मारवाड़ का राठौड़ राजवंश – उत्पत्ति एवं इतिहास
मारवाड़ (वर्तमान में राजस्थान का जोधपुर क्षेत्र) का राठौड़ राजवंश भारतीय इतिहास में एक प्रमुख राजवंश रहा है। राठौड़ों ने न केवल राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में अपने शौर्य, स्वाभिमान और संस्कृति से विशेष स्थान बनाया। नीचे राठौड़ वंश की उत्पत्ति का विस्तृत वर्णन दिया गया है:
- राठौड़ वीरता, स्वाभिमान और गौरव के प्रतीक रहे हैं।
- इन्होंने मुगलों, दिल्ली सल्तनत और मराठों से लगातार संघर्ष किया।
- मारवाड़ रियासत ब्रिटिश काल में सबसे शक्तिशाली रियासतों में एक थी।
राठौड़ वंश की उत्पत्ति
1. वैदिक एवं पौराणिक आधार
राठौड़ वंश की उत्पत्ति को लेकर कई मान्यताएँ हैं। एक प्रमुख मान्यता के अनुसार, यह वंश सूर्य वंशी क्षत्रियों से उत्पन्न माना जाता है, जो अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश से सम्बंधित थे। यह वंश आगे चलकर कन्नौज (उत्तर प्रदेश) में स्थापित हुआ।
2. कन्नौज से सम्बन्ध
राठौड़ों का मूल केंद्र कन्नौज (आज का उत्तर प्रदेश) था। कन्नौज पर राठौड़ शासकों का शासन था और सबसे प्रमुख राजा थे जयचंद्र राठौड़ (जयचंद गहड़वाल)। उनका नाम प्रसिद्ध मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी के समय का है। चंद्रवार वंश से इनका सम्बन्ध भी बताया जाता है।
3. दिल्ली और गजनी आक्रमण के बाद
1194 ई. में मुहम्मद गोरी के आक्रमण में जयचंद्र की मृत्यु हो गई और कन्नौज नष्ट हो गया। इसके बाद राठौड़ वंश के अनेक सदस्य अपने प्राचीन गढ़ छोड़कर राजस्थान की ओर बढ़े।
राजस्थान में राठौड़ों का आगमन
1. पाली में स्थापना
कन्नौज के पतन के बाद राठौड़ शासक सीहा और आस्तान ने पाली (मारवाड़) में प्रवेश किया। यहाँ इन्होंने पाली के ब्राह्मणों से सहयोग लेकर अपना राज्य स्थापित करना प्रारंभ किया।
2. राव सीहा (Rao Siha)
राठौड़ वंश का वास्तविक संस्थापक राव सीहा (13वीं शताब्दी) को माना जाता है। उन्होंने पाली से मारवाड़ के अन्य भागों की ओर विस्तार किया और राजपूताना की भूमि पर राठौड़ शासन की नींव रखी।
प्रमुख राठौड़ शासकों की श्रृंखला
- राव सीहा – राठौड़ वंश का संस्थापक
- राव आस्तान – पाली के आसपास प्रभाव बढ़ाया
- राव चूड़ा – मेवाड़ से राजनीतिक सम्बन्ध बनाए
- राव जोधा – 1459 ई. में जोधपुर नगर की स्थापना की
- राव मालदेव – शेरशाह सूरी जैसे शक्तिशाली शासकों को चुनौती दी
- महाराजा अजीत सिंह – मुगलों से संघर्ष कर राठौड़ साम्राज्य को पुनर्जीवित किया
मारवाड़ का राठौड़ वंश मूलतः कन्नौज के गहड़वालों से उत्पन्न होकर पाली और फिर जोधपुर में स्थापित हुआ। यह वंश राजपूत संस्कृति, शौर्य और स्वतंत्रता का जीवंत प्रतीक है। इनका इतिहास राजस्थान के स्वाभिमान और सैन्य परंपरा का एक स्वर्णिम अध्याय है।
इतिहासकारों के अनुसार राठौड़ वंश की उत्पत्ति – विश्लेषण
राठौड़ वंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों के बीच अलग-अलग मत हैं। कुछ इसे मूल क्षत्रिय वंश मानते हैं, जबकि कुछ इसे विदेशी मूल (तुर्क या हूण) से जोड़ते हैं। आइए देखते हैं कि प्रमुख इतिहासकार इस विषय पर क्या कहते हैं:
1. परंपरागत/राजपूत कालीन मान्यता
राजपूत वंशावलियों, भाटों की परंपरा और राजस्थानी स्रोतों के अनुसार:
- राठौड़ वंश सूर्यवंशी इक्ष्वाकु वंश से उत्पन्न माना गया है।
- वे अयोध्या से होते हुए कन्नौज पहुँचे और फिर कन्नौज पर शासन करने लगे।
- राठौड़ों को जयचंद्र गहड़वाल का वंशज माना गया है।
- कन्नौज के पतन (1194 ई.) के बाद वे राजस्थान (पाली) पहुँचे।
- यह मत राजपूत गौरव पर आधारित है और उन्हें भारतीय क्षत्रिय परंपरा का अंग बताता है।
2. जेम्स टॉड (James Tod)
- कर्नल जेम्स टॉड, जो 19वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में अफसर थे, ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Annals and Antiquities of Rajasthan में राठौड़ों को प्राचीन क्षत्रिय वंश माना है।
- वे राठौड़ों को कन्नौज के गहड़वाल वंश से जोड़ते हैं और उन्हें स्वदेशी क्षत्रिय मूल का बताते हैं।
- उन्होंने राजपूत वंशों की वंशावलियाँ और परंपराओं को महत्त्व दिया है।
3. सी. वी. वैद्य (C.V. Vaidya)
- सी.वी. वैद्य जैसे इतिहासकारों ने राजपूतों की उत्पत्ति पर सवाल उठाए और राठौड़ों समेत कई वंशों को विदेशी मूल से संबंधित बताया है।
- वे राठौड़ों को तुर्क, शक या हूण जैसी जातियों से उत्पन्न मानते हैं, जिन्होंने भारत में आकर हिंदू धर्म और क्षत्रिय रीति अपना ली।
4. वी. ए. स्मिथ (V. A. Smith)
- वे भी कई राजपूत वंशों की उत्पत्ति को विदेशी जातियों से जोड़ते हैं।
- उनके अनुसार राठौड़ों समेत अन्य वंशों ने सामाजिक स्वीकार्यता पाने के लिए क्षत्रिय धर्म अपनाया और समय के साथ “राजपूत” कहलाने लगे।
5. डॉ. आर. सी. मजूमदार (R.C. Majumdar)
- डॉ. मजूमदार राठौड़ों को मूल भारतीय क्षत्रिय मानते हैं और उन्हें कन्नौज के गहड़वाल वंश का उत्तराधिकारी मानते हैं।
- उनके अनुसार राठौड़ों की उत्पत्ति भारतीय परंपरा और रक्तवंश से हुई, न कि किसी विदेशी नस्ल से।
मत | इतिहासकार/स्रोत | विवरण |
---|---|---|
भारतीय क्षत्रिय वंश | जेम्स टॉड, आर. सी. मजूमदार, राजस्थानी स्रोत | सूर्यवंशी, इक्ष्वाकु, कन्नौज के गहड़वाल वंश से उत्पत्ति |
विदेशी मूल (शक/हूण) | सी. वी. वैद्य, वी. ए. स्मिथ | विदेशियों ने भारत में आकर राजपूत संस्कृति अपनाई |
आपका takeaway:
यदि आप राठौड़ वंश को राजपूत परंपरा और क्षत्रिय गौरव से जोड़ना चाहते हैं, तो परंपरागत भारतीय इतिहासकारों और जेम्स टॉड के मत उपयुक्त हैं।
यदि आप आधुनिक आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो वैद्य और स्मिथ का मत उपयोगी हो सकता है — हालांकि यह विवादास्पद है और राजस्थानी समाज में व्यापक रूप से स्वीकार्य नहीं।
मूहणोत नैणसी के अनुसार राठौड़ वंश की उत्पत्ति
मूहणोत नैणसी (Muhnot Nainsi) 17वीं शताब्दी के प्रसिद्ध राजस्थानी इतिहासकार और मारवाड़ रियासत के दीवान थे। वे जोधपुर दरबार से जुड़े हुए थे और उन्होंने “नैणसी री ख्यात” तथा “मारवाड़ रा परगना री विगत” जैसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कृतियाँ लिखीं।
नैणसी के अनुसार राठौड़ वंश की उत्पत्ति:
1. सूर्यवंशी क्षत्रिय परंपरा से संबंध
मूहणोत नैणसी ने राठौड़ों को सूर्य वंश से उत्पन्न माना है। उनके अनुसार:
“राठौड़ वंश अयोध्या के सूर्यवंशी क्षत्रियों की संतान है।”
- उन्होंने राठौड़ों को कन्नौज के गहड़वाल वंश से जोड़ा है।
- उनके अनुसार जयचंद गहड़वाल (जयचंद्र) इस वंश का अंतिम बड़ा शासक था, जिसकी मृत्यु 1194 ई. में मुहम्मद गोरी से युद्ध में हुई।
2. कन्नौज से पलायन और राजस्थान आगमन
- नैणसी लिखते हैं कि जयचंद के वंशजों ने कन्नौज के पतन के बाद राजस्थान की ओर प्रस्थान किया।
- सबसे पहले राव सीहा और उनके वंशज पाली (जोधपुर के पास) आए।
- पाली के ब्राह्मणों ने राव सीहा को आश्रय दिया और राठौड़ों ने वहीं से अपने शासन की नींव रखी।
3. पाली से मारवाड़ तक
- राव सीहा और उनके उत्तराधिकारियों ने पाली से आगे बढ़कर धीरे-धीरे मारवाड़ क्षेत्र (जैसे मंडोर, जोधपुर) पर अधिकार किया।
- अंततः राव जोधा ने 1459 ई. में जोधपुर नगर की स्थापना की, जिसे राठौड़ वंश की राजधानी बनाया गया।
नैणसी की रचना में उल्लेख
मूहणोत नैणसी ने अपनी कृति “ख्यात” में लिखा:
“सीहा राठौड़, जैचंद कन्नौजिया की संतति, पाली आकर बस्यो।“
(अर्थ: सीहा राठौड़, जो कन्नौज के राजा जयचंद की संतान था, पाली आकर बसा।
विषय | नैणसी का मत |
---|---|
मूल वंश | सूर्यवंशी, इक्ष्वाकु क्षत्रिय |
मूल स्थान | अयोध्या → कन्नौज |
प्रमुख पूर्वज | राजा जयचंद्र गहड़वाल |
राजस्थान में आगमन | राव सीहा द्वारा, पाली से आरंभ |
स्थापना | मारवाड़ राज्य की नींव रखी गई |
संदर्भ:
- “नैणसी री ख्यात”
- “मारवाड़ रा परगना री विगत”
- आधुनिक इतिहासकारों द्वारा नैणसी की रचनाओं का विश्लेषण
यह रहा मारवाड़ के राठौड़ वंश की वंशावली (Rathore Dynasty of Marwar) एक टेबल (Table of Contents) के रूप में, जिसमें प्रमुख शासकों के नाम, शासनकाल और विशेष जानकारी शामिल है। यह वंशावली राव सीहा से शुरू होती है और आधुनिक काल तक चलती है।
राठौड़ वंश की वंशावली – शासनकाल सहित (Marwar Rathore Dynasty)
क्रम | शासक का नाम | शासनकाल | विशेष जानकारी |
---|---|---|---|
1. | राव सीहा | 1226–1273 ई. | राठौड़ वंश का संस्थापक, पाली में राज्य स्थापना |
2. | राव आस्तान | 1273–1291 ई. | मेवाड़ और स्थानीय राजाओं से संघर्ष |
3. | राव दुडा | 1291–1309 ई. | राज्य विस्तार के प्रयास |
4. | राव सूरसिंह | 1309–1323 ई. | शासकीय संगठन को मजबूत किया |
5. | राव कान्हा | 1323–1338 ई. | आंतरिक विद्रोहों का सामना किया |
6. | राव जल्हण | 1338–1357 ई. | मंडोर पर अधिकार |
7. | राव चूड़ा | 1357–1374 ई. | मारवाड़ का विस्तार जारी रखा |
8. | राव रिड़मल | 1374–1393 ई. | मंडोर को राजधानी बनाया |
9. | राव कान्हड़देव | 1393–1427 ई. | गुजरात सुल्तानों से संघर्ष |
10. | राव रणमल | 1427–1438 ई. | मेवाड़ की राजनीति में हस्तक्षेप, राणा कुम्भा से संबंध |
11. | राव जोधा | 1438–1489 ई. | 1459 में जोधपुर की स्थापना, राठौड़ साम्राज्य का विस्तार |
12. | राव सूजा | 1489–1515 ई. | दिल्ली और गुजरात सुल्तानों से संघर्ष |
13. | राव गांगा | 1515–1532 ई. | बीकानेर और मेवाड़ से संघर्ष |
14. | राव मालदेव | 1532–1562 ई. | राठौड़ों का स्वर्ण युग, शेरशाह सूरी से युद्ध |
15. | राव चंद्रसेन | 1562–1581 ई. | अकबर से संघर्ष, मेवाड़ में शरण |
16. | राजा उदयसिंह | 1583–1595 ई. | अकबर के अधीन, राजपूत-मुगल संबंध |
17. | महाराजा सूरसिंह | 1595–1619 ई. | मुगल सेना में प्रमुख पद |
18. | महाराजा गजसिंह | 1619–1638 ई. | शाहजहाँ की सेवा |
19. | महाराजा जसवंत सिंह | 1638–1678 ई. | औरंगज़ेब के काल में प्रमुख, अफ़ग़ान युद्ध में मृत्यु |
20. | महाराजा अजीत सिंह | 1707–1724 ई. | औरंगज़ेब के बाद सत्ता पुनः प्राप्त, मारवाड़ को स्वतंत्र किया |
21. | महाराजा अभयसिंह | 1724–1749 ई. | मराठों से संघर्ष, जोधपुर का पुनर्गठन |
22. | महाराजा रामसिंह | 1749–1751 ई. | अल्पकालिक शासन |
23. | महाराजा बख्तसिंह | 1751–1752 ई. | भीतरी गृहयुद्ध |
24. | महाराजा विजयसिंह | 1752–1793 ई. | आर्थिक सुधार, सांस्कृतिक विकास |
25. | महाराजा भीमसिंह | 1793–1803 ई. | राजनीतिक अस्थिरता |
26. | महाराजा मानसिंह | 1803–1843 ई. | ब्रिटिश संधियाँ, प्रशासनिक सुधार |
27. | महाराजा तख्तसिंह | 1843–1873 ई. | समाज सुधार, ब्रिटिश सहयोगी |
28. | महाराजा जसवंत सिंह II | 1873–1895 ई. | आधुनिक संस्थानों की स्थापना |
29. | महाराजा सरदार सिंह | 1895–1911 ई. | ब्रिटिश नीतियों में सक्रिय भागीदारी |
30. | महाराजा उम्मेद सिंह | 1918–1947 ई. | उम्मेद भवन का निर्माण, स्वतंत्रता पूर्व शासक |
31. | महाराजा हनुवंत सिंह | 1947–1952 ई. | स्वतंत्र भारत में विलय, राजनीतिज्ञ |
32. | महाराजा गजसिंह II | 1952–वर्तमान तक | सांस्कृतिक प्रतिनिधि, विरासत को संजोने वाले |
राजनीतिक और सैन्य भूमिका
- राठौड़ों ने कई बार मुगलों के साथ संघर्ष और संधियाँ कीं।
- इन्होंने राजपूताना की अखंडता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
- चंद्रसेन राठौड़ ने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष कर मेवाड़ में शरण ली थी।
सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान
- मेहरानगढ़ किला, उम्मेद भवन, मंडोर स्मारक, राठौड़ों की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- संगीत, चित्रकला, स्थापत्य और साहित्य को बढ़ावा दिया गया।
- मारवाड़ी भाषा, साहित्य और लोककला का संरक्षण किया।