857 के विद्रोह की पहली बड़ी चिंगारी थी।
  • 15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री ने ब्रिटिश सेना के अंदर उठती स्वतंत्रता की भावना को दर्शाया।
  • इन सिपाहियों का बलिदान राष्ट्रीय आंदोलन के लिए प्रेरणा बना।
महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Facts)
तथ्यविवरण
विद्रोह की तिथि28 मई 1857
प्रमुख रेजीमेंट्स15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री
स्थाननसीराबाद छावनी, राजस्थान
अगला गंतव्यटोंक रियासत
ब्रिटिश कार्रवाईदमन, फाँसी, रेजीमेंट विघटन

15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री के सैनिकों ने धर्म, अस्मिता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए विद्रोह किया। भले ही इतिहास ने इनके नाम कम लिखा हो, लेकिन नसीराबाद की यह घटना राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम की नींव बन गई।


1857 की नसीराबाद क्रांति में ब्रिटिश सेना की भूमिका
(Role of British Army in Nasirabad Revolt of 1857)

1. नसीराबाद – ब्रिटिश सेना की प्रमुख छावनी

नसीराबाद (Nasirabad) छावनी की स्थापना 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थी। यह छावनी रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि यह:

  • दिल्ली और बॉम्बे के बीच में स्थित थी
  • मारवाड़, मालवा और मेवाड़ के निकट थी
  • ब्रिटिश सेना की बंगाल आर्मी के कई रेजीमेंट्स यहाँ तैनात रहते थे
2. छावनी में ब्रिटिश संरचना

1857 में नसीराबाद में ब्रिटिश सेना की व्यवस्था इस प्रकार थी:

  • अंग्रेज अफसर: लेफ्टिनेंट, कैप्टन, मेजर
  • भारतीय सिपाही: 15वीं और 30वीं नेटिव इन्फैंट्री
  • तोपखाना और शस्त्रागार: ब्रिटिश नियंत्रण में
  • स्थानीय पुलिस और अनुशासनिक इकाई: अंग्रेजों के अधीन
3. विद्रोह के संकेत और अंग्रेजों की प्रतिक्रिया
  • ब्रिटिश अधिकारियों को विद्रोह के संकेत मिल रहे थे
  • उन्होंने सैनिकों से चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग पर शपथ लेने की माँग की
  • इससे सैनिक और भड़क उठे, और 28 मई 1857 को विद्रोह हो गया
4. विद्रोह के दौरान ब्रिटिश सेना की हालत
  • विद्रोह अचानक और संगठित था
  • ब्रिटिश अधिकारी पूरी तरह चौंक गए
  • सिपाहियों ने अफसरों के घर जला दिए, कुछ को मार डाला
  • ब्रिटिश सेना के अधिकांश अंग्रेज अफसर छावनी से भाग निकले
  • कुछ ने टोंक या अजमेर में शरण ली
5. विद्रोह के बाद ब्रिटिश सेना की प्रतिक्रिया
  • अंग्रेजों ने टोंक, अजमेर और दिल्ली से सैनिकों की टुकड़ियाँ भेजीं
  • विद्रोही सिपाहियों की धरपकड़ की गई
  • कई को फाँसी दी गई या तोप से उड़ा दिया गया
  • नसीराबाद छावनी को फिर से ब्रिटिश कब्जे में लिया गया
6. प्रमुख ब्रिटिश अधिकारी (जहाँ तक ज्ञात है):
  • लेफ्टिनेंट कर्नल एबॉट (Lt. Col. Abbott) – कुछ रिकॉर्ड्स में नाम मिलता है जो नसीराबाद के उच्च अधिकारी थे
  • अन्य अफसर टोंक की ओर भागे और वहाँ से रेजीमेंट्स मंगवाए
7. ब्रिटिश सेना की रणनीति
  • विद्रोह के बाद ब्रिटिश सेना ने राजस्थान में हर छावनी पर विशेष निगरानी रखनी शुरू कर दी
  • नसीराबाद के सभी रेजीमेंट्स को भंग कर दिया गया
  • स्थानीय लोगों पर दबाव बनाया गया कि वे विद्रोहियों की सूचना दें

1857 की नसीराबाद की क्रांति में ब्रिटिश सेना की भूमिका दोहरी रही:

  • एक ओर उसने सैनिकों की धार्मिक और सामाजिक भावनाओं की अवहेलना कर क्रांति को जन्म दिया
  • दूसरी ओर, क्रांति के बाद उसने अत्याचार और दमन से अपनी सत्ता को पुनः स्थापित किया

नसीराबाद क्रांति ब्रिटिश सेना के लिए एक चेतावनी बन गई कि भारतीय सैनिक अब सिर्फ आदेश नहीं, सम्मान और आज़ादी भी चाहते हैं।

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