सीकर–शेखावाटी किसान आंदोलन (1918–1935) | जयपुर किसान आंदोलन

Table of Contents

सीकर–शेखावाटी किसान आंदोलन

परिचय

जयपुर रियासत में किसान आंदोलन दो मुख्य भागों में विभक्त था –

  • सीकर किसान आंदोलन
  • शेखावाटी किसान आंदोलन

इस आंदोलन की नींव 1918 में चीरवा सेवा समिति के गठन से पड़ी। शेखावाटी क्षेत्र में सर्वप्रथम किसान आंदोलन का सूत्रपात सीकर ठिकाने से हुआ था। यह आंदोलन 1935 तक चलता रहा और राजस्थान के किसान आंदोलनों के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

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चीरवा सेवा समिति और आंदोलन का आरंभ (1918)

  • 1918 ई. – शेखावाटी क्षेत्र में किसानों के हितों की रक्षा और संगठन के लिए चीरवा सेवा समिति नामक समाजसेवी संस्था की स्थापना हुई।
  • इस संस्था ने किसानों को एकजुट किया और आगे होने वाले किसान आंदोलनों की नींव रखी।

भूमिकर में वृद्धि और किसान असंतोष (1922–1923)

  • 1922 ई. – सीकर के नये रावराजा कल्याणसिंह ने भूमिकर (भूमि कर) में 25% से 50% की वृद्धि कर दी।
  • कर वृद्धि के कारण बताए गए –
    1. पूर्व रावराजा का अंतिम संस्कार
    2. मृत्युभोज का खर्च
    3. खडगबन्धाई समारोह
  • इस निर्णय से किसान नाराज हो गए और उन्होंने आंदोलन प्रारंभ कर दिया।
  • 1923 ई. – वर्षा न होने के बावजूद किसानों से कठोरता से बढ़ा हुआ लगान वसूला गया और उन्हें अपमानित किया गया।
  • दमन, उत्पीड़न, अराजकता और अन्याय के कारण किसानों का असंतोष और बढ़ गया।

रामनारायण चौधरी और किसान आंदोलन (1925)

  • किसान नेताओं ने मदद के लिए राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी से संपर्क किया।
  • 23 जनवरी 1925 ई. – चौधरी किसानों के साथ सीकर पहुँचे और अधिकारियों से वार्ता की, परंतु कोई समझौता नहीं हो सका।
  • चौधरी ने किसानों की आवाज़ को प्रसारित करने के लिए –
    • तरुण राजस्थान समाचार पत्र निकाला।
    • लंदन से प्रकाशित Daily Herald पत्र में किसानों की समस्याओं पर लेख लिखे।
    • उनके प्रयासों से इंग्लैंड की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) में पेट्रिक लॉरेन्स ने सीकर किसानों के मुद्दे पर प्रश्न उठाया।
  • परिणाम :
    • रावराजा ने चौधरी को जयपुर से निर्वासित कर दिया।
    • तरुण राजस्थान अखबार पर सीकर क्षेत्र और पूरे जयपुर राज्य में प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • अप्रैल 1925 ई. – किसानों की शिकायतों की जाँच हेतु एक आयोग का गठन हुआ।

भूमि बंदोबस्त और असंतोष (1925–1928)

  • 1925–1928 ई. – सीकर के प्रेसीडेंट और स्टेट काउंसिल अध्यक्ष रेनाल्ड्स के निर्देश पर भूमि बंदोबस्त के लिए सर्वे कराया गया।
  • इस सर्वे में स्थानीय अधिकारियों ने जरीब (भूमि नापने का पैमाना) को छोटा कर दिया।
  • इससे किसानों पर कर का बोझ और बढ़ गया और असंतोष पुनः फैल गया।

“इजाफा” नीति और आंदोलन का विस्तार (1928–1929)

  • 1928–29 ई. – सीकर ठिकाने ने “इजाफा” नाम से प्रति रुपये पर 2 आना अतिरिक्त कर लगा दिया।
  • किसानों की आर्थिक स्थिति और बिगड़ी तथा असंतोष गहराता गया।

अखिल भारतीय जाट महासभा – झुंझुनूं अधिवेशन (1932)

  • 11–13 फरवरी 1932 ई. – झुंझुनूं में अखिल भारतीय जाट महासभा का विशाल अधिवेशन हुआ।
  • इसमें लगभग 60,000 स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया।
  • इस अधिवेशन से किसान आंदोलन को नई दिशा और संगठित रूप मिला।

जाट प्रजापति महायज्ञ और ठिकाने का दमन (1934)

  • 20 जनवरी 1934 (बसंत पंचमी)जाट प्रजापति महायज्ञ प्रारंभ हुआ।
  • इसमें –
    • मंत्री : मास्टर चंद्रभान सिंह
    • अध्यक्ष : चौधरी हारूसिंह पलथाना
  • यज्ञ समाप्त होते ही सीकर ठिकाने ने –
    • मास्टर चंद्रभान सिंह और चौ. हरिसिंह को गिरफ्तार कर लिया।
    • किसानों द्वारा संचालित पलथाना स्कूल भवन को भूमिसात कर दिया।
  • गिरफ्तारी के बाद लगभग 200 प्रमुख जाट किसानों का प्रतिनिधिमंडल जयपुर सरकार के वाइस प्रेसीडेंट सर जॉन विचम (व्यूचेम्प) से मिला।
  • इसके बाद ठिकाने ने जाट नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए और दमन चक्र तेज हो गया।
  • किसानों को कोठरियों में बंद करना, पिटाई करना और स्त्रियों से लगान वसूली के नाम पर ज्यादती करना आम हो गया।

कटराथल सभा और महिला सम्मेलन (1934)

  • 7 अप्रैल 1934 – कटराथल में सीकरवाटी जाट किसान पंचायत की एक बड़ी सभा हुई।
  • 25 अप्रैल 1934 – कटराथल में महिला सम्मेलन आयोजित हुआ।
    • नेतृत्व व अध्यक्षता : श्रीमती किशोरी देवी
    • प्रमुख प्रतिभागी : दुर्गा शर्मा देवी, फूला देवी, रमा देवी, उत्तमा देवी
    • लगभग 10,000 महिलाएँ शामिल हुईं।
  • इस सम्मेलन ने शेखावाटी क्षेत्र में महिला जागरण और राजनीतिक चेतना का संचार किया।

कैप्टन वेब और 1934 का समझौता

  • बिगड़ते हालात को देखते हुए जयपुर सरकार ने कैप्टन वेब को सीकर का वरिष्ठ अधिकारी बनाकर भेजा।
  • 13 अगस्त 1934 – किसानों और ठिकाने के बीच समझौता हुआ, जिसमें –
    1. 12 लागें समाप्त की गईं।
    2. भू-राजस्व में रियायतें दी गईं।
    3. बेगार प्रथा समाप्त कर दी गई।
  • यह समझौता किसानों के लिए बड़ी सफलता थी, लेकिन ठिकानेदार ने इसका पूर्ण पालन नहीं किया।

अध्यादेश और दमनकारी नीति (25 दिसम्बर 1934)

  • जयपुर सरकार ने अध्यादेश जारी किया कि ठिकाने में यदि किसान लगान और देय राशि न दें तो उन्हें 6 माह की कैद दी जाएगी।
  • इस अध्यादेश ने किसानों की स्थिति और भी खराब कर दी।

खुड़ी गाँव नरसंहार (मार्च 1935)

  • जागीरदारी ने जातीय आधार पर राजपूतों को जाटों के विरुद्ध उकसाया।
  • मार्च 1935 – एक जाट लड़के द्वारा घोड़ी से तोरण मारने की घटना को विवाद बनाया गया।
  • 22 मार्च 1935 – झगड़ा बढ़ने पर एक राजपूत ने रतना जाट का सिर काट दिया।
  • इस बर्बर अत्याचार की आलोचना –
    • खंडवा से प्रकाशित कर्मवीर पत्र में हुई।
    • महात्मा गांधी ने भी अपने पत्र हरिजन में इसकी निंदा की।

कूदन गाँव नरसंहार (25 अप्रैल 1935)

  • किसानों से जबरन लगान वसूलने के लिए पुलिस और राजस्व अधिकारियों को गाँव भेजा गया।
  • किसानों ने वसूली का विरोध किया।
  • स्थिति बिगड़ने पर कैप्टन वेब के आदेश पर पुलिस ने गोली चला दी।
  • गोलीबारी में चार किसान शहीद हुए –
    1. तुलसीराम
    2. टीकूराम
    3. चेताराम गोठड़ा
    4. आशाराम अजीतपुरा
  • इस घटना में सैकड़ों किसान घायल हुए।
  • जून 1935 – इंग्लैंड की हाउस ऑफ कॉमन्स में यह मामला उठाया गया।

शेखावाटी किसान आंदोलन के प्रमुख केंद्र

  • कटराथल
  • कूदन
  • गोठड़ा
  • पलथाना
  • खुड़ी

शेखावाटी किसान आंदोलन

प्रमुख ठिकाने

शेखावाटी क्षेत्र में किसान आंदोलन मुख्य रूप से पाँच ठिकानों से जुड़ा था –

  1. पंचपाणे बिसाऊ
  2. डूंडलोद
  3. मलसीसर
  4. मंडावा
  5. नवलगढ़

अध्यादेश और किसानों पर दमन (1924)

  • 25 दिसम्बर 1924 ई. – जयपुर सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया।
  • प्रावधान : यदि किसानों को लगान और देय राशि न देने के लिए उकसाया जाए तो 6 माह की कैद दी जाएगी।
  • इसने किसानों की नाराज़गी और बढ़ा दी।

बंगड़ सभा और किसान संघर्ष समिति (1925)

  • 5 नवम्बर 1925 ई.बंगड़ में किसानों की एक बड़ी सभा आयोजित हुई।
  • इसमें किसान संघर्ष समिति का गठन हुआ।
    • अध्यक्ष – रामसिंह
    • उपाध्यक्ष – बूढ़ा जाट
    • मंत्री – रतनसिंह
  • इस समिति ने गाँव-गाँव जाकर किसानों से एकजुट रहने और संघर्ष जारी रखने की अपील की।

जयपुर राज्य प्रजामंडल का समर्थन

  • शेखावाटी किसान आंदोलन को जयपुर राज्य प्रजामंडल का खुला समर्थन मिला।
  • 1 मार्च 1939 ई. – प्रजामंडल ने किसान दिवस मनाया।
  • इससे आंदोलन को राजनीतिक और सामाजिक ताकत मिली।

निष्कर्ष

शेखावाटी किसान आंदोलन ने सीकर किसान आंदोलन की तरह ही किसानों को संगठित किया।

  • किसान संघर्ष समिति के नेतृत्व और जयपुर राज्य प्रजामंडल के समर्थन ने आंदोलन को नई ऊर्जा दी।
  • इससे किसान जागरूक और संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने लगे।
  • जयपुर का किसान आंदोलन (1918–1935) राजस्थान के किसान संघर्ष का ऐतिहासिक अध्याय है।
  • यह आंदोलन चीरवा सेवा समिति से शुरू होकर कूदन नरसंहार तक चला।
  • आंदोलन से किसानों को 12 लागों की समाप्ति, भू-राजस्व में रियायतें और बेगार प्रथा का अंत जैसी उपलब्धियाँ मिलीं।
  • इसमें पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, विशेषकर किशोरी देवी द्वारा आयोजित महिला सम्मेलन ने आंदोलन को नई दिशा दी।
  • रामनारायण चौधरी, ठाकुर देशराज, मास्टर चंद्रभान सिंह और चौधरी हारूसिंह जैसे नेताओं के नेतृत्व में यह आंदोलन न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के किसान आंदोलनों को प्रेरणा देने वाला साबित हुआ।

जयपुर के किसान आंदोलन (सीकर–शेखावाटी) : संक्षिप्त टाइमलाइन

वर्ष/तिथिघटना/निर्णयप्रमुख नेता/संस्थापरिणाम/महत्व
1918चीरवा सेवा समिति की स्थापनासमाजसेवी संस्थाशेखावाटी में किसान संगठित होने लगे
1922रावराजा कल्याणसिंह ने भूमिकर में 25–50% वृद्धि (संस्कार, मृत्युभोज, खडगबन्धाई खर्च के लिए)सीकर किसानआंदोलन की शुरुआत
1923अकाल के बावजूद कठोर कर वसूली और अपमानकिसानों का असंतोष गहराया
23 जनवरी 1925रामनारायण चौधरी किसानों संग सीकर पहुँचे, वार्ता असफलराजस्थान सेवा संघआंदोलन संगठित रूप लेने लगा
1925चौधरी ने तरुण राजस्थान व लंदन के Daily Herald में लेख; हाउस ऑफ कॉमन्स में पेट्रिक लॉरेन्स ने मुद्दा उठायारामनारायण चौधरीअंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आवाज पहुँची
अप्रैल 1925किसानों की शिकायतों के लिए जाँच आयोग गठितसीकर ठिकानाकिसानों की माँगें मानने की दिशा में कदम
1925–1928भूमि बंदोबस्त हेतु सर्वे, जरीब छोटी कर दी गईअध्यक्ष रेनाल्ड्सकिसानों में पुनः असंतोष
1928–1929“इजाफा” नीति, 2 आना प्रति ₹ लगान वृद्धिसीकर ठिकानाकिसानों पर अतिरिक्त बोझ
1932 (11–13 फरवरी)अखिल भारतीय जाट महासभा, झुंझुनूंठाकुर देशराज व अन्य60,000 किसान–महिला सहभागिता, आंदोलन में नया युग
1934 (20 जनवरी)जाट प्रजापति महायज्ञमास्टर चंद्रभान सिंह (मंत्री), चौ. हारूसिंह पलथाना (अध्यक्ष)धार्मिक–सामाजिक चेतना का प्रसार
1934 (मार्च–अप्रैल)यज्ञ के बाद दमन, नेताओं की गिरफ्तारी, पलथाना स्कूल ध्वस्तसीकर ठिकानाकिसानों में असंतोष उग्र
7 अप्रैल 1934कटराथल में जाट किसान पंचायत की सभाकिसान पंचायतआंदोलन संगठित हुआ
25 अप्रैल 1934महिला सम्मेलन, 10,000 महिलाओं की भागीदारीश्रीमती किशोरी देवी (अध्यक्ष), दुर्गा शर्मा, फूला देवी, रमा देवी, उत्तमा देवीमहिला राजनीतिक चेतना का उदय
13 अगस्त 1934किसानों और सरकार के बीच समझौता (12 लागें समाप्त, रियायतें, बेगार समाप्त)कैप्टन वेब की मध्यस्थताकिसानों की आंशिक जीत
25 दिसम्बर 1934अध्यादेश : लगान न देने पर 6 माह की कैदजयपुर सरकारदमन नीति और कड़ी हुई
मार्च 1935खुड़ी गाँव नरसंहार – जाट-राजपूत संघर्ष; रतना जाट की हत्यासाम्प्रदायिक तनाव बढ़ा, गांधीजी ने हरिजन में निंदा की
25 अप्रैल 1935कूदन गाँव नरसंहार – लगान वसूली पर गोलीबारी, 4 किसान शहीद (तुलसीराम, टीकूराम, चेताराम गोठड़ा, आशाराम अजीतपुरा)कैप्टन वेब के आदेश पर पुलिसआंदोलन चरम पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
जून 1935इंग्लैंड की हाउस ऑफ कॉमन्स में मामला उठाया गयाकिसान आंदोलन को वैश्विक पहचान

शेखावाटी किसान आंदोलन – संक्षिप्त तालिका

वर्ष/तिथिघटना/निर्णयप्रमुख नेता/संस्थापरिणाम/महत्व
25 दिसम्बर 1924जयपुर सरकार ने अध्यादेश जारी किया – किसानों को लगान और देय राशि न देने के लिए उकसाने पर 6 माह कैद का प्रावधानजयपुर सरकारकिसानों में असंतोष और रोष बढ़ा
5 नवम्बर 1925बंगड़ सभा – किसान संघर्ष समिति का गठनअध्यक्ष – रामसिंह, उपाध्यक्ष – बूढ़ा जाट, मंत्री – रतनसिंहसमिति ने गाँव-गाँव जाकर किसानों को एकता बनाए रखने की अपील की
1925 के बादकिसान संघर्ष समिति सक्रिय रही और आंदोलन फैलायाकिसान संघर्ष समितिकिसानों में संगठन की भावना मजबूत हुई
1 मार्च 1939जयपुर राज्य प्रजामंडल ने किसान दिवस मनायाजयपुर राज्य प्रजामंडलकिसानों को राजनीतिक समर्थन और आंदोलन को नई ऊर्जा मिली

जयपुर का किसान आंदोलन (Quick Revision Points)

  • जयपुर के किसान आंदोलन को दो भागों में विभक्त किया जाता है –
    सीकर किसान आंदोलन
    शेखावाटी किसान आंदोलन
  • 1918 ई. – शेखावाटी क्षेत्र में चीरवा सेवा समिति का गठन → किसान आंदोलन की नींव।
  • 1922 ई. – रावराजा कल्याणसिंह ने भूमिकर में 25–50% की वृद्धि की → किसान आंदोलन प्रारंभ।
  • 1923 ई. – अकाल के बावजूद कठोर कर वसूली → किसानों में असंतोष।
  • 1925 ई. (23 जनवरी)रामनारायण चौधरी किसानों के साथ सीकर पहुँचे, वार्ता असफल।
    • तरुण राजस्थानDaily Herald (London) के जरिए आवाज उठाई।
    • इंग्लैंड की संसद में पेट्रिक लॉरेन्स ने मामला उठाया।
  • 1925–1928 ई. – भूमि बंदोबस्त हेतु सर्वे → जरीब छोटी कर दी गई → असंतोष बढ़ा।
  • 1928–29 ई. – “इजाफा” नीति → प्रति रुपये पर 2 आना लगान वृद्धि।
  • 1932 ई. (11–13 फरवरी)अखिल भारतीय जाट महासभा झुंझुनूं → 60,000 स्त्री-पुरुष शामिल।
  • 1934 ई. (20 जनवरी)जाट प्रजापति महायज्ञ → मास्टर चंद्रभान सिंह (मंत्री), चौ. हारूसिंह (अध्यक्ष)।
  • 1934 ई. (7 अप्रैल)कटराथल सभा → सीकरवाटी जाट किसान पंचायत का नेतृत्व।
  • 1934 ई. (25 अप्रैल)कटराथल महिला सम्मेलन → 10,000 महिलाएँ शामिल।
    • नेतृत्व : किशोरी देवी
    • प्रमुख महिलाएँ : दुर्गा शर्मा, फूला देवी, रमा देवी, उत्तमा देवी।
  • 1934 ई. (13 अगस्त) – किसानों व सरकार के बीच समझौता :
    • 12 लागें समाप्त।
    • भू-राजस्व में रियायतें।
    • बेगार प्रथा समाप्त।
  • 1934 ई. (25 दिसम्बर) – अध्यादेश : लगान न देने पर 6 माह की कैद का प्रावधान।
  • 1935 ई. (22 मार्च)खुड़ी गाँव नरसंहार :
    • एक राजपूत ने रतना जाट का सिर काटा।
    • गांधीजी ने हरिजन में आलोचना की।
  • 1935 ई. (25 अप्रैल)कूदन गाँव नरसंहार :
    • लगान वसूली पर किसानों का विरोध।
    • पुलिस गोलीबारी में 4 किसान शहीद (तुलसीराम, टीकूराम, चेताराम गोठड़ा, आशाराम अजीतपुरा)।
  • जून 1935 – इंग्लैंड की हाउस ऑफ कॉमन्स में यह मामला उठाया गया।
  • आंदोलन के प्रमुख केंद्र : कटराथल, कूदन, गोठड़ा, पलथाना, खुड़ी

FAQ Section – जयपुर का किसान आंदोलन

Q1. जयपुर का किसान आंदोलन कब और कहाँ से शुरू हुआ?

Ans. जयपुर का किसान आंदोलन 1918 ई. में शेखावाटी क्षेत्र की चीरवा सेवा समिति से शुरू हुआ और इसका प्रमुख केंद्र सीकर ठिकाना था।

Q2. सीकर किसान आंदोलन का कारण क्या था?

Ans. सीकर किसान आंदोलन का मुख्य कारण रावराजा कल्याणसिंह द्वारा 1922 ई. में भूमिकर में 25–50% वृद्धि करना था, जिससे किसानों में असंतोष फैल गया।

Q3. सीकर किसान आंदोलन में रामनारायण चौधरी की क्या भूमिका थी?

Ans. रामनारायण चौधरी ने किसानों की आवाज को तरुण राजस्थान और Daily Herald (London) में उठाया तथा इंग्लैंड की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) में मुद्दा उठवाने में अहम भूमिका निभाई।

Q4. शेखावाटी किसान आंदोलन में महिलाओं की क्या भागीदारी थी?

Ans. 25 अप्रैल 1934 को कटराथल महिला सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें 10,000 महिलाएँ शामिल हुईं। इसकी अध्यक्षता किशोरी देवी ने की।

Q5. कूदन नरसंहार कब और क्यों हुआ?

Ans. 25 अप्रैल 1935 को कूदन गाँव में लगान वसूली का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें 4 किसान शहीद और सैकड़ों घायल हुए।

Q6. जयपुर किसान आंदोलन का परिणाम क्या रहा?

Ans. इस आंदोलन से किसानों को 12 लागों की समाप्ति, भू-राजस्व में रियायतें और बेगार प्रथा का अंत जैसी उपलब्धियाँ मिलीं। साथ ही, यह राजस्थान के किसान आंदोलनों का प्रेरणास्रोत बना।

FAQ – शेखावाटी किसान आंदोलन

Q1. शेखावाटी किसान आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ?

Ans. शेखावाटी किसान आंदोलन की शुरुआत पाँच ठिकानों – पंचपाणे बिसाऊ, डूंडलोद, मलसीसर, मंडावा और नवलगढ़ से हुई।

Q2. जयपुर सरकार ने किसानों के खिलाफ पहला अध्यादेश कब जारी किया?

Ans. 25 दिसम्बर 1924 ई. को जयपुर सरकार ने अध्यादेश जारी किया, जिसमें किसानों को लगान और देय राशि न देने के लिए उकसाने पर 6 माह की कैद का प्रावधान था।

Q3. किसान संघर्ष समिति का गठन कब और कहाँ हुआ?

Ans. 5 नवम्बर 1925 ई. को बंगड़ में एक सभा आयोजित की गई, जिसमें किसान संघर्ष समिति का गठन हुआ।

Q4. किसान संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारी कौन थे?

Ans.

  • अध्यक्ष – रामसिंह
  • उपाध्यक्ष – बूढ़ा जाट
  • मंत्री – रतनसिंह
Q5. जयपुर राज्य प्रजामंडल ने किसानों का समर्थन कब किया?

Ans. जयपुर राज्य प्रजामंडल ने शेखावाटी किसान आंदोलन का खुला समर्थन किया और 1 मार्च 1939 ई. को किसान दिवस मनाया।

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