राजस्थान की महिला संत कवयित्री
राजस्थान की धरती भक्ति, त्याग और समर्पण की पावन भूमि रही है। यहाँ केवल पुरुष ही नहीं बल्कि अनेक महिला संत कवयित्रियाँ भी जन्मीं, जिन्होंने भक्ति आंदोलन को नई दिशा दी। इन संतों ने कृष्ण भक्ति, निर्गुण-सगुण उपासना और समानता का संदेश समाज तक पहुँचाया।
नीचे हम राजस्थान की प्रमुख महिला संतों का जीवन परिचय और योगदान प्रस्तुत कर रहे हैं।
संत का नाम | जन्म/स्थान | भक्ति स्वरूप | प्रमुख योगदान / विशेष तथ्य |
---|---|---|---|
गवरी बाई | डूंगरपुर, नागर कुल | कृष्ण भक्ति (पति रूप) | कीर्तन माला रचना, वागड़ की मीरा, महारावल शिवसिंह ने बालमुकुंद मंदिर बनवाया |
राना बाई | 1504 ई., हरनावां (नागौर) | कृष्ण भक्ति | राजस्थान की दूसरी मीरा, वृंदावन से मूर्ति लाकर हरनावां में मंदिर स्थापित, 1570 ई. में जीवित समाधि |
करमेती बाई | खण्डेला (सीकर) | कृष्ण उपासिका | वृंदावन के ब्रह्मकुण्ड में साधना की |
भूरी बाई | मेवाड़ | निर्गुण-सगुण समन्वय | अलारखबाई और उस्ताद हैदराबादी के भजनों से प्रभावित |
नन्ही बाई | खेतड़ी | गायिका, कृष्ण उपासना | गुरु तानरस खाँ (दिल्ली घराना) |
ज्ञानमति बाई | गजगौर (जयपुर) | कृष्ण भक्ति | 50 वाणियाँ प्रसिद्ध |
रानी रूपादे | राव मल्लीनाथ की रानी | निर्गुण उपासना | अलख को पति रूप में स्वीकार, ईश्वर के एकत्व का उपदेश |
कर्मठी बाई | बागड़ क्षेत्र | कृष्ण उपासिका | वृंदावन में साधना की |
जनखुसाली बाई | — | भक्ति साधिका | ग्रंथ – संतवाणी, गुरुदौनाव, अखैराम |
करमा बाई | कालवा गाँव (नागौर) | भगवान जगन्नाथ की भक्त | भगवान ने उनके हाथ से खीचड़ा खाया, जो आज भी पुरी जगन्नाथ मंदिर में परोसा जाता है |
फूली बाई | जोधपुर | कृष्ण भक्ति | महाराजा जसवंत सिंह ने उन्हें धर्मबहिन बनाया |
1. संत गवरी बाई (वागड़ की मीरा)
- जन्म – डूंगरपुर, नागर कुल में
- उपनाम – वागड़ की मीरा
- रचना – कीर्तन माला
- भक्ति स्वरूप – कृष्ण को पति मानकर उनकी उपासना की
- विशेष तथ्य – डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरी बाई के प्रति श्रद्धास्वरूप बालमुकुंद मंदिर का निर्माण कराया था।
2. संत राना बाई (राजस्थान की दूसरी मीरा)
- जन्म – 1504 ई., हरनावां (नागौर)
- दादा – जालिमसिंह
- पिता – रामगोपाल
- माता – गंगाबाई
- गुरु – संत चतुरदास, खोजी जी महाराज से शिक्षा-दीक्षा
- उपनाम – राजस्थान की दूसरी मीरा
- भक्ति स्वरूप – कृष्ण भक्ति की महान संत
- विशेष तथ्य –
- राना बाई वृंदावन से गोपीनाथ और राधा की मूर्ति लेकर आईं और हरनावां में मंदिर बनाकर प्रतिष्ठित किया।
- 1570 ई. में फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी को हरनावां में जीवित समाधि ली।
- उनके समाधि स्थल पर हर साल त्रयोदशी को विशाल मेला लगता है।
- भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ।
3. संत करमेती बाई
- पिता – परशुराम कांथड़िया (खण्डेला निवासी)
- कार्यक्षेत्र/मंदिर – खण्डेला (सीकर)
- भक्ति स्वरूप – कृष्ण उपासना
- विशेष – इन्होंने वृंदावन के ब्रह्मकुण्ड में साधना की।
4. संत भूरी बाई
- स्थान – मेवाड़
- भक्ति स्वरूप – निर्गुण-सगुण समन्वित भक्ति
- प्रभाव – उदयपुर की अलारख बाई और उस्ताद हैदराबादी के भजन से प्रभावित।
5. संत नन्ही बाई
- स्थान – खेतड़ी
- विशेष – सुप्रसिद्ध गायिका
- गुरु – तानरस खाँ (दिल्ली घराना)
6. संत ज्ञानमति बाई
- कार्यक्षेत्र – गजगौर (जयपुर)
- विशेष रचना – उनकी “50 वाणियाँ” प्रसिद्ध हैं।
7. संत रानी रूपादे
- पति – राव मल्लीनाथ
- गुरु – नाथजागी उगमसी
- भक्ति स्वरूप – निर्गुण उपासना
- विशेष –
- अलख को पति रूप में स्वीकार किया।
- ईश्वर के एकत्व का उपदेश दिया।
8. संत कर्मठी बाई
- कार्यक्षेत्र – बागड़ क्षेत्र
- साधना – वृंदावन
- भक्ति स्वरूप – कृष्ण उपासिका
9. संत जनखुसाली बाई
- गुरु – हल्दिया अखेराम
- रचनाएँ – संतवाणी, गुरुदौनाव, अखैराम
10. संत करमा बाई
- जन्म – कालवा गाँव (नागौर)
- भक्ति स्वरूप – भगवान जगन्नाथ की भक्त कवयित्री
- विशेष तथ्य –
- मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ ने उनके हाथ से बना खीचड़ा खाया था।
- आज भी पुरी जगन्नाथ मंदिर में भगवान को खीचड़ा परोसा जाता है।
11. संत फूली बाई
- स्थान – जोधपुर
- विशेष तथ्य – जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह ने फूली बाई को अपनी धर्मबहिन बनाया था।
राजस्थान की इन महिला संतों ने अपने तप, साधना और भक्ति से समाज को नई दिशा दी। उन्होंने कृष्ण भक्ति, निर्गुण-सगुण उपासना और समानता का संदेश दिया। आज भी इनके भजन, पद और वाणियाँ भक्तों को मार्गदर्शन देती हैं।
राजस्थान की महिला संत कवयित्री – FAQs
Q1. गवरी बाई को किस उपनाम से जाना जाता है?
गवरी बाई को “वागड़ की मीरा” कहा जाता है।
Q2. राना बाई को राजस्थान की दूसरी मीरा क्यों कहा जाता है?
राना बाई कृष्ण भक्ति की महान संत थीं। उन्होंने वृंदावन से गोपीनाथ और राधा की मूर्तियाँ लाकर हरनावां (नागौर) में मंदिर स्थापित किया और 1570 ई. में जीवित समाधि ली। इसलिए उन्हें राजस्थान की दूसरी मीरा कहा जाता है।
Q3. संत करमा बाई की विशेष पहचान क्या है?
संत करमा बाई भगवान जगन्नाथ की भक्त कवयित्री थीं। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ ने उनके हाथ से बना खीचड़ा खाया था। इसी परंपरा में आज भी पुरी जगन्नाथ मंदिर में भगवान को खीचड़ा परोसा जाता है।
Q4. संत ज्ञानमति बाई की कौन-सी रचनाएँ प्रसिद्ध हैं?
संत ज्ञानमति बाई की “50 वाणियाँ” विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
Q5. संत भूरी बाई किससे प्रभावित थीं?
संत भूरी बाई मेवाड़ की महान महिला संत थीं। वे उदयपुर की अलारख बाई और उस्ताद हैदराबादी के भजनों से प्रभावित थीं।
Q6. फूली बाई का जोधपुर दरबार से क्या संबंध था?
जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह ने संत फूली बाई को अपनी धर्मबहिन बनाया था।
Q7. संत रानी रूपादे का भक्ति स्वरूप क्या था?
संत रानी रूपादे ने निर्गुण भक्ति उपासना अपनाई और अलख को पति रूप में स्वीकार कर ईश्वर के एकत्व का उपदेश दिया।