सहायक संधियाँ व अधीनस्थ संधियाँ
ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना और प्रारंभिक विजय
- ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ – एक रॉयल ऑर्डर के माध्यम से ने 31 दिसम्बर 1600 को EIC को एक अधिकार पत्र प्रदान किया।
- 1757 के प्लासी युद्ध के बाद EIC एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी।
- 1764 ई. में बक्सर का युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब मीर कासिम के संयुक्त गठबंधन की सेना को पराजित किया।
अन्य युद्ध
- बेदारा का युद्ध (1759)
- बांदीवास का युद्ध (1760)
इलाहाबाद संधि के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में पूर्णतः राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हुई।
बंगाल की अर्थव्यवस्था और कम्पनी का हस्तक्षेप
- कम्पनी ने बंगाल धीरे-धीरे से राजस्व वसूली शुरू की जिससे बंगाल की अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगी।
- कम्पनी ने अर्थव्यवस्था के बिगडने का आरोप बंगाल के नवाब पर आरोप लगाकर उसका पद छीन लिया।
रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 और घेरे की नीति (Ring Fence Policy)
- रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 में वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- वारेन हेस्टिंग्स ने घेरे की नीति (Policy of Ring Fence) अपनाई।
- Policy of Ring Fence (घेरे की नीति) नीति के प्रतिपादक वारेन हेस्टिंग्स थे।
- कम्पनी को मराठा, मैसूर अफगान जैसी बडी भारतीय शक्तियों के आक्रमण का भय था।
- कम्पनी ने मराठा, मैसूर और अफगान आक्रमणों से बचने के लिए बफर राज्य बनाए।
- इस प्रकार कम्पनी ने अपने चारों ओर बफर (मध्यस्थ) राज्य बनाने का प्रयास किया।
- इसी नीति के तहत आगे चलकर लार्ड वेलेजली ने इन राज्यों को कम्पनी से सहायक संधि करने के लिए मजबूर किया।
राजस्थान सहायक संधियाँ व अधीनस्थ संधियाँ (Subsidiary Alliance)
भरतपुर की सहायक संधि
- राजस्थान में सर्वप्रथम सहायक संधि भरतपुर के राजा रणजीतसिंह ने 21 सितम्बर 1803 ई. में की।
अन्य सहायक संधियाँ
- अलवर से सहायक संधि – 14 नवम्बर 1803 ई.
- धौलपुर द्वारा सहायक संधि – 27 जनवरी 1804 ई.
राजस्थान में सहायक संधियाँ (1803–1804)
क्रमांक | रियासत / राज्य | शासक का नाम | संधि की तिथि | गवर्नर जनरल |
---|---|---|---|---|
1 | भरतपुर | महाराजा रणजीत सिंह | 21 सितम्बर 1803 | लार्ड वेलेजली |
2 | अलवर | बख्तावर सिंह | 14 नवम्बर 1803 | लार्ड वेलेजली |
3 | धौलपुर | महाराजा कीरत सिंह | 27 जनवरी 1804 | लार्ड वेलेजली |
महत्वपूर्ण तथ्य:
- ये संधियाँ लार्ड वेलेजली की सहायक संधि नीति (Subsidiary Alliance Policy) के अंतर्गत हुईं।
- जॉर्ज बार्ली ने बाद में अलवर और भरतपुर को छोड़कर अन्य रियासतों की संधियों को अमान्य कर दिया।
अधीनस्थ पृथक्करण की नीति (Policy of Subsidiary Isolation)
- प्रतिपादन – 1813 ई. वारेन हेस्टिंग्स द्वारा
- 1813 ई. में लार्ड हेस्टिंग्स गवर्नर जनरल बना।
- जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स के आदेश पर दिल्ली के रेजीडेंट चार्ल्स मैटकॉफ को अधीनस्थ संधि का प्रारूप जारी करने के लिए कहा।
अधीनस्थ संधि की प्रमुख शर्तें
- अंग्रेजी कम्पनी और संधिकर्ता राज्य में सदैव मित्रता के संबंध रहेगे।
- सधिकर्ता राज्यो के उत्तराधिकार विवाद, दो राज्यों के आपसी झगडे और उनकी सधियाँ कंपनी की मध्यस्थता से हल होगी।
- राज्यो को अपने सामर्थ्य के अनुसार कंपनी को जरूरत पड़ने पर सैनिक सहायता देनी होगी।
राजस्थान की अधीनस्थ संधियाँ
- लॉर्ड हेस्टिंग्स की अधीनस्थ संधि का पहला शिकार 9 नवंबर 1817 ई. में करौली का हुआ।
- अग्रेजो के साथ अधीनस्थ संधि करने वाला सबसे अंतिम राज्य सिरोही(1823) था।
क्रमांक | राज्य / रियासत | शासक का नाम | संधि की तिथि | गवर्नर जनरल / प्रतिनिधि |
---|---|---|---|---|
1 | करौली | हरपक्षपाल सिंह | 9 नवम्बर 1817 | लार्ड हेस्टिंग्स |
2 | टोंक | अमीर खाँ (पिण्डारी) | 15 नवम्बर 1817 | लार्ड हेस्टिंग्स |
3 | कोटा | उम्मेद सिंह | 26 दिसम्बर 1817 | लार्ड हेस्टिंग्स |
4 | मारवाड़ (जोधपुर) | महाराजा मानसिंह राठौड़ | 9 जनवरी 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
5 | मेवाड़ (उदयपुर) | महाराजा भीमसिंह | 22 जनवरी 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
6 | बूंदी | किशनसिंह | 10 फरवरी 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
7 | बीकानेर | सूरतसिंह | 21 मार्च 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
8 | किशनगढ़ | कल्याण सिंह | 7 अप्रैल 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
9 | जयपुर | जगत सिंह | 15 अप्रैल 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
10 | प्रतापगढ़ | सांगतसिंह | 5 अक्टूबर 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
11 | बांसवाड़ा | उम्मेदसिंह | 25 दिसम्बर 1818 | लार्ड हेस्टिंग्स |
12 | जैसलमेर | मूलराज | 2 जनवरी 1819 | लार्ड हेस्टिंग्स |
13 | सिरोही | शिवसिंह | 11 सितम्बर 1823 | लार्ड हेस्टिंग्स |
14 | झालावाड़ (नवीनतम रियासत) | मदनसिंह | 10 अप्रैल 1838 | अंग्रेजी सरकार |
राजस्थान में अधीनस्थ संधि करने के कारण
1. मराठों का हस्तक्षेप और आक्रमण
- राजस्थान की रियासतें मराठों के लगातार हमलों और लूटमार से परेशान थीं।
- मराठा सरदार अक्सर रियासतों से चढ़ावा, नजराना और कर वसूलते थे।
2. शासकों और सामंतों के आपसी झगड़े
- कई रियासतों के राजाओं और सामंतों (ठाकुरों) के बीच लगातार संघर्ष होता था।
- आपसी विवाद और गद्दी के उत्तराधिकार के झगड़े बढ़ते गए, जिससे स्थिरता खत्म हो गई।
3. आर्थिक दुर्दशा
- लगातार युद्ध, लूटमार और करों के कारण रियासतों की अर्थव्यवस्था बिगड़ चुकी थी।
- किसानों और प्रजा पर अत्यधिक करों का बोझ था, जिससे असंतोष बढ़ा।
4. पिंडारियों का उपद्रव
- पिंडारियों के लगातार हमलों ने राजस्थान की शांति भंग कर दी।
- रियासतें अपने स्तर पर पिंडारियों से निपटने में असफल रहीं।
5. अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति और आकर्षण
- प्लासी (1757) और बक्सर (1764) के बाद अंग्रेज भारत में बड़ी राजनीतिक शक्ति बन चुके थे।
- कई रियासतों ने अंग्रेजों को एक “सुरक्षा गारंटी” के रूप में देखा।
6. स्थिर शासन और सुरक्षा की चाह
- राजस्थान की रियासतें चाहती थीं कि अंग्रेज उनके राज्य की रक्षा करें और उन्हें मराठों व पिंडारियों से बचाएँ।
- अंग्रेजों से संधि करने पर उन्हें आंतरिक शासन का अधिकार तो मिलता था, लेकिन रक्षा की जिम्मेदारी अंग्रेजों की हो जाती थी।
अजमेर पर अंग्रेजों का अधिकार और सैन्य बटालियन
अजमेर पर अंग्रेजों का कब्ज़ा
- 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दौलतराव सिंधिया से अजमेर को जीता।
- 1832 ई. में विलियम बैटिंग के काल में अजमेर कमीशनरी का गठन किया गया।
- गवर्नर जनरल का प्रतिनिधि – मि. लॉकेट (I AGG) नियुक्त हुए।
राजस्थान में अंग्रेजों की सैन्य बटालियन
1. मेर बटालियन (Mair Battalion)
- स्थापना – 1822–23 ई.
- मुख्यालय – ब्यावर छावनी (अजमेर)
- विशेष तथ्य – इस बटालियन ने 1857 की क्रांति में भाग नहीं लिया।
2. शेखावाटी ब्रिगेड (Shekhawati Brigade)
- स्थापना – 1834 ई.
- मुख्यालय – झुन्झुनू(सीकर क्षेत्र)
- अध्यक्षता – मेजर हेनरी फोस्टर
- उद्देश्य – चोरी और डकैती रोकने के लिए गठन।
- उल्लेखनीय व्यक्तित्व – डूंगरजी व जवाहरजी
- दोनों का जन्मस्थान – बठोठ पाटोदा (सीकर)
- दोनों शेखावाटी ब्रिगेड से संबंधित थे।
3. जोधपुर लीजियन (Jodhpur Legion)
- स्थापना – 1835 ई.
- मुख्यालय – एरिनपुरा (पाली)
- गठन का कारण – मारवाड़ (जोधपुर) के घुड़सवारों की अकुशलता का बहाना बनाकर इस लीजियन का गठन किया गया।
4. कोटा कन्टिनजेंट (Kota Contingent)
- स्थापना – 1838 ई.
- अन्य प्रमुख कन्टिनजेंट:
- नीमच (मध्य प्रदेश)
- देवली (टोंक)
- आगरा
5. मेवाड़ भील कोर (Mewar Bhil Corps)
- स्थापना – 1841 ई.
- मुख्यालय – खैरखाड़ा (उदयपुर)
- विशेष तथ्य – इस टुकड़ी ने 1857 की क्रांति में भाग नहीं लिया।
अतिरिक्त तथ्य
- 1845 ई. में AGG (Agent to the Governor General) का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय माउंट आबू में स्थापित किया गया।
नोट: अजमेर कमीशनरी राजस्थान में अंग्रेजों की प्रशासनिक व सैन्य गतिविधियों का केंद्र बनी। यहाँ से कम्पनी ने राजस्थान की रियासतों पर नियंत्रण रखा।
आधुनिक राजस्थान का इतिहास – FAQs
Q1. ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में व्यापार का अधिकार कब मिला?
Ans: 31 दिसम्बर 1600 को ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ-I ने एक रॉयल चार्टर (अधिकार पत्र) के माध्यम से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में व्यापार का अधिकार दिया।
Q2. ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में राजनीतिक शक्ति कब बनी?
Ans: 1757 के प्लासी युद्ध और 1764 के बक्सर युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में एक बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई।
Q3. राजस्थान में पहली सहायक संधि किस राज्य ने की?
Ans: राजस्थान में पहली सहायक संधि 21 सितम्बर 1803 को भरतपुर रियासत के महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से की।
Q4. राजस्थान में सबसे अंतिम अधीनस्थ संधि किस राज्य ने की?
Ans: राजस्थान में सबसे अंतिम अधीनस्थ संधि 1823 में सिरोही रियासत के शिवसिंह ने की थी।
Q5. अधीनस्थ संधि करने के मुख्य कारण क्या थे?
Ans:
- मराठों का हस्तक्षेप और आक्रमण
- शासकों और सामंतों के आपसी झगड़े
- राज्यों की आर्थिक दुर्दशा
- पिंडारियों का उपद्रव
- अंग्रेजों से सुरक्षा और स्थिर शासन की चाह
Q6. अजमेर कमीशनरी का गठन कब और किसके काल में हुआ?
Ans: अजमेर कमीशनरी का गठन 1832 ई. में विलियम बैटिंग के काल में किया गया।
Q7. मेर बटालियन कब और कहाँ स्थापित हुई थी?
Ans: मेर बटालियन की स्थापना 1822–23 ई. में हुई थी, इसका मुख्यालय ब्यावर छावनी (अजमेर) था।
Q8. शेखावाटी ब्रिगेड का गठन किस उद्देश्य से किया गया था?
Ans: शेखावाटी ब्रिगेड का गठन 1834 ई. में चोरी और डकैती रोकने के उद्देश्य से किया गया था।
Q9. जोधपुर लीजियन कहाँ और कब स्थापित हुई थी?
Ans: जोधपुर लीजियन की स्थापना 1835 ई. में एरिनपुरा (पाली) में की गई थी।
Q10. मेवाड़ भील कोर का मुख्यालय कहाँ था और यह किस क्रांति में शामिल नहीं हुई?
Ans: मेवाड़ भील कोर का मुख्यालय खैरखाड़ा (उदयपुर) था और इसने 1857 की क्रांति में भाग नहीं लिया।