राष्ट्रीय पंचांग का महत्व
भारत का राष्ट्रीय पंचांग शक संवत् पर आधारित है, जिसे भारतीय संविधान ने आधिकारिक तौर पर 22 मार्च 1957 को स्वीकार किया था। ग्रिगोरियन कैलेण्डर का आधार भी शक संवत् ही रहा है, जिससे भारत की संस्कृति एवं अंतर्राष्ट्रीय मान्यताएं दोनों जुड़ी हुई हैं।
शक संवत्: इतिहास और विशेषताएँ
शक संवत् की शुरुआत 78 ईस्वी में कुषाण शासक कनिष्क के काल में हुई थी। यह संवत् ग्रिगोरियन कैलेण्डर से 78 वर्ष पीछे रहता है, और इसका पहला महीना चैत्र एवं अंतिम महीना फाल्गुन होता है। सामान्यत: चैत्र माह का पहला दिन 22 मार्च को होता है, हालांकि अधिवर्ष में यह दिन 21 मार्च भी हो सकता है।
विक्रम संवत्: हिन्दू पंचांग की आत्मा
भारत में अधिकतर धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्य विक्रम संवत् पर आधारित होते हैं। विक्रम संवत् का प्रारम्भ 57 ईसा पूर्व राजा विक्रमादित्य के काल में हुआ था। इसकी गिनती चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (पहला दिन) से शुरू होकर फाल्गुन अमावस्या (अंतिम दिन) तक होती है। यह संवत् ग्रिगोरियन कैलेण्डर से 57 वर्ष आगे रहता है।
हिन्दू पंचांग की माह संरचना और पक्ष
हर हिन्दू माह में दो पक्ष होते हैं:
- कृष्ण पक्ष (बदी पक्ष): 15 दिन, अंतिम दिन अमावस्या।
- शुक्ल पक्ष (सुदि पक्ष): 15 दिन, अंतिम दिन पूर्णिमा।
प्रत्येक माह में कुल मिलाकर 30 दिन होते हैं। हिन्दू नव वर्ष का प्रथम माह चैत्र है और अंतिम माह फाल्गुन, जबकि वर्ष का प्रारंभिक दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा अंतिम दिन चैत्र अमावस्या होते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रमुख त्यौहार
भारत का हिन्दू पंचांग न केवल भारतीय संस्कृति की पहचान है, बल्कि इसकी गणना प्रणाली और तिथि निर्धारण अनुसार पर्वों का आयोजन पूरे देश में श्रद्धापूर्वक किया जाता है। शक संवत् और विक्रम संवत् दोनों भारत के ऐतिहासिक एवं धार्मिक परिवेश को निर्धारित करते हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
हिन्दू संवत् के आधार पर कई महत्वपूर्ण त्यौहार और धार्मिक अनुष्ठान मनाए जाते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है, जो हिन्दू संस्कृति में विशेष स्थान रखती है।
क्रमांक | हिन्दू माह | अंग्रेजी माह |
---|---|---|
1 | चैत्र | मार्च-अप्रैल |
2 | वैसाख | अप्रैल-मई |
3 | ज्येष्ठ | मई-जून |
4 | आषाढ़ | जून-जुलाई |
5 | श्रावण | जुलाई-अगस्त |
6 | भाद्रपद | अगस्त-सितम्बर |
7 | आश्विन | सितम्बर-अक्टूबर |
8 | कार्तिक | अक्टूबर-नवम्बर |
9 | मार्गशीर्ष | नवम्बर-दिसम्बर |
10 | पौष | दिसम्बर-जनवरी |
11 | माघ | जनवरी-फरवरी |
12 | फाल्गुन | फरवरी-मार्च |
पूर्णिमा पर आने वाले पर्व
हिन्दू माह | पूर्णिमा पर आने वाले पर्व |
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चैत्र पूर्णिमा | हनुमान जयंती |
वैसाख पूर्णिमा | पीपल पूर्णिमा एवं बुद्ध पूर्णिमा |
ज्येष्ठ पूर्णिमा | वट सावित्री व्रत |
आषाढ़ पूर्णिमा | गुरु पूर्णिमा एवं कबीर जयंती |
श्रावण पूर्णिमा | रक्षाबन्धन एवं नारियल पूर्णिमा |
भाद्रपद पूर्णिमा | ऊमा महेश्वर व्रत एवं श्राद्ध पक्ष का आरम्भ |
आश्विन पूर्णिमा | शरद पूर्णिमा |
कार्तिक पूर्णिमा | त्रिपुरा पूर्णिमा एवं गुरुनानक जयंती |
फाल्गुन पूर्णिमा | होलिका पर्व |
1.चैत्र पूर्णिमा
हनुमान जयंती, भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, व्रत रखते हैं, दान-पुण्य करते हैं और हनुमान चालीसा व सुंदरकांड का पाठ करते हैं।
2.वैशाख पूर्णिमा
वैशाख पूर्णिमा, जिसे बुद्ध पूर्णिमा या पीपल पूर्णिमा भी कहते हैं, हिंदू और बौद्ध धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आती है, जिस दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। बौद्ध धर्म के लोग इसे ज्ञान प्राप्ति का दिन मानते हैं और पीपल (बोधि वृक्ष) के नीचे पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन पीपल की पूजा का विशेष महत्व है, जिससे श्रीहरि की कृपा और पितरों को प्रसन्न करने का विधान है।
3.ज्येष्ठ पूर्णिमा
ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत, विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए रखती हैं. इस दिन वे वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं, उसकी परिक्रमा करती हैं, और सावित्री व सत्यवान की कथा का पाठ करती हैं. वट वृक्ष को त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का वास स्थान माना जाता है, और इस वृक्ष की पूजा से शनिदेव की कुदृष्टि से भी मुक्ति मिलती है
4.आषाढ़ पूर्णिमा
आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है, जो महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है, और इस दिन कबीर जयंती भी मनाई जाती है, खासकर कबीरपंथियों द्वारा। गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है, जबकि कबीर जयंती पर संत कबीर के उपदेशों को याद किया जाता है और कबीर पंथी आश्रमों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
5.श्रावण पूर्णिमा
श्रावण पूर्णिमा, जिसे रक्षाबंधन के साथ-साथ नारियल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, एक ही दिन मनाई जाती है, लेकिन इसके अलग-अलग रूप हैं. उत्तर भारत में मुख्य रूप से रक्षाबंधन मनाया जाता है, जहाँ बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं. वहीं, महाराष्ट्र और कोंकण जैसे तटीय क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा मनाई जाती है, जहाँ मछुआरे समुद्र देवता वरुण को नारियल अर्पित करके नए मछली पकड़ने के मौसम की शुरुआत करते हैं और सुरक्षित यात्रा की कामना करते हैं
6.भाद्रपद पूर्णिमा
भाद्रपद पूर्णिमा वह दिन है जब उमा-महेश्वर व्रत किया जाता है, और इसी दिन से पितृ पक्ष यानी श्राद्ध का आरंभ होता है. इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है और पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है
7.आश्विन पूर्णिमा
आश्विन पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा एक ही हैं; आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और ऐसा माना जाता है कि इससे अमृत की वर्षा होती है. यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कोमदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, और इसे देवी लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है
8.कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा, जिसे त्रिपुरा पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहते हैं, एक ही दिन मनाई जाती है, जिस दिन गुरु नानक जयंती भी होती है. इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था और देवताओं ने भी दीपावली मनाई थी, इसी कारण इसे त्रिपुरा पूर्णिमा और देव दीपावली कहा जाता है. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था, इसलिए इसे गुरु नानक जयंती या गुरु पूरब कहते हैं
9.फाल्गुन पूर्णिमा
फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है, जो राक्षसी होलिका को जलाने और प्रहलाद की भक्ति का उत्सव मनाने का प्रतीक है। यह पर्व धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, और इस दिन दान-पुण्य, व्रत व भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।
अमावस्या के दिन आने वाले पर्व
अमावस्या का नाम | संबंधित पर्व |
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श्रावण अमावस्या | हरियाली अमावस्या |
भाद्रपद अमावस्या | सतिया अमावस्या |
आश्विन अमावस्या | श्राद्ध पक्ष का समापन |
कार्तिक अमावस्या | दीपावली का पर्व |
माघ अमावस्या | मौनी अमावस्या |
1.श्रावण अमावस्या
श्रावण अमावस्या को ही हरियाली अमावस्या कहते हैं, यह सावन मास में पड़ने वाली अमावस्या होती है, जब चारों ओर हरियाली छाई होती है। यह तिथि पितरों की शांति के लिए दान-तर्पण, भगवान शिव-पार्वती की पूजा और वृक्षारोपण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान, जरूरतमंदों को दान देना और शुभ वृक्ष लगाना अत्यंत फलदायी होता है।
2.भाद्रपद अमावस्या
भाद्रपद अमावस्या को सतिया अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन पवित्र कुशा इकट्ठा की जाती है और पितरों के लिए तर्पण व श्राद्ध किया जाता है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को आती है और पितरों की कृपा पाने के लिए शुभ मानी जाती है।
3.आश्विन अमावस्या
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष रहता है। इस साल 2 अक्टूबर 2025 को पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा। 16 दिनों से चल रहे श्राद्ध पक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या को होता है। यदि किसी ने अपने पितरों की तिथि को श्राद्ध न किया हो तो इस अमावस्या को कर सकते हैं।
4.कार्तिक अमावस्या
कार्तिक अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई की विजय और ज्ञान की आध्यात्मिक विजय का प्रतीक है. इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं, इसलिए उनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.
5.माघ अमावस्या
माघ अमावस्या और मौनी अमावस्या एक ही दिन होते हैं, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को “मौनी” इसलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन मौन रहकर पवित्र नदियों में स्नान करने, दान-पुण्य करने और पितरों को प्रसन्न करने का विशेष महत्व है, जिससे मोक्ष और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।