प्रस्तावना
राजस्थान के इतिहास को यदि शब्दों में बाँधा गया है, तो उसका श्रेय जिन कुछ ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को जाता है, उनमें मुहणोत नैणसी का नाम सर्वोपरि है। एक प्रतिभाशाली प्रशासक, संवेदनशील इतिहासकार, और संस्कृतिप्रेमी व्यक्तित्व के रूप में मोहनोत नैणसी ने न केवल अपने समय के शासन को सँवारा, बल्कि मारवाड़ के इतिहास को शब्दों में बाँधकर उसे कालजयी बना दिया।
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- पूरा नाम: मुहणोत नैणसी
- जन्मकाल: लगभग 1610 ईस्वी
- जन्म स्थान: जसोल (जोधपुर राज्य, वर्तमान राजस्थान)
- जाति/समुदाय: चारण (मुहणोत उपनाम इसी कुल का प्रतीक है)
- मृत्यु– 3 अगस्त, 1670 ई.
मुहणोत नैणसी चारण जाति के थे, जो राजाओं के दरबारों में कवि, इतिहासकार और राजपुरोहित की भूमिकाएँ निभाते थे। उनका परिवार पूर्व से ही मारवाड़ राज्य में उच्च सम्मान प्राप्त करता था।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
नैणसी को बचपन से ही साहित्य, इतिहास और प्रशासन में गहरी रुचि थी। उन्होंने संस्कृत, प्राचीन राजस्थानी और फारसी भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की। इनकी प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि युवा अवस्था में ही मारवाड़ दरबार की दृष्टि उन पर पड़ी।
उनके शुद्ध भाषा-ज्ञान, प्रशासनिक कुशलता और बौद्धिक दृष्टिकोण ने उन्हें शीघ्र ही जोधपुर राज्य की सेवा में पहुँचा दिया।
जोधपुर दरबार में प्रवेश
मुहणोत नैणसी ने जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (शासनकाल: 1638–1678 ई.) के शासनकाल में दरबारी सेवाएँ प्रारंभ कीं। वे राज्य के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों में से एक बने और उन्हें “दीवान” (प्रधान मंत्री) का पद प्राप्त हुआ।
प्रमुख पद:
- अमीन (राजस्व निरीक्षक) – पूरे मारवाड़ क्षेत्र की परगना-व्यवस्था का निरीक्षण
- दीवान – राजकीय प्रशासन, राजस्व और न्यायिक कार्यों का संचालन
मुहणोत नैणसी और महाराजा जसवंत सिंह प्रथम का संबंध मारवाड़ के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रूप से प्रभावशाली रहा है। दोनों के बीच संबंध शासक और प्रधान सेवक का ही नहीं था, बल्कि एक गहरी राजनैतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक साझेदारी भी थी।
नीचे मैं इस विषय पर एक विस्तृत विश्लेषणात्मक प्रस्तुति दे रहा हूँ — “मुहणोत नैणसी बनाम महाराजा जसवंत सिंह प्रथम” के परिप्रेक्ष्य में:
मुहणोत नैणसी बनाम महाराजा जसवंत सिंह प्रथम: सत्ता, सेवा और संघर्ष
भूमिका
मारवाड़ (जोधपुर) के इतिहास में 17वीं शताब्दी का मध्यकाल राजनीतिक दृष्टि से उथल-पुथल भरा था। इसी दौर में एक ओर थे महाराजा जसवंत सिंह प्रथम — एक पराक्रमी शासक, जिन्होंने मुगलों के साथ संघर्ष और गठजोड़ दोनों की राजनीति अपनाई; और दूसरी ओर थे मुहणोत नैणसी — एक कुशल प्रशासक, इतिहासकार और नीति-निर्माता, जिनका प्रभाव दरबार और राज्य दोनों पर स्पष्ट था।
महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (शासनकाल: 1638–1678 ई.)
- वंश: राठौड़
- पिता: महाराजा गज सिंह
- प्रसिद्धि: मुगल दरबार के वरिष्ठ आमात्य, औरंगज़ेब के शासनकाल में प्रमुख राजपूत शासक
- उपलब्धियाँ:
- अहमदनगर और काबुल अभियानों में नेतृत्व
- अफगान विद्रोहों का दमन
- मुगल-राजपूत संबंधों में संतुलन
मुहणोत नैणसी: दीवान, इतिहासकार और प्रशासक
- पद: दीवान (प्रधान मंत्री)
- जिम्मेदारी: राज्य प्रशासन, राजस्व नियंत्रण, परगना निरीक्षण
- साहित्यिक कार्य:
- “ख्यात”: राजवंशों का इतिहास
- “पर्गना री विगत”: राज्य का भौगोलिक-प्रशासनिक दस्तावेज
संबंध की प्रकृति: सहयोग बनाम तनाव
सहयोग के बिंदु:
- राज्य की व्यवस्था को सुव्यवस्थित करना:
नैणसी की मदद से जसवंत सिंह ने मारवाड़ को प्रशासनिक दृष्टि से संगठित किया। - इतिहास लेखन को प्रोत्साहन:
महाराजा जसवंत सिंह ने नैणसी को प्राचीन ग्रंथों तक पहुँच और संसाधन दिए। - आंतरिक सुधारों में साथ:
नैणसी के प्रशासनिक निर्णयों को राजकीय समर्थन प्राप्त था — विशेषकर परगना व्यवस्थाओं में।
विरोध और मनमुटाव:
मध्य और उत्तर शासनकाल में नैणसी और जसवंत सिंह के संबंधों में दरार आई, जिसके पीछे कुछ संभावित कारण बताए जाते हैं:
- मुगल वफादारी पर असहमति:
नैणसी मुगल दरबार की नीतियों को लेकर अधिक सतर्क थे, जबकि जसवंत सिंह ने कई बार खुलेआम औरंगज़ेब का समर्थन किया। - प्रशासनिक मतभेद:
नैणसी कुछ मामलों में स्वायत्त निर्णय लेते थे, जिससे महाराजा को असहजता हुई। - दरबारी ईर्ष्या और षड्यंत्र:
अन्य दरबारियों ने नैणसी की बढ़ती प्रतिष्ठा से ईर्ष्या कर जसवंत सिंह को उनके विरुद्ध भड़काया।
निष्कासन और जीवन का अंतिम दौर
इन सभी घटनाओं के परिणामस्वरूप:
- मोहनोत नैणसी को दरबार से निष्कासित कर दिया गया।
- वे अपने अंतिम जीवनकाल में साहित्य और इतिहास लेखन में लग गए।
- उन्होंने अपने निष्कासन को व्यक्तिगत आघात नहीं, बल्कि राजनीतिक सच्चाई मानते हुए विरक्ति से स्वीकार किया।
नैणसी की दृष्टि से जसवंत सिंह
नैणसी ने अपनी रचनाओं में जसवंत सिंह का उल्लेख सम्मानपूर्वक किया है, लेकिन कहीं-कहीं वे उनकी कमजोरियों को भी उजागर करते हैं:
- “राजा जसवंत सिंह बहुराजमति था, पर अनमन में मति विपरीत भी बहुधा होई।”
(भाव: राजा विद्वान था, पर कभी-कभी निर्णय उलटे पड़ते थे।)
ऐतिहासिक मूल्यांकन
पक्ष | मोहनोत नैणसी | महाराजा जसवंत सिंह |
---|---|---|
भूमिका | प्रशासक, लेखक, नीति सलाहकार | शासक, योद्धा, रणनीतिकार |
दृष्टिकोण | यथार्थवादी, तटस्थ | साम्राज्यवादी, राजनैतिक |
योगदान | ऐतिहासिक लेखन, प्रशासनिक संरचना | सामरिक विस्तार, मुगल संबंध |
संबंध की प्रकृति | आरंभ में सहयोग, बाद में टकराव | शुरू में समर्थन, फिर असहमति |
निष्कर्ष
मुहणोत नैणसी और महाराजा जसवंत सिंह प्रथम की जोड़ी ने मिलकर मारवाड़ को शासन, संस्कृति और इतिहास की दृष्टि से एक गौरवशाली युग दिया। दोनों के बीच हुए विचारों के टकराव को केवल संघर्ष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह “राजनीति बनाम विवेक” की टकराहट भी थी।
जहाँ जसवंत सिंह ने तलवार से राज्य बढ़ाया, वहीं नैणसी ने कलम से उस राज्य का इतिहास अमर किया।
इतिहास लेखन की शुरुआत
प्रशासनिक कार्यों के दौरान मोहनोत नैणसी को मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों, ग्रामों और परगनों में भ्रमण का अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने न केवल प्रशासनिक सूचनाएँ संकलित कीं, बल्कि ऐतिहासिक व सांस्कृतिक जानकारियाँ भी एकत्र कीं।
यही अनुभव उनकी महान ऐतिहासिक कृतियों की नींव बना।
प्रमुख रचनाएँ
1. “मुहणोत नैणसी री ख्यात” (Nainsi Ri Khyat)
- यह नैणसी की सबसे प्रसिद्ध कृति है।
- इसमें राजस्थान के प्रमुख राजवंशों, विशेषकर राठौड़ वंश का इतिहास दर्ज है।
- ख्यात में ऐतिहासिक घटनाएँ, युद्ध, वीरता की कथाएँ, और शासकों की वंशावली प्रस्तुत की गई है।
- भाषा: प्राचीन राजस्थानी
- शैली: वर्णनात्मक, घटनात्मक और विश्लेषणात्मक
कुछ महत्वपूर्ण वंश जो इसमें वर्णित हैं:
- राठौड़ (मारवाड़)
- सिसोदिया (मेवाड़)
- चौहान (अजमेर)
- भाटी (जैसलमेर)
- कछवाहा (आमेर)
2. “मारवाड़ रा परगना री विगत” (Marwar ra Pargana ri Vagat)
- यह एक अनोखा प्रशासनिक ग्रंथ है जिसमें मारवाड़ के प्रत्येक परगना की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक स्थिति का वर्णन है।
- ग्रामों की संख्या, भूमि-प्रकार, सिंचाई, कर प्रणाली, मंदिरों और जातीय संरचना का ब्योरा इसमें मिलता है।
- यह ग्रंथ मध्यकालीन राजस्थानी समाज और प्रशासन का एक दस्तावेज है।
नैणसी का प्रशासनिक योगदान
- उन्होंने कर संग्रह की प्रणाली को सरल और न्यायसंगत बनाया।
- परगना व्यवस्था को पुनः व्यवस्थित किया।
- जोधपुर के कई गाँवों में जल-संरचना, मंदिर निर्माण और शिक्षण संस्थाओं को राजकीय सहायता दिलवाई।
- उन्होंने राज्य अभिलेखागार और दस्तावेजों के संरक्षण की नींव रखी।
नैणसी का व्यक्तित्व और आचार-विचार
- वे न केवल विद्वान थे, बल्कि नीति-निपुण, स्पष्टवादी और धर्मपरायण व्यक्ति भी थे।
- उनकी लेखनशैली में तटस्थता, वस्तुनिष्ठता और ऐतिहासिकता झलकती है।
- वे चारण परंपरा के अनुसार वीरता, धर्म, वचनपालन और इतिहास चेतना के पोषक थे।
मृत्यु
- मुहणोत नैणसी की मृत्यु – 3 अगस्त, 1670 ई. में हुई।
- उन्होंने अपनी अंतिम सांसें जोधपुर राज्य की सेवा में ही लीं।
- उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी कृतियाँ मारवाड़ और पूरे राजस्थान के लिए अमूल्य धरोहर बनी रहीं।
नैणसी की कृतियों का महत्व
- इतिहास का साक्ष्य: उनकी ख्यातें और विगत आज भी राजस्थान के इतिहासकारों के लिए मूल स्रोत मानी जाती हैं।
- सांस्कृतिक संरक्षण: उन्होंने लोककथाओं, जातीय परंपराओं और सामाजिक संरचना को शब्दों में संरक्षित किया।
- भाषाई योगदान: उनकी रचनाओं से प्राचीन राजस्थानी गद्य का उत्कृष्ट रूप सामने आता है।
- राजनीतिक दृष्टिकोण: वे शासकों की आलोचना करने से भी नहीं चूके, यदि वे जनता के विरुद्ध कार्य करते थे।
स्मरण और सम्मान
आज मुहणोत नैणसी के नाम पर:
- राजस्थान विश्वविद्यालयों में शोधकार्य किए जाते हैं
- “नैणसी रिसर्च सेंटर” जैसे संस्थान उनकी रचनाओं पर कार्य कर रहे हैं
- राजस्थान सरकार द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन कराया गया है
- इतिहासकार उन्हें “राजस्थानी इतिहास लेखन का पितामह” मानते हैं
निष्कर्ष
मुहणोत नैणसी एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने न केवल प्रशासनिक योग्यता का उदाहरण प्रस्तुत किया, बल्कि इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को कलमबद्ध कर राजस्थान की आत्मा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया। उनकी लेखनी में केवल घटनाओं का वर्णन नहीं है, बल्कि उसमें जनमानस की धड़कन, शौर्य की गर्जना और धर्म-संस्कृति की ध्वनि भी सुनाई देती है।
सन्दर्भ
- “मुहणोत नैणसी री ख्यात” – संपादक: गोरधनराम भाटी, राजस्थान प्रकाशन
- “मारवाड़ रा परगना री विगत” – राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर
- Col. James Tod – Annals and Antiquities of Rajasthan
- Dr. G.N. Sharma – Rajasthan Through the Ages
- राजस्थान विश्वविद्यालय के शोध-पत्र (Rajasthan University Journals)
- व्यक्तिगत पत्र-संग्रह और अभिलेख (Jodhpur Royal Archives)
“मुहणोत नैणसी री ख्यात”: राजस्थान का इतिहास बोलती किताब
“इतिहास वह आईना है, जिसमें हम अपने वर्तमान और भविष्य की परछाइयाँ देख सकते हैं।”
राजस्थान के इतिहास में जब भी हम किसी प्रमाणिक, प्राचीन और राजकीय दस्तावेज की तलाश करते हैं, तो एक नाम सर्वप्रथम उभरकर आता है — “मुहणोत नैणसी री ख्यात”। यह केवल एक इतिहास पुस्तक नहीं, बल्कि राजस्थानी अस्मिता, शौर्य, वंशानुक्रम और संस्कृति की जीवंत धरोहर है।
इस ग्रंथ की रचना जिस काल में हुई, वह समय राजस्थान में राजपूत राज्यों, मुगलों और मराठों की राजनीतिक खींचतान, सामाजिक संगठन, और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का युग था। इस लेख में हम जानेंगे कि मुहणोत नैणसी कौन थे, उनकी “ख्यात” का क्या स्वरूप है, और यह पुस्तक क्यों राजस्थान के ऐतिहासिक साहित्य की आधारशिला मानी जाती है।
लेखक परिचय: कौन थे मुहणोत नैणसी?
मुहणोत नैणसी 17वीं शताब्दी में मारवाड़ (वर्तमान जोधपुर) के चारण समाज के विद्वान, इतिहासकार और प्रशासक थे। वे मारवाड़ दरबार में दीवान (प्रधान) के रूप में कार्यरत थे और उनके कार्यकाल में शासक थे — महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (1638–1678 ई.)।
विशेषताएँ:
- चारण परंपरा के ज्ञानी, जिनकी लेखनी में वीर रस, तथ्य और धार्मिक भाव की त्रिवेणी मिलती है।
- राजकीय प्रशासन का व्यापक अनुभव — यही कारण है कि उनकी लिखी बातें केवल सुनी-सुनाई नहीं, प्रामाणिक व प्रलेखित हैं।
- उनका दूसरा प्रमुख ग्रंथ है: “नैणसी री विगत”, जिसमें प्रशासनिक, भौगोलिक और सामाजिक विवरण मिलता है।
“नैणसी री ख्यात”: पुस्तक का स्वरूप
- नाम: नैणसी री ख्यात
- रचना काल: लगभग 1650–1670 ई.
- भाषा: पुरानी राजस्थानी (मारवाड़ी), संस्कृत, ब्रज और फारसी शब्दों का मेल
- प्रकार: ऐतिहासिक ख्यात (राजवंशों का वृत्तांत)
ख्यात क्या होती है?
राजस्थानी साहित्य में “ख्यात” शब्द उन ग्रंथों के लिए प्रयुक्त होता है, जिनमें राजवंशों, युद्धों, राजाओं, वीरों और महत्वपूर्ण घटनाओं का ऐतिहासिक वर्णन होता है।
ख्यातें चारण, भट्ट और जैन विद्वानों द्वारा रचित होती थीं, जिनका उद्देश्य था:
- इतिहास संरक्षित करना
- राजाओं की कीर्ति का विस्तार
- सामाजिक चेतना और मर्यादाओं को दर्शाना
पुस्तक की संरचना (Structure)
“नैणसी री ख्यात” में 26 से अधिक राजवंशों का क्रमबद्ध इतिहास दिया गया है। इसमें केवल राजाओं की वंशावली ही नहीं, बल्कि प्रमुख युद्ध, राजनीतिक घटनाएँ, समाज-व्यवस्था, धार्मिक स्थलों, और दरबारी जीवन का भी सजीव वर्णन मिलता है।
“नैणसी री ख्यात” में वर्णित प्रमुख राजवंश:
राजवंश | स्थान |
---|---|
राठौड़ | मारवाड़ |
सिसोदिया | मेवाड़ |
कछवाहा | आमेर |
भाटी | जैसलमेर |
चौहान | अजमेर |
परमार | आबू |
तंवर | दिल्ली |
झाला | झालावाड़ |
गहलोत | चित्तौड़ |
मुख्य विषय-वस्तु (Main Themes)
1. वंशावली और उत्थान
हर वंश की उत्पत्ति, संस्थापक शासक, राजधानियाँ, किलों और विस्तार की कथा इस ग्रंथ की नींव है।
उदाहरण:
“राव सिहा कन्नौज छोड़ मारवाड़ आयो, और मेड़ता में नींव धरी।”
2. युद्ध और सैन्य पराक्रम
- हल्दीघाटी, सिंधल, मांडू, और काबुल अभियानों का विवरण
- राजपूतों की रणभूमि में वीरता
- शत्रुओं के साथ संघर्ष और संधियाँ
3. सामाजिक व्यवस्था
- जातियाँ, चारण-ब्राह्मण संबंध, भूमिदान
- धार्मिक आस्थाएँ, मंदिरों का निर्माण, तीर्थों का महत्त्व
- स्त्रियों की स्थिति, जौहर, सती परंपरा
4. धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना
- पुष्कर, ओसियां, द्वारका जैसे स्थलों का वर्णन
- राजाओं की धार्मिक आस्था — शिव, विष्णु, जैन परंपराएँ
5. राजनीतिक और प्रशासनिक सूझबूझ
- दीवान, थानेदार, सेनापति जैसे पदों का उल्लेख
- शासकों के निर्णय, मंत्रियों के षड्यंत्र
- दिल्ली दरबार और मुगल संबंधों की विवेचना
लेखन शैली की विशेषताएँ
तत्व | विवरण |
---|---|
भाषा | सरल लेकिन गूढ़ मारवाड़ी |
शैली | वर्णनात्मक, प्रसंगानुसार वीर रस |
दृष्टिकोण | आलोचनात्मक, लेकिन निष्पक्ष |
ऐतिहासिकता | समसामयिक साक्ष्य आधारित, प्रामाणिकता |
नैणसी भावुकता में बहते नहीं, बल्कि इतिहास को संतुलित और सटीक ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्त्व
प्रामाणिक स्रोत:
राजस्थान के इतिहासकार और विश्वविद्यालय आज भी “नैणसी री ख्यात” को मूल प्राथमिक स्रोत (Primary Source) मानते हैं।
प्रशासनिक दृष्टिकोण:
इस ग्रंथ में केवल राजाओं की वीरता नहीं, बल्कि राज्य व्यवस्था, न्याय, कर प्रणाली और ग्रामीण जीवन का भी विवरण मिलता है।
चारण परंपरा का गौरव:
चारण जाति के भीतर साहित्यिक चेतना, तथ्य संग्रह और निष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण है यह कृति।
राजस्थानी भाषा के विकास में योगदान:
मारवाड़ी गद्य लेखन की प्रारंभिक और सबसे सुंदर अभिव्यक्ति
कुछ उल्लेखनीय उदाहरण
- राव मालदेव के युद्धों का चित्रण इतने विस्तार से किया गया है कि मानो युद्ध आँखों के सामने हो रहा हो।
- हल्दीघाटी युद्ध का निष्पक्ष वर्णन — न तो अतिशयोक्ति, न पक्षपात।
- जसवंत सिंह प्रथम की मुगल नीति पर गहरा विश्लेषण
अन्य ख्यातों से तुलना
ग्रंथ | लेखक | तुलना बिंदु |
---|---|---|
बाड़मेर री ख्यात | हरिदास | सीमित क्षेत्रीय वर्णन |
मुहणोत नैणसी री ख्यात | नैणसी | विस्तृत, राज्य स्तरीय |
जेम्स टॉड की किताब | टॉड | विदेशी दृष्टिकोण, सांस्कृतिक पूर्वग्रह |
संरक्षित संस्करण व अध्ययन स्थल
- राजस्थान राज्य अभिलेखागार, जोधपुर
- संस्कृत अकादमी, बीकानेर
- राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
- डिजिटल संस्करण: कुछ अंश राजस्थानी ग्रंथमाला में ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं
निष्कर्ष
“मुहणोत नैणसी री ख्यात” केवल एक किताब नहीं, बल्कि राजस्थान का दर्पण है। इस ग्रंथ में वीरता है, विद्वता है, आलोचना है और आत्मबोध भी है। नैणसी न केवल इतिहासकार थे, वे राजस्थानी अस्मिता के संरक्षक थे। उनकी लेखनी ने राजपूताना को कागज़ पर अमर कर दिया।
यदि आप राजस्थान की मिट्टी, शौर्य और संस्कृति को समझना चाहते हैं, तो “नैणसी री ख्यात” पढ़ना अनिवार्य है। यह उस समय की आवाज है, जो आज भी गूंज रही है।
संदर्भ ग्रंथ
- नैणसी री ख्यात — संपादक: गोरधनराम भाटी
- डॉ. गणपत लाल शर्मा — राजस्थानी ऐतिहासिक साहित्य
- कर्नल जेम्स टॉड — Annals and Antiquities of Rajasthan
- डॉ. जयनारायण आसोपा — चारण इतिहास
- जोधपुर अभिलेखागार — ऐतिहासिक दस्तावेज
“मारवाड़ रा परगना री विगत”: राजस्थान के प्रशासनिक इतिहास की अमूल्य धरोहर
“शासन की असली तस्वीर इतिहास की किताबों से नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़ी जानकारी से बनती है।”
राजस्थान के इतिहास में राजपूत वीरता, युद्ध और वंशावली जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण है उस क्षेत्र की प्रशासनिक व्यवस्था, राजस्व प्रणाली, और ग्राम्य जीवन की संरचना।
इन्हीं पहलुओं को उजागर करती है एक अत्यंत दुर्लभ और विशिष्ट पुस्तक —
“मारवाड़ रा परगना री विगत”, जिसे लिखा था 17वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध चारण इतिहासकार मुहणोत नैणसी ने।
इस लेख में हम जानेंगे कि यह पुस्तक क्या है, किस उद्देश्य से लिखी गई थी, इसकी रचना की पृष्ठभूमि, और क्यों यह आज भी इतिहास के विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और प्रशासनिक इतिहास के जानकारों के लिए अनमोल स्रोत मानी जाती है।
लेखक परिचय: मुहणोत नैणसी
मुहणोत नैणसी मारवाड़ दरबार के प्रतिष्ठित चारण, इतिहासकार और दीवान थे। वे महाराजा जसवंत सिंह प्रथम के शासनकाल में मुख्य प्रशासक (दीवान) थे। उनके पास:
- राजकीय प्रशासन का व्यावहारिक अनुभव
- इतिहास लेखन की दुर्लभ दृष्टि
- चारण परंपरा की भाषिक और सांस्कृतिक विरासत थी।
उन्होंने दो प्रमुख ग्रंथों की रचना की:
- “मुहणोत नैणसी री ख्यात” — जिसमें राजवंशों का इतिहास है।
- “मारवाड़ रा परगना री विगत” — जिसमें पूरे मारवाड़ की प्रशासनिक और सामाजिक संरचना का विवरण है।
पुस्तक का नाम: मारवाड़ रा परगना री विगत
तत्व | विवरण |
---|---|
लेखक | मुहणोत नैणसी (चारण) |
रचना काल | 1658–1664 ई. |
रचना स्थल | जोधपुर (मारवाड़ दरबार) |
भाषा | प्राचीन राजस्थानी (मारवाड़ी), संस्कृत-फारसी मिश्रण |
विषय | परगना, गांव, राजस्व, जातियाँ, मंदिर, प्राकृतिक संसाधन, जनसंख्या |
“विगत” शब्द का अर्थ क्या है?
“विगत” का अर्थ होता है — वृत्तांत, विवरण या वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा।
इस ग्रंथ में “विगत” का अर्थ है:
“मारवाड़ राज्य के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक परगना की विस्तृत जानकारी — जैसे उसकी भूगोल, जनसंख्या, गाँवों की संख्या, उपज, मंदिर, जातियाँ, व व्यापारिक स्थिति।”
पुस्तक की संरचना (Structure of the Text)
“मारवाड़ रा परगना री विगत” को नैणसी ने प्रशासनिक दृष्टि से तैयार किया था। इसमें 170 से अधिक परगनों और हज़ारों गाँवों का विवरण मिलता है।
पुस्तक में दी गई जानकारी के प्रमुख बिंदु:
अनुभाग | विवरण |
---|---|
परगना का नाम | हर परगना का पृथक अध्याय |
भूमि की स्थिति | किस्म की ज़मीन, सिंचाई व्यवस्था |
राजस्व | लगान, उपज, वसूली तंत्र |
जातियाँ | हर परगना में बसने वाली जातियों की सूची |
धार्मिक स्थल | मंदिर, देवस्थान, तीर्थ |
शासकीय इमारतें | किले, हवेलियाँ, कोठार |
वन संपदा | किस परगना में कौन से वृक्ष, जड़ी-बूटियाँ |
किस-किस परगना का विवरण है?
ग्रंथ में जोधपुर राज्य के अंतर्गत आने वाले लगभग सभी प्रमुख परगनों का उल्लेख है, जैसे:
- पाली, मेड़ता, सोजत, जैतारण, ओसियां, बालेसर, फलोदी, मंडोर, जालोर, सिरोही, बाड़मेर, मालाणी, आदि।
इन सभी परगनों के ग्राम, प्रमुख थाकुर, जागीरदार, गोत्र, पूजास्थल, आदि का वर्णन मिलता है।
प्रमुख विशेषताएँ (Key Features)
1. राजस्व एवं कृषि विवरण
- प्रत्येक परगना की भूमि किस्में (बेराबर, चौर, चप्पर, नाड़ी)
- उपज (जौ, बाजरा, गेहूं, ग्वार, कपास)
- सिंचाई साधन (तालाब, नहरें, कुएं)
- कर-संग्रह की विधियाँ
2. जनसंख्या और जातीय संरचना
- चारण, राजपूत, ब्राह्मण, मेघवाल, कोली, भील आदि जातियों की बसावट
- सामाजिक काम-काज: लोहार, बढ़ई, सुनार, तेली
3. धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर
- प्रसिद्ध मंदिरों की जानकारी (जैसे: ओसियां का महालक्ष्मी मंदिर)
- लोकदेवता: तेजाजी, पाबूजी, मल्लिनाथ, गोगाजी
4. प्रशासनिक नेटवर्क
- थाने, कोट, पट्टेदार, गुमाश्ते, जगदार
- न्याय व्यवस्था व दंड नीति के संकेत
इतिहास में महत्त्व (Historical Importance)
क्षेत्र | योगदान |
---|---|
भूगोल | 17वीं सदी के मारवाड़ का नक्शा खींचता है |
प्रशासन | किस प्रकार गांवों से लेकर रियासत तक शासन चलता था |
राजस्व | आर्थिक नीति, कर व्यवस्था, उपज पर निर्भरता |
समाज | जातियाँ, जनसंख्या वितरण, कार्य विभाजन |
पर्यावरण | पेड़-पौधे, जल स्रोत, पर्यावरणीय जानकारी |
शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी क्यों?
- प्राथमिक स्रोत: यह ग्रंथ उस समय लिखा गया था जब स्वयं नैणसी दीवान थे — इसलिए इसमें कोई काल्पनिकता नहीं।
- स्थानिक विवरण: शोधकर्ताओं को हर ग्राम/परगना की सूक्ष्म जानकारी मिलती है।
- सांस्कृतिक अध्ययन: लोक जीवन, देवता, जातिगत परंपराएँ, रीति-रिवाजों का सजीव चित्रण
अन्य प्रशासनिक ग्रंथों से तुलना
ग्रंथ | लेखक | तुलना |
---|---|---|
मारवाड़ रा परगना री विगत | नैणसी | संपूर्ण प्रशासनिक दस्तावेज |
आइन-ए-अकबरी | अबुल फजल | मुगल प्रशासन का तुलनात्मक वर्णन |
खालसा रिकॉर्ड (बीकानेर) | स्थानीय दीवान | सीमित परगनागत विवरण |
संरक्षण और आधुनिक अध्ययन
- जोधपुर राज्य अभिलेखागार में इसका हस्तलिखित मूल संरक्षित है
- गोरधनराम भाटी जैसे विद्वानों ने इसका संपादन व प्रकाशन किया
- राजस्थान विश्वविद्यालय व अनेक शोध संस्थान इसे प्राइमरी डॉक्युमेंट मानकर उपयोग करते हैं
निष्कर्ष: राजस्थान का भू-राजनीतिक खजाना
“मारवाड़ रा परगना री विगत” एक ऐसी दुर्लभ रचना है जो हमें राजस्थान के 17वीं सदी के जीवन, शासन, भूमि और लोक परंपराओं की तथ्यपूर्ण झलक देती है।
यह ग्रंथ बताता है कि शासन केवल तलवारों से नहीं चलता, बल्कि गांवों की मिट्टी, किसानों की मेहनत और सामाजिक तानेबाने से ही राज्य बनते हैं।
यदि आपको “जोधपुर रियासत के भू-राजनीतिक विकास”, “प्राचीन कृषि व्यवस्था”, या “राजस्थान की जातीय संरचना” पर शोध करना हो —
तो यह ग्रंथ आपके लिए जीवंत दस्तावेज है।
संदर्भ स्रोत
- मारवाड़ रा परगना री विगत — संपादक: गोरधनराम भाटी
- डॉ. लक्ष्मणसिंह — राजस्थान का प्रशासनिक इतिहास
- जोधपुर अभिलेखागार — हस्तलिखित प्रति
- राजस्थान विश्वविद्यालय शोध ग्रंथावली
- डॉ. एन.डी. राठौड़ — राजस्थान की प्राचीन परगना व्यवस्था