महाराणा सांगा का इतिहास: राजपूत एकता, विजय अभियान और खानवा का संग्राम

महाराणा सांगा का इतिहास

  • महाराणा सांगा/संग्रामसिंह जन्म – 12 अप्रैल, 1482 तथा मृत्यु – 24 मई, 1509 को हुई, सांगा के पिता का नाम महाराणा रायमल्ल थे
  • महाराणा सांगा/संग्रामसिंह मेवाड़ के यशस्वी शासक महाराणा कुम्भा के पौत्र तथा महाराणा रायमल्ल के पुत्र थे ।
  • महाराणा सांगा का राज्याभिषेक 24 मई, 1509 को हुआ।
  • मेवाड़ के ज्योतिष ने भविष्यवाणी की , कि मेवाड़ का अगला शासक महाराणा सांगा बनेंगे। चूंकि कि महाराणा सांगा के बड़े भाई पृथ्वीराज और जयमल थे।
  • महाराणा सांगा को पृथ्वीराज और जयमल ज्योतिष भविष्यवाणी के कारण मारना चाहते थे।
  • अजमेर के करमचंद पंवार ने सांगा को उनके बड़े भाई पृथ्वीराज और जयमल से बचाकर अपने पास रखा।
  • करमचंद पंवार महाराणा सांगा के राज्याभिषेक के पूर्व तक उनके आश्रयदाता बने थे।
  • महाराणा सांगा जब मेवाड़ के शासक बने तब मेवाड़ चारों ओर से शत्रुओं से गिरा हुआ था।

महाराणा सांगा के समकालीन शासक —

  • दिल्ली लोदी वंश सुल्तान सिकंदर लोदी
  • गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा
  • मालवा में नासिर शाह ख़िलजी
महाराणा सांगा द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध —
  1. गागरोन का युद्ध – 1519 ई महाराणा सांगा और महमूद ख़िलजी द्वितीय के मध्य
  2. खतौली का युद्ध – 1517 ई महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य
  3. बयाना का युद्ध – 16 फरवरी 1527 ई महाराणा सांगा और बाबर के मध्य
  4. खानवा का युद्ध – 17 मार्च 1527 ई महाराणा सांगा और बाबर के मध्य
  5. बाड़ी का युद्ध – 1519 ई. महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य

महाराणा सांगा का इतिहास

महाराणा सांगा ने पड़ोसी राजपूत शासकों को अपने प्रभाव में लाने के लिए वैवाहिक संबंध स्थापित किए।राणा सांगा ने अपने मित्र करमचंद पंवार को 15 लाख वार्षिक आय वाले परगने अजमेर परबतसर, मांडल, फुलिया तथा बनेड़ा की जागीर प्रदान की।कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा सांगा के राज्य की सीमा बहुत दूर तक फैल गई थी।

सांगा ने शीघ्र ही संपूर्ण राजस्थान पर अपना प्रभाव कायम कर लिया।महाराणा सांगा के राज्य की सीमा उतर में बीना, पूर्व में सिंधु नदी, दक्कन में मालवा और पश्चिम में दुर्गम अरावली शैलमाला तक फैली हुई थी। राणा सांगा ने मेवाड़ राज्य की पुनः उन्नति अपनी योग्यता, बुद्धिमता तथा कुशल प्रशासन से की। मेवाड़ के पड़ोसी राज्यों की नजर मेवाड़ पर थी।

मालवा, गुजरात व दिल्ली के सुल्तानों ने मेवाड़ पर आक्रमण कर उसे पूरी तरह नष्ट करने का प्रयत्न करने लगे।

राणा सांगा और मालवा का संबंध

15वीं और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में मालवा एक स्वतंत्र सल्तनत थी, जिसकी राजधानी मांडू थी।1511 ई. में नसीरुद्दीन ख़िलजी की मृत्यु हो गई उसके बाद महमूद ख़िलजी द्वितीय मालवा की गद्दी पर बैठा। लेकिन नसीरुद्दीन के भाई साहिब खां ने महमूद को हटाकर गद्दी पर बैठ गया।

महमूद खिलजी द्वितीय के शासनकाल में राज्य कमजोर हो चुका था और आंतरिक संघर्ष, षड्यंत्र, तथा बाहरी आक्रमणों का शिकार हो रहा था।1519 ई. में महमूद खिलजी द्वितीय और महाराणा सांगा के मध्य युद्ध हुआ इस युद्ध में सांगा की विजय हुई, महाराणा सांगा ने इस युद्ध में महमूद खिलजी को बंदी बनाकर रखा।

लेकिन राणा सांगा ने दया दिखाते हुए वापिस रिहा कर दिया। गागरोन युद्ध के पश्चात् मेवाड़ को मालवा के आक्रमण से मुक्ति मिल गई।

राणा सांगा और गुजरात:

राणा सांगा और गुजरात सांगा के राज्याभिषेक के समय गुजरात का शासक महमूद बेगङा का शासन था। 1511 ई में उसका देहांत हो गया इसके बाद उसका पुत्र मुजफ्फरशाह द्वितीय शासक बना।ईडर राज्य में हस्तक्षेप : राणा सांगा ने रायमल की ईडर राज्य की गद्दी दिलाने में मदद की।सुल्तान मुजफ्फरशाह का उतराधिकारी सिकंदरशाह था

परंतु उसका दूसरा पुत्र बहादुरशाह गुजरात का शासक बनना चाहता था तब बहादुरशाह राणा सांगा की शरण में आया इसने सांगा की मदद से कही बार गुजरात को लुटवाया जिससे गुजरात की शक्ति निर्बल होती गई।लोदी वंश और महाराणा सांगा : खतौली का युद्ध सांगा के राज्याभिषेक के समय दिल्ली का सुल्तान सिकंदर लोदी था।

सिकंदर लोदी के पश्चात् ज्येष्ठ पुत्र इब्राहिम लोदी 22 नवंबर, 1517 ई. को दिल्ली का शासक बना । बाड़ी का युद्ध – 1519 ई. महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्यसांगा के राज्याभिषेक के समय गुजरात का शासक महमूद बेगङा का शासन था। 1511 ई में उसका देहांत हो गया इसके बाद उसका पुत्र मुजफ्फरशाह द्वितीय शासक बना।

ईडर राज्य में हस्तक्षेप :  राणा सांगा ने रायमल को ईडर राज्य की गद्दी दिलाने में मदद की।

सुल्तान मुजफ्फरशाह का उतराधिकारी सिकंदरशाह था परंतु उसका दूसरा पुत्र बहादुरशाह गुजरात का शासक बनना चाहता था  तब बहादुरशाह राणा सांगा की शरण में आया इसने सांगा की मदद से कही बार गुजरात को लुटवाया जिससे गुजरात की शक्ति निर्बल होती गई।

महाराणा सांगा और लोदी वंश :

सांगा के राज्याभिषेक के समय दिल्ली का सुल्तान सिकंदर लोदी था। सिकंदर लोदी के पश्चात् ज्येष्ठ पुत्र इब्राहिम लोदी 22 नवंबर, 1517 ई. को दिल्ली का शासक बना ।

बाड़ी का युद्ध – 1519 ई. महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ।

खानवा का युद्ध (Battle of Khanwa – 1527)

खानवा का युद्ध भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक युद्ध था। यह युद्ध 17 मार्च 1527 को राजस्थान के भरतपुर जिले के पास खानवा नामक स्थान पर लड़ा गया था। यह संघर्ष था एक ओर मुगल सम्राट बाबर और दूसरी ओर राजपूत संघ के नेता महाराणा सांगा के बीच।

खानवा युद्ध के प्रमुख कारण

1. बाबर के भारत आगमन और सत्ता विस्तार की महत्वाकांक्षा

  • बाबर ने 1526 में पानीपत का पहला युद्ध जीतकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया था।
  • उसका उद्देश्य भारत में एक स्थायी मुगल साम्राज्य स्थापित करना था।
  • वह चाहता था कि भारत के सभी शासक उसकी सत्ता स्वीकार करें।

2. महाराणा सांगा की दिल्ली के सिंहासन पर दावा

  • महाराणा सांगा ने पहले लोदी वंश के पतन के बाद सोचा था कि अब दिल्ली की गद्दी पर राजपूत शासन स्थापित किया जाए।
  • सांगा ने राजपूतों को एकजुट कर शक्तिशाली संघ बनाया था और वह बाबर को विदेशी आक्रांता मानते थे।
  • वे दिल्ली पर कब्जा करने के लिए तैयार थे, लेकिन बाबर के आगमन ने उनके मार्ग में बाधा डाली।

3. इब्राहिम लोदी के साथ सांगा का गुप्त समर्थन

  • पानीपत के युद्ध से पहले सांगा ने इब्राहिम लोदी से सहयोग का वादा किया था, ताकि बाबर को पराजित किया जा सके।
  • बाबर को जब यह बात पता चली तो वह सांगा को सबसे बड़ा खतरा मानने लगा।

4. बाबर द्वारा भारत में इस्लामी शासन की स्थापना का उद्देश्य

  • बाबर ने भारत को “दारुल-हरब” (अधर्मी भूमि) मानते हुए इसे “दारुल-इस्लाम” (इस्लामी भूमि) में बदलने का नारा दिया।
  • उसने युद्ध को “जिहाद” घोषित किया और अपने सैनिकों को धार्मिक उत्साह से प्रेरित किया।

5. राजपूतों की शक्ति और एकता से बाबर की घबराहट

  • राजपूत संघ में 100 से अधिक राजाओं और सरदारों की सेना थी, जिनमें मेवाड़, मारवाड़, आमेर, रेवाड़ी, बूंदी आदि शामिल थे।
  • बाबर को डर था कि यदि यह संघ मजबूत हुआ तो उसका शासन समाप्त हो जाएगा।

6. बाबर की रणनीति और सांगा की वीरता में टकराव

  • बाबर एक कूटनीतिक और सैन्य रणनीतिकार था।
  • महाराणा सांगा एक वीर, धार्मिक, और उच्च नैतिक मूल्यों वाला योद्धा था। दोनों की महत्वाकांक्षा आमने-सामने आ गई।

7. राणा सांगा के कुछ सहयोगियों द्वारा विश्वासघात

  • युद्ध के दौरान कुछ राजपूत सरदारों (जैसे सिलहरी) ने बाबर से मिलकर राणा सांगा का साथ छोड़ा। यह भी एक गुप्त कारण बना।

दोनों पक्षों की सेना

पक्षसेनापतिसेना की ताकतसहयोगी
मुगल सेनाबाबर15,000-20,000 सैनिक, तोपखानाअफगान, तुर्क सैनिक, जिहाद में प्रेरित
राजपूत संघमहाराणा सांगा80,000 से अधिक सैनिक100+ राजपूत सरदार – बूंदी, मारवाड़, आमेर, रेवाड़ी, हरियाणा के योद्धा

बाबर के पास तोपें (Topkhana), घोड़े, तुर्की तीरंदाज और रणनीतिक सैन्य रचना (“तुलुगमा” और “अरबा”) का लाभ था।
राजपूत वीरता, संगठन और भारी संख्याबल के बावजूद तोपों से मुकाबला करना कठिन था।

खानवा युद्ध (1527) के प्रमुख योद्धा

खानवा युद्ध में दो शक्तिशाली पक्ष आमने-सामने थे:

  • एक ओर थे मुगल सम्राट बाबर और उसकी तुर्क-मंगोल सेना।
  • दूसरी ओर थे महाराणा सांगा और उनका विशाल राजपूत संघ

1.महाराणा सांगा की ओर से प्रमुख योद्धा (राजपूत पक्ष)

योद्धा का नामविवरण
महाराणा सांगा (राणा संग्राम सिंह)मेवाड़ के शक्तिशाली राजा, राजपूत संघ के प्रमुख नेता। युद्ध में घायल हुए।
राव गोपाल (मारवाड़)मारवाड़ राज्य के वीर योद्धा, राणा सांगा के सहयोगी।
राव रतन सिंह (बूंदी)बूंदी के शासक, राजपूत संघ के अग्रणी योद्धा।
राव सुल्तान सिंह (अमेर)आमेर के कछवाहा राजपूत, युद्ध में भागीदार।
राव रामदास (नरवर)मध्य भारत से आए साहसी योद्धा।
राव हरिदास (दौसा)राजस्थान के दौसा क्षेत्र से, राणा के विश्वस्त।
राजा पृथ्वीराज चौहान (रैवाड़ी)हरियाणा क्षेत्र से, युद्ध में योगदान।
मेदिनी राय (चंदेरी)चंदेरी का शक्तिशाली राजपूत नेता। बाबर से पहले भिड़ चुके थे।
सिलहड़ी राजपूत (मालवा)शुरू में सांगा के साथ थे, लेकिन युद्ध के दौरान बाबर से मिल गए (विश्वासघात)।

2. बाबर की ओर से प्रमुख योद्धा (मुगल पक्ष)

योद्धा का नामविवरण
बाबरयुद्ध के नेता, तुर्क-मंगोल मूल के मुगल शासक। रणनीति, तोपों और “तुलुगमा प्रणाली” से युद्ध जीता।
मीर अली खलिलबाबर का प्रमुख सैन्य सलाहकार और सेनापति।
असकरनयुद्ध में बहादुरी से लड़ा।
कासिम हुमायूंतोपखाना और घुड़सवारों का नेतृत्व किया।
उस्ताद अली और मुस्तफा रूमीबाबर की सेना के तोपची (तोप विशेषज्ञ), जिन्होंने युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई।
हुमायूंबाबर का पुत्र, युद्ध में हिस्सा लिया (यद्यपि नेतृत्व में नहीं)।
मुहम्मद जमान मिर्जाबाबर के रिश्तेदार, सैन्य अधिकारी।

विशेष बात

  • राणा सांगा के राजपूत योद्धा संख्या में बहुत अधिक थे और उनमें अपार वीरता थी, लेकिन उनके पास तोपखाना या आधुनिक हथियार नहीं थे।
  • बाबर की सेना भले ही कम थी, लेकिन तोपों, घुड़सवारों, और रणनीतिक युद्ध योजना के कारण उन्होंने भारी जीत हासिल की।

युद्ध का वर्णन (Battle Description)

  1. बाबर की रणनीति:
    • बाबर ने युद्ध को जिहाद का स्वरूप दिया और अपनी सेना को धार्मिक उत्साह से प्रेरित किया।
    • उसने “तुलुगमा प्रणाली” अपनाई — जिसमें सेना को दाएँ, बाएँ और केंद्र में बाँटा गया।
    • उसने युद्धभूमि पर अपने सैनिकों के सामने लकड़ी और पत्थर की दीवारें, और उनके बीच में तोपें तैनात कीं।
  2. राजपूत आक्रमण:
    • राजपूतों ने परंपरागत शैली में सीधा और भीषण आक्रमण किया।
    • युद्ध के प्रारंभ में राजपूत भारी पड़े और उन्होंने बाबर के कई सैनिकों को मार गिराया।
  3. तोपखाने का प्रभाव:
    • बाबर की तोपों ने राजपूत सेना की आगे बढ़ने की क्षमता को प्रभावित किया।
    • घोड़े डरकर भागने लगे और राजपूतों की पंक्ति टूट गई।
  4. गद्दारी और धोखा:
    • युद्ध के बीच राणा सांगा के कुछ सहयोगियों ने धोखा दिया। खासतौर पर सिलहड़ी राजपूत बाबर के पक्ष में चले गए।
    • राणा सांगा को युद्ध के दौरान एक तीर लगा, जिससे वे युद्धभूमि से हटा दिए गए।
  5. राजपूत सेना की हार:
    • महाराणा के घायल होने के बाद सेना में अफरा-तफरी मच गई।
    • बाबर की संगठित और आधुनिक युद्धनीति के सामने राजपूतों की पारंपरिक वीरता हार गई।

युद्ध का परिणाम (Result of Battle)

बिंदुविवरण
विजेताबाबर (मुगल सेना)
पराजितमहाराणा सांगा (घायल हुए, फिर युद्धक्षेत्र छोड़ना पड़ा)
प्रभावबाबर ने खुद को भारत का सम्राट घोषित किया।
सांगा का भविष्यघायल महाराणा सांगा ने फिर शक्ति एकत्र करनी चाही लेकिन 1528 में उनकी मृत्यु हो गई (कहते हैं विष देकर मारा गया)।
परिणाममुगल साम्राज्य की नींव मजबूत हुई, राजपूत शक्ति को गहरा आघात लगा।

खानवा युद्ध का ऐतिहासिक महत्व

  1. भारत में तोपखाने के निर्णायक प्रयोग का पहला बड़ा उदाहरण।
  2. मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्राप्त हुआ।
  3. राजपूत शक्ति की एकता में दरार पड़ी।
  4. युद्ध ने दिखाया कि पारंपरिक युद्धशैली अब आधुनिक हथियारों के सामने कमजोर पड़ रही थी।

निष्कर्ष

खानवा का युद्ध केवल एक लड़ाई नहीं थी – यह भारत में मध्यकालीन शक्तियों के टकराव का प्रतीक था।

  • बाबर की आधुनिक रणनीति और हथियारों ने राजपूतों की पारंपरिक बहादुरी को पराजित किया।
  • यह युद्ध भारत में एक नए युग – मुगल काल की शुरुआत का कारण बना।

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