सलूम्बर और कोठारिया

1857 की क्रांति में सलूम्बर और कोठारिया का योगदान

आउवा (जोधपुर) के ठाकुर कुशालसिंह से प्रेरणा लेकर मेवाड़ के दो प्रमुख सामन्तों सलूम्बर के रावत केसरीसिंह और कोठारिया के रावत जोधसिंह, का 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में अपूर्व योगदान रहा है। यह सही है कि मारवाड़ के सामन्तों की भांति मेवाड़ के सामन्तों ने खुलकर क्रांति में भाग नहीं लिया, किन्तु अंग्रेजों का विरोध करने वाले क्रांतिकारी नेताओं तथा ब्रिटिश सत्ता के विरोधी जागीरदारों को सलूम्बर और कोठारिया के रावतों ने अपने यहां शरण दी।

उन्होंने क्रांतिकारियों के परिवारों को भी आश्रय दिया।सलूम्बर के रावत केसरीसिंह ने आस-पास के जागीरदारों को साथ लेकर आउवा के ठाकुर के स्वतंत्रता यज्ञ में भरपूर सहायता की। उदयपुर के महाराणा ने कम्पनी सरकार के साथ जो संधि की, केसरीसिंह ने उसका खुलकर विरोध किया।

ए.जी.जी. लॉरेन्स ने केसरीसिंह की ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों को देखकर महाराणा उदयपुर पर यह दबाब डाला कि वे उसके विरुद्ध कार्रवाई करें, किन्तु महाराणा उसके विरुद्ध कार्रवाई करने का साहस नहीं जुटा सके। अंग्रेजों द्वारा आउवा गांव को तहस नहस कर दिया गया तथा आउवा के ठाकुर कुशालसिंह निरीह अवस्था में इधर-उधर भटक रहे थे, तब कोठारिया के रावत जोधसिंह ने उनको गले लगाया।

उन्होंने कोठारिया में पेशवा नाना साहब और उनके परिवार को भी शरण दी तथा सब प्रकार की सुख-सुविधा उपलब्ध कराई। इस प्रकार ब्रिटिश सत्ता का विरोध कर व भावी परिणामों की चिन्ता न कर सलूम्बर व कोठारिया के रावतों ने अपूर्व त्याग और साहस का परिचय दिया।अगस्त 1858 ई. तक समस्त भारत में विद्रोह कुचल दिया गया।

नवंबर 1858 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत का शासन ब्रिटिश ताज को सौंप दिया। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की ओर से भारत के सभी नरेशों के अधिकारों एवं विशेषाधिकारों को सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया गया। उदयपुर महाराणा ने इसका स्वागत किया और अंग्रेजों के सम्मान में भव्य दावत दी गई।

यद्यपि राजस्थान में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल रहा, परन्तु विप्लव के बाद राजस्थान के परम्परागत ढ़ांचे का स्वरूप बदलने लगा। आधुनिक शिक्षा का प्रसार, नए मध्यम वर्ग का जन्म, प्रशासनिक सेवाओं में जनसाधारण की नियुक्तियां तथा वैश्य समुदाय का सहयोग लिया जाने लगा। इन्हें महत्वपूर्ण पद और विभिन्न प्रकार के संरक्षण देना आदि कुछ इस तरह के कार्य होने लगे, जिससे राजपूतों का महत्व कम होता गया। राजस्थान के नरेश और जागीरदार अब अंग्रेजों पर पूरी तरह से निर्भर हो गए।

सलूम्बर के रावत केसरी सिंह – 1857 की क्रांति के वीर योद्धा

राजस्थान के मेवाड़ अंचल में स्थित सलूम्बर ठिकाना न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में इसके शासक रावत केसरी सिंह का योगदान अविस्मरणीय है। 1857 की क्रांति में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर राजस्थानी स्वाभिमान और देशभक्ति का अद्भुत परिचय दिया।

रावत केसरी सिंह का परिचय

  • नाम: रावत केसरी सिंह
  • ठिकाना: सलूम्बर, मेवाड़ रियासत
  • वंश: राजपूत (सिसोदिया वंश से संबंध)
  • स्वभाव: वीर, विद्रोही, स्वाभिमानी, राष्ट्रभक्त

1857 की क्रांति में भूमिका

1. अंग्रेजों के प्रति विद्रोही रुख
  • जब संपूर्ण भारत में 1857 की आजादी की चिंगारी फूटी, तब रावत केसरी सिंह ने ब्रिटिश सत्ता को खुली चुनौती दी।
  • उन्होंने अंग्रेजों के आदेशों को मानने से इनकार किया और उन्हें राजस्थानी धरती पर अपमानजनक माना।
2. क्रांतिकारियों को समर्थन
  • रावत केसरी सिंह ने ब्रिटिश-विरोधी क्रांतिकारी सैनिकों को शरण दी।
  • उन्होंने अपने ठिकाने से रसद, हथियार और रणनीतिक सहायता प्रदान की।
3. ब्रिटिश गुप्तचर तंत्र की नजरों में
  • ब्रिटिश सरकार को रावत केसरी सिंह की गतिविधियों की भनक लग गई थी।
  • उनके खिलाफ अंग्रेजों ने साजिशें रचीं और उन्हें दबाने के लिए दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।
शहादत और बलिदान
  • रावत केसरी सिंह ने ब्रिटिश सत्ता के सामने झुकने के बजाय युद्ध और बलिदान को चुना।
  • उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर 1857 की क्रांति को मेवाड़ की मिट्टी में जीवंत कर दिया।
  • उनका बलिदान आज भी सलूम्बर और आसपास के क्षेत्रों में गौरवगाथा के रूप में याद किया जाता है।
ऐतिहासिक महत्व
  • रावत केसरी सिंह को राजस्थान के उन पहले ठिकानेदारों में गिना जाता है जिन्होंने 1857 की क्रांति में सक्रिय भागीदारी निभाई।
  • उनके बलिदान से प्रेरित होकर कई अन्य मेवाड़ी ठिकाने भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए।

रावत केसरी सिंह न केवल सलूम्बर के गौरव थे, बल्कि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के असली सिपाही भी थे। उनका नाम आज भी उस समय के उन सपूतों की सूची में अमर है, जिन्होंने “स्वतंत्रता या मृत्यु” को जीवन का आदर्श बनाया।


1857 की क्रांति में कोठारिया के रावत जोधसिंह का योगदान
– मेवाड़ की माटी का स्वाभिमानी सपूत

परिचय: कोठारिया का वीर योद्धा

राजस्थान के उदयपुर ज़िले में स्थित कोठारिया ठिकाना का 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान रहा। इस ठिकाने के शासक रावत जोधसिंह ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध विद्रोह कर राजस्थानी स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।

रावत जोधसिंह का परिचय

विशेषताविवरण
नामरावत जोधसिंह
ठिकानाकोठारिया (उदयपुर रियासत)
वंशसिसोदिया (राजपूत)
प्रकृतिसाहसी, स्वतंत्रता प्रेमी, विद्रोही

1857 की क्रांति में भूमिका

1. ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध बगावत
  • जब देश के अन्य भागों की तरह राजस्थान में भी 1857 की क्रांति की लहर आई, तो रावत जोधसिंह भी इससे अछूते नहीं रहे।
  • उन्होंने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकारने से स्पष्ट इनकार कर दिया।
2. क्रांतिकारियों का समर्थन
  • कोठारिया के रावत जोधसिंह ने मेवाड़ क्षेत्र में क्रांतिकारियों को सैन्य, आर्थिक और रसद सहायता प्रदान की।
  • उनके महल और किले ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के केंद्र बन गए थे।
3. अंग्रेजों से टकराव
  • रावत जोधसिंह की बढ़ती गतिविधियों से अंग्रेज अफसरों में भय उत्पन्न हो गया।
  • अंग्रेजों ने उन्हें धमकियाँ दीं, दबाव बनाया, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए।
  • ब्रिटिश खुफिया दस्तावेजों में उन्हें एक ‘अविश्वसनीय एवं खतरनाक देशभक्त’ माना गया।

बलिदान और प्रेरणा

  • कोठारिया के रावत जोधसिंह ने अंग्रेजों से सीधी टक्कर ली, जिससे उनका ठिकाना ब्रिटिश निशाने पर आ गया।
  • उनके विरुद्ध सैनिक कार्रवाई की गई, लेकिन वे अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहे।
  • उनके बलिदान ने मेवाड़ की राजनैतिक चेतना को प्रेरित किया।

ऐतिहासिक महत्व

  • रावत जोधसिंह को राजस्थान के उन गिने-चुने जागीरदारों में शामिल किया जाता है जिन्होंने न सिर्फ क्रांति का समर्थन किया बल्कि नेतृत्व भी किया।
  • उनका योगदान इस बात का प्रमाण है कि राजस्थानी ठिकाने भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।

रावत जोधसिंह न केवल कोठारिया के शासक थे, बल्कि 1857 की क्रांति के साहसी योद्धा भी थे। उनका जीवन राष्ट्रभक्ति, शौर्य और स्वतंत्रता की प्रेरणा देता है। राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए।

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