आहड़, गणेश्वर और बैराठ सभ्यता
आहड़ सभ्यता – उदयपुर
- यह ताम्रपाषाण काल से सम्बंधित है।
- स्थिति – बनास नदी घाटी, उदयपुर में स्थित है।
- अन्य नाम –
- ताम्रवती – प्राचीन नाम
- आघाटपुर / आघाट दुर्ग (10–11वीं शताब्दी की लेखों में)
- खोज – 1953 ई. अक्षयकीर्ति व्यास द्वारा।
- उत्खनन –
- 1956 ई. – रतनचन्द्र अग्निहोत्री द्वारा।
- 1961–62 ई. – डॉ. एच.डी. साकलिया एवं वी.एन. मिश्रा द्वारा।
प्राप्त सामग्री –
1.आहड़ से प्राप्त धुलकोट नामक बड़े टीले के उत्खनन से ताम्र संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए।
2. आहड़ निवासी –
कृषि, पशुपालन एवं आखेट से संबंधित थे। इनके द्वारा गेहूँ, ज्वार एवं जौ का खाद्यान्न फसल के रूप में प्रयोग किया जाता था।
3. यहाँ के निवासी –
कृषि अवशेष की स्थिति में थे। यहाँ से अनाज रखने के बड़े-बड़े मृद्भांड प्राप्त हुए हैं।
इन्हें स्थानीय भाषा में “गीरे/कोठे” के नाम से जानते हैं।
4. आहड़ निवासी भवन निर्माण में धूप में सुखाई गई ईंटों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे तथा गिट्ट पत्थर (काला पत्थर) से मकान की नींव भरते थे।
- मकान अधिकांश आयताकार के होते थे। इनमें 2–3 कमरे और साथ रसोई होती थी।
- रसोई में 2 या 3 मुँह वाले चूल्हे, पीसने के लिए बलुआ पत्थर के सिलबट्टे प्राप्त होते हैं।
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V. उत्खनन में रसोई के पास मछली, बकरी, हिरण, गाय आदि की हड्डियाँ मिली हैं, जिससे पता चलता है कि आहड़ निवासी मांसाहारी थे।
VI. मकानों में एक से अधिक चूल्हे मिले हैं जो सामूहिक भोजन व्यवस्था की ओर संकेत करते हैं। यहाँ एक मकान से एक साथ 6 चूल्हे प्राप्त हुए हैं।
VII. आहड़ निवासी लाल-कालें मृद्भांड (RBW) शैली का उपयोग करते थे।
VIII. आहड़ से मिट्टी की बनी एक वृषभ आकृति मिली है, जिसे ‘बनासियन बुल’ की संज्ञा दी गई है।
IX. आहड़ निवासी ताम्र धातुकर्मी थे। यहाँ से एक घर से ताँबा गलाने की भट्टी प्राप्त हुई है।
यहाँ से ताँबे की अधिक मात्रा में सामग्रियाँ मिली हैं –
- ताँबे की कुल्हाड़ी
- फलक
- चूड़ियां
- अंगूठियां
- आभूषण
- चद्दरें
IX. सम्भवत: आहड़ में रंगाई-छपाई व्यवसाय विकसित हो चुका था। यहाँ से कपड़ों की छपाई के ठप्पे प्राप्त हुए हैं।
X. आहड़ निवासी आभूषण प्रिय थे। इन्हें मिट्टी के मनकों के बने आभूषण अधिक प्रिय थे। ये मृतकों को उनके आभूषणों सहित दफनाते थे। यहाँ मृतक का सिर उत्तर में तथा पैर दक्षिण में रखे जाते थे।
XI. आहड़ के उत्खनन में बस्ती के आठ स्तर प्राप्त हुए हैं, जिनमें चौथे स्तर से ताँबे की 2 कुल्हाड़ी, पत्थर की आटाचक्की प्राप्त हुई हैं।
XII. यहाँ से ताँबे के बाट व माप मिलना यहाँ व्यापार वाणिज्य की उन्नति का संकेत करता है।
XIII. आहड़ से 6 ताँबे की मुद्राएँ एवं मुहरें प्राप्त हुई हैं। इनमें से एक मुहर पर त्रिशूल (Y) की आकृति एवं दूसरी पर मूर्तिमान देवता उत्तले की छाप में धधक-बाग चित्रित किया गया है। ये दोनों मुहरें द्वितीय सहस्राब्दी ईसा पूर्व की हैं जो मेसोपोटामिया सम्पर्क की ओर इशारा करती हैं।
XIV. डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने आहड़ संस्कृति का काल 1900–1200 BCE बताया है।
गणेश्वर सभ्यता
स्थिति – नीम का थाना (सीकर)
- ताम्रपाषाण संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
- कांतली नदी के किनारे अवस्थित।
उत्खनन – 1977-78 ई. में रतनचंद अग्रवाल एवं श्री विजयकुमार के निर्देशन में उत्खनन का कार्य।
प्राप्त सामग्री
I. गणेश्वर निवासी कृषि, पशुपालन व आभूषण से सम्बंधित थे।
II. यहाँ के मकानों में पत्थर के उपयोग के साक्ष्य मिले हैं तथा ग्रामीण बस्ती की बाड़ से बस्ती के चारों तरफ़ पत्थर की बाड़ बनाई जाने के साक्ष्य मिलते हैं।
III. यह ताम्रकालीन संस्कृति का उत्कृष्ट स्थल है। यहाँ से बड़ी मात्रा में ताम्र उपकरण व ताम्र आभूषण प्राप्त हुए हैं, जिनमें बाणाग्र, बरछे की नोक, कुठारियाँ, कैशपिन आदि प्राप्त हुई हैं।
IV. यहाँ काले व नीले रंग से अंकित मृद्भांड मिले हैं।
V. घुंघरालेदार मिट्टी के बर्तन केवल गणेश्वर से ही मिलते हैं।
VI. यहाँ से 2500 ईसा पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
बैराठ सभ्यता
- खोज – 1936–37 ई. दयाराम साहनी द्वारा।
- उत्खनन – 1962–63 ई. नीलरत्न बनर्जी तथा ढेंकला नाथ दीक्षित ने व्यापक स्तर पर उत्खनन।
- जयपुर जिले के शाहपुरा उपखंड में बैराठ कस्बा स्थित है।
- यहाँ बैराठ के आसपास कई टीले मिले हैं, जिनमें बीजक डूंगरी, भीम डूंगरी तथा महादेव डूंगरी पुरातत्व महत्त्व की हैं।
- इस क्षेत्र से पाषाणकाल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- पाषाणकाल में इस क्षेत्र में मानव की उपस्थिति के चिन्ह मिले हैं।
- यहाँ से पाषाणकालीन औजार तथा खुदा हुआ चित्रकारी मिला है।
- उस काल की संस्कृति का विस्तार डिंगरिया, बमनगढ़ आदि क्षेत्रों में मिलता है।
- बैराठ क्षेत्र में ताम्र संस्कृति के अवशेष बैराठ, किशनगंज, रीछावाड़ी, नंदलालपुरा, गणेश्वर क्षेत्र में मिलते हैं।
- यहाँ लौह संस्कृति के अवशेष जोधपुरा (जयपुर), सुनारी (झुंझुनू) क्षेत्र से मिलते हैं।
- लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में मध्य गंगा घाटी में 16 महाजनपदों का उल्लेख बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में प्राप्त होता है, जिनमें से मत्स्य महाजनपद बैराठ क्षेत्र में स्थित था तथा इसकी राजधानी विराटनगर थी।
- इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जहाँ पांडवों ने अपना एक वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत किया।
- मौर्यकाल में बैराठ क्षेत्र बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध स्थल था।
मौर्य सम्राट अशोक की राजस्थान में बौद्ध धर्म के प्रचार का श्रेय दिया जाता है।
यहाँ से अशोक के बौद्ध शिलालेख प्राचीन विहार तथा असंख्य जातक होते हैं। इनमें भाब्रू लघु शिलालेख प्रमुख है।
भाब्रू शिलालेख
- स्थिति – बीजक डूंगरी (जयपुर)
- खोज – कनिंघम बर्ट द्वारा
- यह पाषाणीय शिलालेख पर उत्कीर्ण है।
- यह वर्तमान में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित है।
Note – 1784 ई. में सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना की, तभी भारत में प्राच्य विद्याओं के अध्ययन को बढ़ावा दिया जा सका।
- इस लेख में सम्राट अशोक की माता का नाम कहा गया है, जो बौद्ध धर्म के त्रिरत्न (बुद्ध, धम्म, संघ) में उनकी आस्था प्रकट करता है।
- इस लघु शिलालेख में बौद्ध द्वारा राहुल को दिए उपदेशों से संबंधित 7 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है –
- उपसिन पाकिन
- विनय सम्पुटकी
- अथियव सागी
- मुनागत भम्मनी
- मोनिय सुते
- सुमिगाथा
- लाघुवीवाची–सुत्ते–अधिगच्च
- गुप्त काल में सम्पूर्ण राजस्थान गुर्जरों के अधीन था।
- हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग अपनी भारत यात्रा के दौरान विराटनगर की यात्रा पर आया।
- उन्हीं ने यहाँ 8 बौद्ध मठों का उल्लेख किया तथा बताया कि यहाँ बैल तथा भेड़ प्रसिद्ध हैं।
क्रमांक | स्थल | जिला | महत्व / प्रमुख अवशेष |
---|---|---|---|
1 | आहड़ | उदयपुर | यहाँ से गेहूँ, जौ की खेती, लाल-कालें मृद्भांड, ताँबे के औज़ार और आभूषण मिले। |
2 | झाड़ोल | उदयपुर | आहड़ संस्कृति का विस्तार स्थल। |
3 | गिलुंड | राजसमंद | यहाँ से प्राचीन नगर योजना और ताँबे के अवशेष मिले। |
4 | पखमटा | राजसमंद | आहड़ संस्कृति से संबंधित ताम्र अवशेष। |
5 | बालापाल | उदयपुर | यहाँ से मिट्टी के बर्तन व ताम्र वस्तुएँ मिलीं। |
6 | गणेश्वर | सीकर | ताँबे के औजारों (कुठार, बाणाग्र) का प्रमुख केंद्र; “गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति” का स्थल। |
7 | म्याह | भरतपुर | ताम्रपाषाण संस्कृति के अवशेष। |
8 | कील्प–माहोली | सवाई माधोपुर | यहाँ से कृषि व ताम्र उपकरणों के साक्ष्य। |
9 | किराड़ोल–रीछावाड़ी | जयपुर | ताम्रपाषाण युग के औज़ार और मृद्भांड। |
10 | सांखरिया–मूंगाल | बीकानेर | यहाँ से ताम्र उपकरण व मिट्टी के बर्तन। |
11 | सोलना़ | अलवर | आहड़ संस्कृति का प्रभाव क्षेत्र। |
12 | कुराड़ा | नागौर | यहाँ से कृषि अवशेष और ताँबे के औज़ार। |
13 | नंदलालपुरा | चाकसू (जयपुर) | ताम्रपाषाण अवशेष और मृद्भांड। |
14 | पीपाड़ालिया | चित्तौड़ | ताम्रयुगीन औज़ार और कृषि संबंधी अवशेष। |
15 | ओसियाना | भीलवाड़ा | यहाँ से मिट्टी के बर्तन और ताँबे की वस्तुएँ मिलीं। |
16 | बूढ़ा पुष्कर | अजमेर | धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण, यहाँ ताम्रपाषाण युगीन अवशेष भी मिले। |
आहड़, गणेश्वर और बैराठ सभ्यता– FAQ
Q1. बनास सभ्यता किसे कहते हैं?
Answer: बनास नदी घाटी (उदयपुर) में विकसित आहड़ सभ्यता को ही बनास सभ्यता कहा जाता है। यह ताम्रपाषाण काल से संबंधित है।
Q2. आहड़ सभ्यता कहाँ स्थित है?
Answer: आहड़ सभ्यता राजस्थान के उदयपुर जिले में बनास नदी घाटी में स्थित है।
Q3. आहड़ सभ्यता के अन्य नाम क्या हैं?
Answer: आहड़ सभ्यता को ताम्रवती (प्राचीन नाम) और आयधापुर / आघाट दुर्ग (10–11वीं शताब्दी के अभिलेखों में) कहा गया है।
Q4. आहड़ सभ्यता की खोज और उत्खनन कब हुआ?
Answer: इसकी खोज 1953 ई. मेंअक्षयकीर्ति व्यास द्वारा।
उत्खनन –
- 1956 ई. – रतनचन्द्र अग्निहोत्री द्वारा।
- 1961–62 ई. – डॉ. एच.डी. साकलिया एवं वी.एन. मिश्रा द्वारा।ने की थी।
Q5. आहड़ सभ्यता से कौन-कौन से प्रमुख अवशेष मिले हैं?
Answer: यहाँ से ताँबे की भट्टियाँ, लाल मृद्भांड, राख-भस्म के ढेर, अनाज रखने के बड़े-बड़े मृद्भांड, चूल्हे, आभूषण, बनासियन बुल, ताँबे की कुल्हाड़ियाँ, मूर्तियाँ, मुद्राएँ और रंगाई-छपाई के ठप्पे मिले हैं।
Q6. आहड़ सभ्यता के निवासी किस प्रकार का जीवन जीते थे?
Answer: आहड़ निवासी कृषि, पशुपालन और आभूषण निर्माण में निपुण थे। वे गेहूँ, ज्वार और जौ की खेती करते थे और मांसाहार भी करते थे।
Q7. आहड़ सभ्यता के मकानों की क्या विशेषताएँ थीं?
Answer: मकान आयताकार होते थे, जिनमें 2–3 कमरे और रसोई होती थी। रसोई में 2–3 मुँह वाले चूल्हे और सिलबट्टे मिले हैं।
Q8. आहड़ सभ्यता का काल किस विद्वान ने निर्धारित किया?
Answer: डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने आहड़ सभ्यता का काल 1900–1200 ईसा पूर्व बताया है।
Q9. गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति कहाँ स्थित है और कब की है?
Answer: गणेश्वर संस्कृति राजस्थान के सीकर जिले के नीम का थाना क्षेत्र में कांतली नदी के किनारे स्थित है। यह लगभग 2500 ईसा पूर्व की सभ्यता है।
Q10. बैराठ सभ्यता का महत्व क्या है?
Answer: बैराठ (जयपुर) से पाषाणकाल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के अवशेष मिले हैं। यह मत्स्य महाजनपद की राजधानी विराटनगर था और मौर्यकाल में बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा।
Q11. भाब्रू लघु शिलालेख कहाँ मिला और इसका महत्व क्या है?
Answer: भाब्रू लघु शिलालेख जयपुर जिले के बीजक डूंगरी से मिला है। इसमें सम्राट अशोक की माता का नाम और बौद्ध धर्म के सात उपदेशों का उल्लेख मिलता है।
Q12. राजस्थान के प्रमुख ताम्रपाषाण स्थल कौन-कौन से हैं?
Answer: आहड़ (उदयपुर), गणेश्वर (सीकर), गिलुंड (राजसमंद), पखमटा (राजसमंद), झाड़ोल (उदयपुर), नंदलालपुरा (जयपुर), पीपाड़ालिया (चित्तौड़), ओसियाना (भीलवाड़ा) और बूढ़ा पुष्कर (अजमेर) प्रमुख ताम्रपाषाण स्थल हैं।