संत चरणदासजी और संत मावजी का जीवन परिचय | शिक्षाएँ, सम्प्रदाय व योगदान

आइये जानते है संत चरणदासजी और संत मावजी का जीवन परिचय

1.संत चरणदासजी का जीवन परिचय

भारत की संत परंपरा में कई ऐसे संत हुए जिन्होंने समाज को धर्म, भक्ति और सत्य का मार्ग दिखाया। इन्हीं में से एक हैं संत चरणदासजी, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति और उपदेशों से लाखों लोगों को जीवन का सही मार्ग बताया। संत चरणदासजी को एक महान संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु के रूप में आज भी याद किया जाता है।

  • जन्म – विक्रम संवत् 1760 (1703 ई.) भाद्रपद शुक्ल तृतीया
  • जन्म स्थान – डेहरा गाँव (अलवर)
  • पिता – मुरलीधर
  • माता – कुँजो बाई
  • गुरु – सुखदेवजी
  • बचपन का नाम – रणजीतसिंह

संत चरणदासजी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और ईश्वर-भक्ति में लीन रहते थे

संत चरणदासजी का गुरु और दीक्षा

संत चरणदासजी को संत राजाबाई जी से दीक्षा प्राप्त हुई।
दीक्षा के बाद इन्होंने अपने जीवन को भक्ति, साधना और समाज सेवा में समर्पित कर दिया।

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संत चरणदासजी की प्रमुख पीठ

  • चरणदासजी की प्रधान पीठ नई दिल्ली में है।
  • यह एकमात्र ऐसा संप्रदाय है जिसकी प्रधानपीठ राजस्थान से बाहर स्थापित है।
  • निधन – सन् 1782 (नई दिल्ली)
  • मेला – बसंत पंचमी के दिन (समाधि स्थल, नई दिल्ली)

संत चरणदासी सम्प्रदाय की स्थापना

  • स्थापना – भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन चरणदासजी ने इस सम्प्रदाय की स्थापना की।
  • यह सम्प्रदाय निर्गुण और सगुण भक्ति का मिश्रण है।
  • इस सम्प्रदाय में कुल 42 नियम बताए गए हैं।
  • इस सम्प्रदाय का अत्यधिक प्रभाव मेवात क्षेत्र और दिल्ली में है।
  • जयपुर के कच्छवाहा वंश के शासक सवाई प्रतापसिंह चरणदासजी के अनुयायी थे।
  • चरणदासजी ने नादिरशाह के आक्रमण (1739 ई.) की भविष्यवाणी की थी।

भक्ति और आध्यात्मिक साधना

संत चरणदासजी ने सदैव सच्चे ईश्वर-प्रेम और भक्ति पर बल दिया।

  • इन्होंने अपने अनुयायियों को सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी।
  • संत चरणदासजी ने बताया कि मानव जीवन का असली उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से जोड़ना है।
  • इन्होंने अपने प्रवचनों में साधना, भक्ति, प्रेम और त्याग को प्रमुख माना।

धार्मिक विचार और शिक्षाएँ

संत चरणदासजी की शिक्षाएँ समाज और धर्म दोनों के लिए प्रेरणादायी हैं।

  1. भक्ति मार्ग – ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग भक्ति है।
  2. सत्य का महत्व – जीवन में हमेशा सत्य का पालन करना चाहिए।
  3. समानता – सभी मनुष्य एक समान हैं, जाति और भेदभाव के आधार पर किसी को छोटा-बड़ा नहीं समझना चाहिए।
  4. अहिंसा – किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाना ही सच्ची मानवता है।

संत चरणदासजी की वाणी

संत चरणदासजी ने अपने उपदेशों और भजनों में जीवन का गहरा दर्शन प्रस्तुत किया।

  • उनकी वाणी सरल, सहज और भक्तिपूर्ण थी।
  • आज भी उनके भजन और उपदेश भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते हैं।

प्रमुख ग्रंथ और रचनाएँ

  1. ब्रह्म ज्ञान सागर
  2. भक्ति सागर
  3. ब्रह्म चरित्र
  4. ज्ञान सर्वोदय

प्रमुख शिष्याएँ

1. दयाबाई
  • जन्म – डेहरा गाँव (अलवर)
  • प्रमुख ग्रंथ – दयाबोध, विज्ञ मालिका
2. सहजोबाई
  • जन्म – डेहरा गाँव (अलवर)
  • भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की, इन्हें ‘मत्स्य मीरा’ कहा जाता है।
  • प्रमुख ग्रंथ – सहज प्रकाश, सबद वाणी, सेल तिथि

अनुयायी और संत परंपरा

  • संत चरणदासजी के अनुयायी आज भी उनकी वाणी और उपदेशों का पालन करते हैं।
  • इनकी शिक्षाओं का प्रभाव राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में देखने को मिलता है।

संत चरणदासजी का जीवन हमें सिखाता है कि भक्ति, सत्य और सदाचार ही जीवन का वास्तविक मार्ग है। उनके उपदेश और भक्ति मार्ग आज भी समाज को प्रेरणा देते हैं। संत चरणदासजी को सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक मार्गदर्शक और समाज सुधारक कहा जा सकता है।

संत चरणदासजी – जीवन परिचय (Table)

विषयविवरण
जन्मविक्रम संवत् 1760 (1703 ई.), भाद्रपद शुक्ल तृतीया
जन्म स्थानडेहरा गाँव, अलवर (राजस्थान)
पिता का नाममुरलीधर
माता का नामकुँजो बाई
बचपन का नामरणजीतसिंह
गुरुसुखदेवजी
प्रधान पीठनई दिल्ली (एकमात्र सम्प्रदाय जिसकी पीठ राजस्थान से बाहर)
सम्प्रदाय की स्थापनाचरणदासी सम्प्रदाय (भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन)
सम्प्रदाय की विशेषतानिर्गुण एवं सगुण भक्ति का मिश्रण, कुल 42 नियम
प्रभाव क्षेत्रमेवात क्षेत्र एवं दिल्ली
प्रसिद्ध अनुयायीजयपुर के कच्छवाहा वंश के शासक सवाई प्रतापसिंह
भविष्यवाणीनादिरशाह के 1739 ई. के आक्रमण की भविष्यवाणी
प्रमुख ग्रंथ1. ब्रह्म ज्ञान सागर 2. भक्ति सागर 3. ब्रह्म चरित्र 4. ज्ञान सर्वोदय
प्रमुख शिष्याएँ1. दयाबाई – ग्रंथ: दयाबोध, विज्ञ मालिका 2. सहजोबाई – ‘मत्स्य मीरा’, ग्रंथ: सहज प्रकाश, सबद वाणी, सेल तिथि
निधन1782 ई., नई दिल्ली
मेलाबसंत पंचमी (समाधि स्थल, नई दिल्ली)

2.संत मावजी का जीवन परिचय

जन्म – 1714 ईस्वी, माघ शुक्ल पंचमी
जन्म स्थान – साबला गाँव (डूंगरपुर, राजस्थान)
पिता – दालम ऋषि
माता – केसर बाई

संत मावजी ने अपने जीवनकाल में गहन साधना और भक्ति का मार्ग अपनाया।

संत मावजी की प्रधानपीठ

संत मावजी की प्रधानपीठ राजस्थान के डूंगरपुर जिले के साबला गाँव में स्थित है। यहीं से इनके भक्ति आंदोलन और शिक्षाओं का प्रसार हुआ।

संत मावजी और उनकी भक्ति

  • संत मावजी भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे।
  • इन्होंने निष्कलंक सम्प्रदाय की स्थापना की।
  • मावजी को भगवान विष्णु का दसवाँ कल्कि अवतार माना जाता है।
  • उनकी शिक्षाओं में कर्म, भक्ति और योग पर विशेष बल दिया गया है।
  • संत मावजी ने अपने जीवनकाल में गहन साधना और भक्ति का मार्ग अपनाया।
  • मावजी ने अपने अनुयायियों को सदैव सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

धार्मिक विचार और शिक्षाएँ

संत मावजी के उपदेश तीन मुख्य आधारों पर टिके थे –

  1. कर्म – प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
  2. भक्ति – ईश्वर की सच्ची आराधना ही मोक्ष का मार्ग है।
  3. योग – आत्मा और परमात्मा के मिलन का साधन।

इनकी शिक्षाओं का गहरा प्रभाव राजस्थान और गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों पर पड़ा।

बेणेश्वर धाम की स्थापना

संत मावजी ने सोम, माही और जाखम नदियों के संगम पर पवित्र स्थान बेणेश्वर धाम की स्थापना की।

  • यहाँ पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को विशाल बेणेश्वर मेला आयोजित होता है।
  • इस मेले को “आदिवासियों का कुम्भ” कहा जाता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।

संत मावजी की वाणी – चौपड़ा

  • संत मावजी की वाणियाँ “चौपड़ा” कहलाती हैं।
  • इनकी भाषा वागड़ी है। चौपड़ों में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन मिलता है।
  • ये चौपड़े दीपावली के दिन बाहर निकाले जाते हैं और मकर संक्रांति को इनका वाचन किया जाता है।
  • माना जाता है कि इस पुस्तक में तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी भी की गई है।

अनुयायी और साध समुदाय

  • संत मावजी के अनुयायी “साध” कहलाते हैं।
  • यह समुदाय संत मावजी की वाणियों और उपदेशों का पालन करता है तथा आज भी राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय है।

संत मावजी का जीवन भारतीय समाज और आध्यात्मिक परंपरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्होंने न केवल निष्कलंक सम्प्रदाय की स्थापना की बल्कि भक्ति, कर्म और योग का ऐसा मार्ग प्रशस्त किया जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देता है।

संत मावजी – जीवन परिचय (Table)

विषयविवरण
जन्म1714 ई., माघ शुक्ल पंचमी
जन्म स्थानसाबला गाँव, डूंगरपुर (राजस्थान)
पिता का नामदालम ऋषि
माता का नामकेसर बाई
प्रधान पीठसाबला गाँव (डूंगरपुर)
सम्प्रदाय की स्थापनानिष्कलंक सम्प्रदाय
विशेष पहचानभगवान विष्णु का दसवाँ कल्कि अवतार माना जाता है
भक्तिभगवान कृष्ण की भक्ति
मुख्य उपदेशकर्म, भक्ति और योग पर बल
प्रमुख कार्यसोम, माही और जाखम नदियों के संगम पर बेणेश्वर धाम की स्थापना
मेलाबेणेश्वर मेला (माघ पूर्णिमा) – आदिवासियों का कुम्भ
ग्रंथ / साहित्यचौपड़ा (वागड़ी भाषा में) – श्रीकृष्ण की लीलाएँ, तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी
चौपड़ा परंपरादीपावली को बाहर निकाले जाते हैं, मकर संक्रांति पर वाचन होता है
अनुयायीइन्हें साध कहा जाता है

चरणदासजी का जीवन परिचय – FAQ

प्रश्न 1. चरणदासजी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर – चरणदासजी का जन्म विक्रम संवत् 1760 (1703 ई.) में भाद्रपद शुक्ल तृतीया को अलवर जिले के डेहरा गाँव में हुआ था।

प्रश्न 2. चरणदासजी के गुरु कौन थे?
उत्तर – इनके गुरु सुखदेवजी थे।

प्रश्न 3. चरणदासजी ने किस सम्प्रदाय की स्थापना की?
उत्तर – इन्होंने चरणदासी सम्प्रदाय की स्थापना भाद्रपद शुक्ल तृतीया को की थी।

प्रश्न 4. चरणदासी सम्प्रदाय की विशेषता क्या है?
उत्तर – यह सम्प्रदाय निर्गुण और सगुण भक्ति का अद्भुत मिश्रण है तथा इसमें कुल 42 नियम बताए गए हैं।

प्रश्न 5. चरणदासजी का निधन कब और कहाँ हुआ?
उत्तर – चरणदासजी का निधन सन् 1782 ई. में नई दिल्ली में हुआ था।

प्रश्न 6. चरणदासजी के प्रमुख ग्रंथ कौन से हैं?
उत्तर – इनके प्रमुख ग्रंथ हैं –

  1. ब्रह्म ज्ञान सागर
  2. भक्ति सागर
  3. ब्रह्म चरित्र
  4. ज्ञान सर्वोदय

प्रश्न 7. चरणदासजी की प्रसिद्ध शिष्याएँ कौन थीं?
उत्तर – दयाबाई और सहजोबाई इनकी प्रमुख शिष्याएँ थीं। सहजोबाई को “मत्स्य मीरा” कहा जाता है।

संत मावजी का जीवन परिचय – FAQ

प्रश्न 1. संत मावजी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर – संत मावजी का जन्म 1714 ईस्वी में माघ शुक्ल पंचमी को डूंगरपुर जिले के साबला गाँव में हुआ था।

प्रश्न 2. संत मावजी को किस अवतार के रूप में माना जाता है?
उत्तर – संत मावजी को भगवान विष्णु का दसवाँ कल्कि अवतार माना जाता है।

प्रश्न 3. संत मावजी ने कौन सा सम्प्रदाय स्थापित किया?
उत्तर – इन्होंने निष्कलंक सम्प्रदाय की स्थापना की थी।

प्रश्न 4. बेणेश्वर धाम की स्थापना किसने की?
उत्तर – संत मावजी ने सोम, माही और जाखम नदियों के संगम पर बेणेश्वर धाम की स्थापना की थी।

प्रश्न 5. बेणेश्वर मेला कब और कहाँ लगता है?
उत्तर – प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को डूंगरपुर जिले के बेणेश्वर धाम पर यह मेला आयोजित होता है, जिसे आदिवासियों का कुम्भ कहा जाता है।

प्रश्न 6. मावजी की वाणियों को क्या कहा जाता है?
उत्तर – इन्हें चौपड़ा कहा जाता है। इनकी भाषा वागड़ी है।

प्रश्न 7. संत मावजी के अनुयायी किस नाम से जाने जाते हैं?
उत्तर – इनके अनुयायियों को साध कहा जाता है।

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