बीकानेर में किसानों की स्थिति । बीकानेर किसान आंदोलन
- राजस्थान के अन्य राज्यों की तरह बीकानेर के किसान भी सामंती शोषण से पीड़ित थे।
- यहाँ की लगभग 68.7% भूमि सामंतों (ठिकानों/जागीरों) के अधिकार में थी।
- केवल 31.3% भूमि सीधे राज्य के अधीन थी।
- किसानों से बेगार, ऊँचे कर और अन्य शोषणकारी व्यवस्थाएँ आम थीं।
गंगनहर क्षेत्र का कृषक आंदोलन (1929–30)
- बीकानेर राज्य का पहला बड़ा किसान आंदोलन गंगनहर क्षेत्र में हुआ।
- इसकी शुरुआत 1929–30 ई. में हुई।
- आंदोलन का नेतृत्व जमीदारा एसोसिएशन ने किया।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
- बीकानेर राज्य लगातार अकाल से प्रभावित रहता था।
- अकाल से निपटने और राजस्व प्राप्त करने के लिए राज्य ने गंगनहर क्षेत्र की भूमि पंजाब के धनवान कृषकों को बेचने का निर्णय लिया।
- भूमि खरीदने वाले किसानों को कुछ विशेष सुविधाएँ भी दी गईं।
समस्या
- 1927–28 ई. से इस भूमि में सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध होनी शुरू हुईं।
- लेकिन –
- पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं कराया गया।
- किसानों को पूरा पानी नहीं मिला।
- इसके बावजूद सरकार उनसे पानी का शुल्क वसूलती रही।
परिणाम
- किसानों ने इस अन्याय का विरोध किया और आंदोलन प्रारंभ किया।
- जमीदारा एसोसिएशन के नेतृत्व में यह आंदोलन बीकानेर राज्य के पहले संगठित किसान आंदोलन के रूप में सामने आया।
- इसने आगे चलकर बीकानेर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान के किसान आंदोलनों को प्रेरणा दी।
बीकानेर किसान आंदोलन की शुरुआत गंगनहर क्षेत्र (1929–30) से हुई।
- इस आंदोलन ने किसानों के सिंचाई अधिकार, न्यायपूर्ण शुल्क और शोषण के खिलाफ संगठित आवाज़ उठाने की परंपरा शुरू की।
- यह आंदोलन आगे चलकर राजस्थान में किसान राजनीति और संगठनों की नींव साबित हुआ।
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बीकानेर किसान आंदोलन – गंगनहर क्षेत्र
समस्या और असंतोष
- बीकानेर राज्य सरकार ने गंगनहर क्षेत्र की भूमि पंजाब के धनवान किसानों को बेची थी।
- इन किसानों से पानी की सुविधाओं के नाम पर पानी शुल्क वसूला जाता था, जबकि पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा था।
- इसके अतिरिक्त, जिन किसानों ने भूमि का मूल्य किस्तों में जमा करवाना था –
- सरकार ने उनसे भुगतान में थोड़ी भी देरी होने पर अत्यधिक ब्याज वसूलना शुरू कर दिया।
- इस अन्यायपूर्ण नीति से किसानों में गहरा असंतोष फैल गया।
आंदोलन की शुरुआत (16 अप्रैल 1929)
- किसानों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाया।
- 16 अप्रैल 1929 को किसानों ने जमीदारा एसोसिएशन के नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ किया।
- इस संगठन के अध्यक्ष सरदार दरबार सिंह थे।
- आंदोलन का उद्देश्य था –
- पानी शुल्क में कमी
- ब्याज की दर को घटाना
- सिंचाई का पर्याप्त पानी उपलब्ध कराना
महाराजा गंगासिंह की हस्तक्षेप (3 मार्च 1930)
- आंदोलन इतना व्यापक हो गया कि बीकानेर नरेश महाराजा गंगासिंह को सीधे हस्तक्षेप करना पड़ा।
- 3 मार्च 1930 – गंगासिंह स्वयं गंगनहर क्षेत्र में पहुँचे।
- उन्होंने किसानों की माँगों को सुना और कई राहतें देने की घोषणा की।
परिणाम
- किसानों को ब्याज की दरों और पानी शुल्क में राहत दी गई।
- गंगनहर क्षेत्र का आंदोलन बीकानेर राज्य का पहला सफल किसान आंदोलन माना जाता है।
- इस आंदोलन ने किसानों में संगठन और संघर्ष की भावना को मजबूत किया।
गंगनहर क्षेत्र का किसान आंदोलन (1929–1930) बीकानेर के किसानों की पहली बड़ी जीत थी।
- अत्यधिक ब्याज और पानी शुल्क के खिलाफ किसानों ने जमीदारा एसोसिएशन के नेतृत्व में संघर्ष किया।
- महाराजा गंगासिंह को स्वयं किसानों की माँगें माननी पड़ीं।
- इस आंदोलन ने आगे चलकर बीकानेर और राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनों की नींव रखी।
बीकानेर किसान आंदोलन
1. गंगनहर क्षेत्र का किसान आंदोलन (1929–1930)
- बीकानेर का पहला बड़ा किसान आंदोलन।
- नेतृत्व : जमीदारा एसोसिएशन (अध्यक्ष – सरदार दरबार सिंह)।
- कारण :
- किसानों को पर्याप्त पानी न मिलना।
- भूमि मूल्य की किश्तों पर अत्यधिक ब्याज।
- 16 अप्रैल 1929 – आंदोलन की शुरुआत।
- 3 मार्च 1930 – महाराजा गंगासिंह ने गंगनहर क्षेत्र पहुँचकर किसानों को राहत की घोषणाएँ कीं।
2. दूधवाखारा किसान आंदोलन (1944) – चूरू
- चूरू के दूधवाखारा गाँव के किसान भी सामंती अत्याचार से पीड़ित थे।
- 1944 ई. – जागीरदार ने बकाया कर भुगतान न करने के बहाने कई किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया।
- किसानों ने महाराजा से शिकायत की, लेकिन –
- किसान नेता चौधरी हनुमानसिंह
- एवं बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष पं. मधाराम वैध
को गिरफ्तार कर कठोर यातनाएँ दी गईं।
3. रायसिंहनगर किसान आंदोलन (1946)
- बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के नेतृत्व में दूसरा बड़ा किसान आंदोलन।
- यह आंदोलन रायसिंहनगर की घटना को लेकर हुआ।
- प्रजा परिषद ने 6 जुलाई 1946 को सम्पूर्ण बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया।
4. कांगड़ कांड (1945–1946) – रतनगढ़ तहसील
- कांगड़ गाँव (रतनगढ़ तहसील) पहले खालसा भूमि था, लेकिन 1937 में इसे जागीर क्षेत्र में दे दिया गया।
- 1945–46 ई. – अकाल के कारण फसल नष्ट हो गई।
- किसानों ने विनती की कि अनुचित लागवाग (कर) न लिया जाए, लेकिन ठाकुर गोपसिंह ने अत्याचार और बढ़ा दिए।
- 1 नवम्बर 1946 – बीकानेर प्रजा परिषद के सदस्य कांगड़ गाँव पहुँचे।
- जागीरदार ने उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया।
- यह घटना कांगड़ कांड के नाम से प्रसिद्ध हुई।
5. बीकानेर रियासत का विलय (1949)
- 30 मार्च 1949 – बीकानेर रियासत का राजस्थान में विलय हुआ।
- इसके साथ ही यहाँ का राजतंत्र और सामंतवाद समाप्त हुआ।
- किसानों के संघर्ष को संस्थागत मान्यता मिली और आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हुई।
बीकानेर किसान आंदोलन की यात्रा (1929–1949) किसानों के शोषण से मुक्ति, सिंचाई अधिकार, अनुचित कर समाप्ति और लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई थी।
- गंगनहर आंदोलन ने किसानों को पहली बार संगठित किया।
- दूधवाखारा और रायसिंहनगर आंदोलनों ने किसानों की पीड़ा को राजनीतिक मंच तक पहुँचाया।
- कांगड़ कांड ने सामंतवाद के अत्याचार को उजागर किया।
- अंततः 1949 में बीकानेर का राजस्थान में विलय हुआ और किसान आंदोलनों को स्थायी सफलता मिली।
Revision Box – बीकानेर किसान आंदोलन (1929–1949)
- 1929–30 – गंगनहर किसान आंदोलन → नेतृत्व : जमीदारा एसोसिएशन (अध्यक्ष सरदार दरबार सिंह), कारण : पानी शुल्क व अत्यधिक ब्याज।
- 3 मार्च 1930 – महाराजा गंगासिंह ने किसानों को राहतें दीं।
- 1944 – दूधवाखारा आंदोलन (चूरू) → किसानों को जोत से बेदखल किया गया, नेता : चौ. हनुमानसिंह, पं. मधाराम वैध।
- 1946 – रायसिंहनगर आंदोलन → प्रजा परिषद के नेतृत्व में, 6 जुलाई 1946 को सम्पूर्ण बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया गया।
- 1945–46 – कांगड़ कांड (रतनगढ़ तहसील) → अकाल में भी अनुचित कर, ठाकुर गोपसिंह के अत्याचार, प्रजा परिषद के सदस्यों से दुर्व्यवहार।
- 30 मार्च 1949 – बीकानेर राज्य का राजस्थान में विलय, सामंतवाद का अंत।
Table – बीकानेर किसान आंदोलन
| वर्ष/तिथि | स्थान/घटना | नेतृत्व/मुख्य व्यक्ति | परिणाम/महत्व |
|---|---|---|---|
| 16 अप्रैल 1929 | गंगनहर आंदोलन प्रारंभ | जमीदारा एसोसिएशन (अध्यक्ष – सरदार दरबार सिंह) | किसानों का पहला संगठित आंदोलन |
| 3 मार्च 1930 | गंगनहर क्षेत्र | महाराजा गंगासिंह | किसानों की माँगें मानी गईं, राहत दी गई |
| 1944 | दूधवाखारा (चूरू) | चौ. हनुमानसिंह, पं. मधाराम वैध | किसानों को बेदखली से बचाने का संघर्ष |
| 1946 | रायसिंहनगर आंदोलन | बीकानेर राज्य प्रजा परिषद | 6 जुलाई 1946 को सम्पूर्ण बीकानेर में किसान दिवस |
| 1945–46 | कांगड़ कांड (रतनगढ़ तहसील) | ठाकुर गोपसिंह (अत्याचार), प्रजा परिषद सदस्य | सामंती शोषण उजागर हुआ |
| 30 मार्च 1949 | बीकानेर राज्य का विलय | – | सामंतवाद का अंत, लोकतांत्रिक शासन की शुरुआत |
बीकानेर किसान आंदोलन – FAQ
Q1. बीकानेर किसान आंदोलन कब शुरू हुआ?
Ans. बीकानेर किसान आंदोलन की शुरुआत 1929–30 ई. में गंगनहर क्षेत्र से हुई थी। यह बीकानेर राज्य का पहला बड़ा किसान आंदोलन था।
Q2. गंगनहर किसान आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
Ans. गंगनहर किसान आंदोलन का नेतृत्व जमीदारा एसोसिएशन ने किया, जिसके अध्यक्ष सरदार दरबार सिंह थे।
Q3. दूधवाखारा किसान आंदोलन कब और क्यों हुआ?
Ans. 1944 ई. में चूरू जिले के दूधवाखारा गाँव में यह आंदोलन हुआ। यहाँ के जागीरदार ने बकाया कर न देने के बहाने किसानों को उनकी भूमि से बेदखल कर दिया था।
Q4. रायसिंहनगर किसान आंदोलन में किसानों का नेतृत्व किसने किया?
Ans. रायसिंहनगर आंदोलन का नेतृत्व बीकानेर राज्य प्रजा परिषद ने किया। इस अवसर पर 6 जुलाई 1946 को पूरे बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया गया।
Q5. कांगड़ कांड क्या था?
Ans. 1945–46 ई. में रतनगढ़ तहसील के कांगड़ गाँव में अकाल के समय भी किसानों से अनुचित कर वसूला गया। ठाकुर गोपसिंह ने किसानों और प्रजा परिषद के सदस्यों पर अत्याचार किए। यह घटना इतिहास में कांगड़ कांड के नाम से प्रसिद्ध हुई।
Q6. बीकानेर किसान आंदोलन का परिणाम क्या रहा?
Ans. बीकानेर किसान आंदोलन ने किसानों को सामंती शोषण से मुक्ति दिलाई। अंततः 30 मार्च 1949 को बीकानेर रियासत का राजस्थान में विलय हुआ और यहाँ का राजतंत्र व सामंतवाद समाप्त हो गया।