जनजातीय आंदोलन भील – मीणा किसान आंदोलन के प्रमुख प्रकार
1. भील आंदोलन
क्षेत्र
- मेवाड़
- डूंगरपुर
- बांसवाड़ा
- सिरोही क्षेत्र
पृष्ठभूमि
- भील समुदाय अर्द्धस्वतंत्र जीवन व्यतीत करता था।
- अंग्रेज अधिकारी कर्नल टॉड ने भोमट क्षेत्र पर नियंत्रण करने का प्रयास किया।
- इस हस्तक्षेप से भीलों में असंतोष फैला।
प्रमुख घटनाएँ
- 1823 ई. – भील विद्रोह हुआ, जिसे अंग्रेजी सैन्य बल ने दबा दिया।
- 1841 ई. – मेवाड़ भील कोर का गठन किया गया।
- मुख्यालय – खैरखाड़ा
- प्रथम कमांडेंट – कैप्टन विलियम हंटर
- 1857 के पश्चात् – भीलों को उनके वन संबंधी अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
भील आंदोलन में गोविंद गिरी का योगदान
1. गोविंद गिरी का परिचय
- जन्म : 20 दिसम्बर 1858
- स्थान : डूंगरपुर राज्य के बाँसिया (बेडसा) गाँव
- परिवार : बंजारा परिवार
- शिक्षा : कोटा-बूंदी के अखाड़े के गुरु राज गिरि से दीक्षा ली।
2. प्रेरणा और विचारधारा
- गोविंद गिरी पर 1857 की क्रांति और स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।
- 1881 ई. में गोविंद गिरी की स्वामी दयानंद से भेंट हुई।
- दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से गोविंद गिरी ने भीलों को संगठित करने का निश्चय किया।
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3. भगत आंदोलन की शुरुआत
- गोविंद गिरी ने भील समुदाय को जागरूक करने और संगठित करने के लिए भगत आंदोलन चलाया।
- उद्देश्य :
- सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन
- शराबबंदी
- एकता और भाईचारा
- अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष
4. सम्प सभा का गठन (1883)
- 1883 ई. – गोविंद गिरी ने सम्प सभा की स्थापना की।
- ‘सम्प सभा’ का तात्पर्य था – पारस्परिक प्रेम और एकता का संवर्धन करने वाला संगठन।
- सम्प सभा के 10 नियम बनाए गए, जिनमें अनुशासन, भाईचारा, नशामुक्ति और शोषण के खिलाफ संघर्ष पर जोर था।
5. मानगढ़ अधिवेशन (1903)
- 1903 ई. – गोविंद गिरी ने सम्प सभा का पहला अधिवेशन मानगढ़ पहाड़ी पर आयोजित किया।
- इसमें हजारों भील एकत्रित हुए और उन्होंने सामाजिक सुधार तथा राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष का संकल्प लिया।
गोविंद गिरी ने भीलों को सामाजिक सुधार, संगठन और अधिकारों की लड़ाई के लिए जागृत किया।
- भगत आंदोलन और सम्प सभा ने भील आंदोलन को नई दिशा दी।
- मानगढ़ का अधिवेशन आगे चलकर मानगढ़ जनसंहार (1913) जैसी ऐतिहासिक घटना का केंद्र बना।
गोविंद गिरी और सम्प सभा
सम्प सभा और भगत पंथ
- गोविंद गिरी ने 1883 ई. में सम्प सभा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था →
- पारस्परिक प्रेम,
- एकता,
- सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन,
- और शोषण के विरुद्ध संघर्ष।
- सम्प सभा को हिन्दू सांस्कृतिक दायरे में बनाए रखने और भीलों को धार्मिक रूप से संगठित करने के लिए गोविंद गिरी ने भगत पंथ की स्थापना की।
धूणी की स्थापना
- गोविंद गिरी ने अपनी पहली धूणी (धार्मिक अग्निकुंड/आश्रम) अपने गाँव के पास छाणी डूंगरी में स्थापित की।
- इस धूणी की सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखने के लिए उन्होंने कोतवालों की नियुक्ति की।
शिष्य और अनुयायी
- गोविंद गिरी के प्रमुख शिष्यों में से एक थे → पूंजा धीरजी।
- शिष्यों और अनुयायियों ने भीलों में धार्मिक अनुशासन, भाईचारा और एकजुटता को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गोविंद गिरी ने सम्प सभा और भगत पंथ के माध्यम से भीलों को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से संगठित किया।
- छाणी डूंगरी की धूणी और शिष्यों के माध्यम से यह आंदोलन गाँव-गाँव तक फैला।
- इसने भील समुदाय को पहली बार संगठित पहचान और नेतृत्व प्रदान किया।
मानगढ़ का विराट सम्मेलन और जनसंहार (1913)
सम्मेलन का आह्वान
- गोविंद गिरी ने अक्टूबर 1913 ई. में भीलों को मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा) पर एकत्र होने का आह्वान किया।
- इस विराट सम्मेलन का उद्देश्य था –
- भीलों को संगठनबद्ध करना,
- सम्प सभा और भगत पंथ की नीतियों का प्रचार,
- सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष।
रियासतों और अंग्रेजों की चिंता
- मानगढ़ सम्मेलन से आसपास की भील रियासतें –
- बांसवाड़ा,
- डूंगरपुर,
- ईडर
चिंतित हो गईं।
- इन रियासतों ने संबंधित अंग्रेज अधिकारी AGG (Agent to the Governor General) से भीलों के दमन की मांग की।
दमन की तैयारी
- नवंबर 1913 ई. में अंग्रेजी और रियासती सेनाओं ने मानगढ़ पहाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया।
- इसमें शामिल थे –
- वेल्ज़ली राइफल्स,
- राजपूताना रेजीमेंट,
- मेवाड़ भील कोर,
- जाट रेजीमेंट।
मानगढ़ जनसंहार (17 नवम्बर 1913)
- 17 नवम्बर 1913 ई. को मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्र भीलों पर अचानक गोलियाँ बरसा दी गईं।
- इस नरसंहार में लगभग 1500 स्त्री-पुरुष मौके पर ही मारे गए।
- इस घटना को इतिहास में “मानगढ़ जनसंहार” या “भारत का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड” कहा जाता है।
मानगढ़ जनसंहार भील आंदोलन का सबसे बड़ा और क्रूर मोड़ था।
- गोविंद गिरी के नेतृत्व में भीलों ने शोषण और अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
- अंग्रेज और सामंती शक्तियों ने मिलकर इसे बेरहमी से कुचल दिया।
- यह घटना राजस्थान के जनजातीय आंदोलनों को ही नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को भी गहराई से प्रभावित करती है।
मानगढ़ जनसंहार के बाद गोविंद गिरी का जीवन
गिरफ्तारी
- मानगढ़ जनसंहार (17 नवम्बर 1913) के बाद अंग्रेज और रियासती सेनाओं ने गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर लिया।
- उन पर आंदोलन और विद्रोह भड़काने का आरोप लगाया गया।
सजा
- गोविंद गिरी पर मुकदमा चलाकर उन्हें अहमदाबाद कोर्ट में पेश किया गया।
- अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा सुनाई।
अंतिम जीवन
- कारावास की अवधि पूरी करने के बाद गोविंद गिरी ने अपना शेष जीवन गुजरात के कम्बोर्ड नामक स्थान पर बिताया।
- यहीं से उन्होंने अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश देते रहे।
गोविंद गिरी ने अपना पूरा जीवन भील समाज के उत्थान, सामाजिक सुधार, धार्मिक जागरण और शोषण के विरुद्ध संघर्ष में समर्पित कर दिया।
- उनकी गिरफ्तारी और आजीवन कारावास के बावजूद, उनका आंदोलन भील समाज में संगठन, साहस और अधिकारों की चेतना जगाने में सफल रहा।
- मानगढ़ जनसंहार और गोविंद गिरी का त्याग आज भी राजस्थान के जनजातीय आंदोलनों की प्रेरणा है।
मोतीलाल तेजावत का योगदान
जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म : 1887 ई.
- स्थान : कोल्यारी गाँव, फलासिया (मेवाड़)
- परिवार : विकाना ओसवाल (जैन) परिवार
एकी आंदोलन (1921) – भोमट आंदोलन
- मोतीलाल तेजावत ने आदिवासी किसानों पर हो रहे अत्याचार, बेगार और अत्यधिक करों के विरुद्ध 1921 ई. में चिल्लोंड से एकी आंदोलन शुरू किया।
- इसे भोमट आंदोलन भी कहा जाता है।
- इस आंदोलन का उद्देश्य था →
- करों में राहत,
- बेगार प्रथा का अंत,
- सामंती जुल्मों से मुक्ति।
मेवाड़ की पुकार और 21 मांगें
- तेजावत ने आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों से संबंधित तथ्य एकत्र किए।
- उन्होंने 21 मांगों का विवरण देते हुए “मेवाड़ की पुकार” नामक पुस्तिका तैयार की।
- यह पुस्तिका मेवाड़ के महाराणा को प्रस्तुत की गई।
नीमड़ा नरसंहार (7 अप्रैल 1922)
- तेजावत ने विजयनगर राज्य के नीमड़ा गाँव में एक बड़ा सम्मेलन बुलाया।
- सम्मेलन को विफल करने के लिए मेवाड़ भील कोर के सैनिकों ने गाँव को घेर लिया।
- 7 अप्रैल 1922 को आदिवासियों पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई।
- इसमें लगभग 1200 भील आदिवासी मारे गए।
- यह घटना इतिहास में नीमड़ा नरसंहार के नाम से प्रसिद्ध हुई।
भूमिगत आंदोलन और आत्मसमर्पण
- नीमड़ा नरसंहार के बाद मोतीलाल तेजावत भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करने लगे।
- 1929 ई. – महात्मा गांधी की सलाह पर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।
- 1936 तक उन्हें उदयपुर की सेंट्रल जेल में रखा गया।
भारत छोड़ो आंदोलन और अंतिम जीवन
- जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया।
- आज़ादी के बाद भी वे आदिवासियों के अधिकारों के लिए सक्रिय रहे।
- मृत्यु : 5 दिसम्बर 1963
- उपनाम : भीलों के मसीहा, बावजी
मोतीलाल तेजावत ने भीलों और आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई में अपना पूरा जीवन समर्पित किया।
- एकी आंदोलन और मेवाड़ की पुकार ने आदिवासियों को जागरूक किया।
- नीमड़ा नरसंहार ने उनके संघर्ष को ऐतिहासिक महत्व दिया।
- वे सदा भीलों के मसीहा और बावजी के रूप में याद किए जाते हैं।
मीणा आंदोलन
1. उदयपुर राज्य का मीणा विद्रोह (1851–1860)
- 1851 ई. – उदयपुर राज्य के जहाजपुर परगने में मीणाओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
- विद्रोह को दबाने के लिए हाकिम रघुनाथ सिंह मेहता को नियुक्त किया गया।
- लेकिन रघुनाथ सिंह ने दमन के साथ-साथ अवैध वसूलियाँ भी शुरू कर दीं।
- अंततः 1860 ई. तक मीणाओं का विद्रोह दबा दिया गया।
2. जयपुर राज्य का मीणा आंदोलन
(क) क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट और जरायम पेशा कानून
- 1924 ई. – ब्रिटिश भारत सरकार ने Criminal Tribes Act लागू किया।
- इसी आधार पर जयपुर राज्य ने जरायम पेशा कानून (1923 ई.) लागू किया।
- इसके अंतर्गत –
- मीणा समाज के स्त्री-पुरुषों को अपराधी जाति घोषित कर दिया गया।
- उन्हें प्रतिदिन नजदीकी थाने में उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती थी।
- इससे मीणा समाज में गहरा असंतोष फैल गया।
(ख) मीणा क्षत्रिय महासभा (1933)
- 1933 ई. – मीणा समाज ने अपने अस्तित्व की रक्षा और अधिकारों की मांग को लेकर मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन किया।
- इसका उद्देश्य था → जरायम पेशा कानून को रद्द करना और मीणाओं को अपराधी जाति की संज्ञा से मुक्त कराना।
(ग) नीमकाथाना अधिवेशन (1944)
- अप्रैल 1944 ई. – सीकर जिले के नीमकाथाना में मीणाओं का एक विशाल अधिवेशन आयोजित किया गया।
- अध्यक्षता : जैन संत मगन सागर
- इसी अधिवेशन में पंडित बंशीधर शर्मा की अध्यक्षता में राज्य मीणा सुधार समिति का गठन किया गया।
- इस समिति ने मीणा समाज के सुधार और जरायम पेशा कानून को हटाने के लिए संघर्ष किया।
मीणा आंदोलन दो चरणों में देखा जाता है –
- 1851–1860 : उदयपुर राज्य में अंग्रेजी हस्तक्षेप और अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह।
- 1924–1944 : जयपुर राज्य में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट और जरायम पेशा कानून के विरुद्ध संघर्ष।
इस आंदोलन ने मीणा समाज को अपराधी जाति की संज्ञा से मुक्त कराने और सामाजिक-राजनीतिक चेतना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Revision Box – भील आंदोलन और मीणा आंदोलन
- 1823 – भील विद्रोह (भोमट क्षेत्र, कर्नल टॉड के हस्तक्षेप के विरोध में)।
- 1841 – मेवाड़ भील कोर की स्थापना (मुख्यालय – खैरखाड़ा, प्रथम कमांडेंट – कैप्टन विलियम हंटर)।
- 1857 के बाद – भीलों को वन अधिकारों से वंचित किया गया।
- 1858 – गोविंद गिरी का जन्म (डूंगरपुर, बाँसिया गाँव)।
- 1883 – गोविंद गिरी द्वारा सम्प सभा की स्थापना।
- 1903 – सम्प सभा का प्रथम अधिवेशन मानगढ़ पहाड़ी पर।
- 17 नवम्बर 1913 – मानगढ़ जनसंहार (1500 भील शहीद, भारत का दूसरा जलियांवाला बाग)।
- 1913 के बाद – गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा।
- अंतिम जीवन – गुजरात के कम्बोर्ड में व्यतीत।
- 1851–1860 – उदयपुर राज्य में मीणा विद्रोह (जहाजपुर परगना)।
- 1924 – क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट और जरायम पेशा कानून लागू।
- 1933 – मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन।
- 1944 – नीमकाथाना अधिवेशन, राज्य मीणा सुधार समिति की स्थापना।
- 1945 – लक्ष्मी नारायण झरवाल के नेतृत्व में राज्यव्यापी आंदोलन।
- जुलाई 1946 – स्त्रियों और बच्चों को जरायम पेशा कानून से मुक्त किया गया।
- 1952 – जरायम पेशा कानून पूरी तरह समाप्त।
Timeline Table – भील आंदोलन और मीणा आंदोलन
| वर्ष/तिथि | आंदोलन/घटना | क्षेत्र/स्थान | प्रमुख नेता/व्यक्ति | परिणाम/महत्व |
|---|---|---|---|---|
| 1823 | भील विद्रोह | भोमट (मेवाड़) | – | अंग्रेजी सेना ने दमन किया |
| 1841 | मेवाड़ भील कोर की स्थापना | खैरखाड़ा | कैप्टन विलियम हंटर | भीलों पर सैन्य नियंत्रण |
| 1857 के बाद | वन अधिकार छीने गए | मेवाड़-बांसवाड़ा क्षेत्र | – | असंतोष बढ़ा |
| 20 दिसम्बर 1858 | गोविंद गिरी का जन्म | बाँसिया (डूंगरपुर) | – | भील नेता का उदय |
| 1883 | सम्प सभा की स्थापना | डूंगरपुर क्षेत्र | गोविंद गिरी | सामाजिक सुधार, एकता |
| 1903 | सम्प सभा का प्रथम अधिवेशन | मानगढ़ पहाड़ी | गोविंद गिरी | संगठन की मजबूती |
| 17 नवम्बर 1913 | मानगढ़ जनसंहार | मानगढ़ (बांसवाड़ा) | गोविंद गिरी | 1500 भील शहीद |
| 1913 के बाद | गोविंद गिरी गिरफ्तार | – | – | आजीवन कारावास |
| अंतिम जीवन | कम्बोर्ड में जीवन व्यतीत | गुजरात | गोविंद गिरी | सामाजिक सेवा |
| वर्ष/तिथि | आंदोलन/घटना | क्षेत्र/स्थान | प्रमुख नेता/व्यक्ति | परिणाम/महत्व |
|---|---|---|---|---|
| 1851–1860 | मीणा विद्रोह | जहाजपुर (उदयपुर राज्य) | – | विद्रोह दबा दिया गया |
| 1924 | क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट व जरायम पेशा कानून | जयपुर राज्य | – | मीणा समाज को अपराधी जाति घोषित |
| 1933 | मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन | जयपुर | – | कानून रद्द करने का प्रयास |
| 1944 | नीमकाथाना अधिवेशन | सीकर (नीमकाथाना) | जैन संत मगन सागर, पं. बंशीधर शर्मा | राज्य मीणा सुधार समिति गठित |
| 1945 | राज्यव्यापी आंदोलन | जयपुर राज्य | लक्ष्मी नारायण झरवाल | जरायम पेशा कानून रद्द करने की मांग |
| जुलाई 1946 | कानून में आंशिक रियायत | – | – | स्त्रियों और बच्चों को मुक्त किया |
| 1952 | जरायम पेशा कानून समाप्त | – | – | मीणाओं को सामाजिक न्याय मिला |
भील और मीणा आंदोलन – FAQ Section
Q1. भील आंदोलन कब और क्यों शुरू हुआ?
Ans. भील आंदोलन की शुरुआत 1823 ई. में हुई, जब अंग्रेज अधिकारी कर्नल टॉड ने भोमट क्षेत्र में हस्तक्षेप किया।
यह आंदोलन भीलों के वन अधिकार छिनने, करों की कठोर वसूली और शोषण के कारण हुआ।
Q2. गोविंद गिरी कौन थे और उनका योगदान क्या था?
Ans. गोविंद गिरी का जन्म 20 दिसम्बर 1858 को डूंगरपुर (बाँसिया गाँव) में हुआ।
उन्होंने सम्प सभा (1883) और भगत पंथ की स्थापना की, भीलों को सामाजिक सुधार और एकता के लिए संगठित किया।
उनका सबसे बड़ा योगदान मानगढ़ आंदोलन (1913) है।
Q3. मानगढ़ जनसंहार कब और कहाँ हुआ?
Ans. 17 नवम्बर 1913 को मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा) पर हुआ।
इसमें अंग्रेज और रियासती सेनाओं ने गोलीबारी की, जिसमें लगभग 1500 भील स्त्री-पुरुष शहीद हुए।
इसे भारत का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है।
Q4. गोविंद गिरी को क्या सजा मिली थी?
Ans. मानगढ़ जनसंहार के बाद गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर अहमदाबाद कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
उन्होंने अपना शेष जीवन गुजरात के कम्बोर्ड गाँव में बिताया।
Q5. मीणा आंदोलन किसके खिलाफ था?
Ans. मीणा आंदोलन मुख्य रूप से क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट (1924) और जरायम पेशा कानून (1923) के खिलाफ था।
इन कानूनों के अंतर्गत मीणा समाज को अपराधी जाति घोषित किया गया और उन्हें प्रतिदिन थाने में उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती थी।
Q6. मीणा क्षत्रिय महासभा कब बनी थी?
Ans. 1933 ई. में जयपुर राज्य में मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन हुआ।
इसका उद्देश्य मीणाओं को अपराधी जाति की संज्ञा से मुक्त कराना था।
Q7. मीणा आंदोलन में नीमकाथाना अधिवेशन कब हुआ था?
Ans. अप्रैल 1944 में सीकर जिले के नीमकाथाना में अधिवेशन हुआ।
इसकी अध्यक्षता जैन संत मगन सागर ने की, और राज्य मीणा सुधार समिति का गठन हुआ।
Q8. जरायम पेशा कानून कब समाप्त हुआ?
Ans. मीणा समाज के लगातार संघर्ष और आंदोलन के बाद अंततः 1952 ई. में यह कानून समाप्त कर दिया गया।