1857 की क्रांति में कोटा
राजस्थान के राज्यों में हुई 1857 ई. की क्रांति में कोटा का महत्वपूर्ण स्थान है। कोटा में विद्रोह का मुख्य कारण यह था कि पोलिटिकल एजेन्ट मेजर बर्टन ने कोटा महाराव को यह सलाह दी कि कुछ अफसर वफादार नहीं हैं तथा उनका रवैया अंग्रेज विरोधी हैं। अतः वे ऐसे अफसरों को पदच्युत कर अंग्रेज अधिकारियों को सौंप दें, जिससे उन्हें उचित दण्ड दिया जा सके।
मेजर बर्टन ने जिन अफसरों को सौंपने की मांग की थी, उनमें जयदयाल, रतनलाल, जियालाल आदि प्रमुख थे। मेजर बर्टन द्वारा महाराव को जो सलाह दी गई थी, वह किसी प्रकार महाराव की फौज तथा फौज के अधिकारियों पर प्रकट हो गई। फलस्वरूप फौज के सभी सिपाही क्रोध से पागल हो उठे और उन्होंने मेजर बर्टन से बदला लेने का निश्चयकिया। तदनुसार 15 अक्टूबर 1857 ई. को कोटा के सैनिकों ने क्रांति का बिगुल बजा दिया।
कोटा के सैनिकों ने क्रांतिकारियों के साथ रेजीडेंसी को घेर लिया तथा उसमें आग लगा दी। क्रांतिकारियों ने मेजर बर्टन और उसके दोनों पुत्रों की हत्या कर दी। क्रांतिकारियों ने शहर में जुलूस निकाला और महाराव के महल को घेर लिया। महाराव अपने महल में एक प्रकार से कैद हो गए। फिर क्रांतिकारियों ने महाराव को एक संधिपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया, जिसमें 9 शर्तें थीं। इनमें से एक शर्त यह थी कि मेजर बर्टन तथा उसके पुत्रों की हत्या स्वयं महाराव के आदेश से की गई है। महाराव को क्रांतिकारियों की इच्छानुसार व्यवहार करने के लिए तब तक विवश होना पड़ा, जब तक करौली से सैनिक सहायता प्राप्त नहीं हो गई।
क्रांतिकारियों का कोटा शहर पर लगभग 6 माह तक अधिकार रहा। उन्होंने सरकारी गोदामों, बंगलों, दुकानों, अस्त्र-शस्त्र के भण्डारों आदि को लूटा और उनमें आग लगा दी। उन्होंने जिले के विभिन्न कोषागारों को भी लूटा। ऐसा लगता है कि क्रांतिकारियों को कोटा रियासत के अधिकांश अधिकारियों का समर्थन और सहयोग प्राप्त हो गया था।
क्रांतिकारियों ने शहर में लूटमार और अत्याचार कर नगर के लोगों में भीषण आतंक पैदा कर दिया था। यह स्थिति तब तक बनी रही, जब मेजर एच.जी. राबर्ट्स नसीराबाद से 5500 सैनिक लेकर 22 मार्च 1858 ई. को चम्बल के किनारे पहुंचा। उसने तोपों से क्रांतिकारियों पर धुंआधार गोले बरसाए और उन्हें कोटा से बाहर भागने पर विवश कर दिया। तब जाकर
कोटा क्रांतिकारियों के नियंत्रण से मुक्त कराया जा सका। क्रांतिकारी नेताओं तथा विद्रोही सैनिकों को अमानुषिक दण्ड दिए गए और जयदयाल को गिरफ्तार करके तोप से उड़ा दिया गया।
अन्य राज्यों में क्रांति की गूंज :
राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति केवल मारवाड़, मेवाड़ तथा कोटा तक ही सीमित नहीं रही, अपितु इसकी गूँज राजस्थान के अन्य राज्यों में भी सुनाई दी। भरतपुर, जो आगरा व मथुरा के काफी निकट है, क्रांति के समय अशांत रहा। मथुरा में विद्रोह हो जाने के बाद भरतपुर शहर में उत्तेजना फैल गई और भरतपुर की सेना ने भी क्रांति का बिगुल बजा दिया।
भरतपुर के महाराजा ने वहां के पोलिटिकल एजेन्ट मेजर मॉरिसन को भरतपुर छोड़कर जाने की सलाह दी क्योंकि महाराजा को यह आशंका थी कि उसकी उपस्थिति से नीमच के क्रांतिकारी भरतपुर पर आक्रमण कर सकते हैं। महाराजा की सलाह पर मेजर मॉरिसन भरतपुर छोड़कर चला गया। क्रांति की अवधि में भरतपुर रियासत की स्थिति बड़ी विषम थी।
क्रांतिकारी सैनिकों की अनेक टुकड़ियां भरतपुर की सीमा से होकर गुजरी। भरतपुर की गूजर व मेवाती जनता क्रांति में पीछे नहीं रही, उसने खुलकर क्रांति में भाग लिया। जब पड़ोसी आगरा जिले में अंग्रेजों की शक्ति वहां के लाल किले की चारदीवारी तक सीमित हो गई, तो भरतपुर की जनता के मन में यह विश्वास भर गया कि अब भारत में ‘ब्रिटिश सत्ता’ समाप्त होने जा रही है।
अलवर में भी, दिल्ली के कुछ क्रांतिकारियों के आ जाने के कारण क्रांतिकारी गतिविधियां पनपने लगी थीं। अलवर रियासत के गांवों के गूजरों ने अपने पड़ौसी राज्य भरतपुर की भांति ब्रिटिश विरोधी भावना का खुलकर प्रदर्शन किया। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से शासकों को काफी परेशान किया।
धौलपुर रियासत में भी गम्भीर उपद्रव हुए। अक्टूबर 1857 ई. के प्रारम्भ में ग्वालियर और इन्दौर के क्रांतिकारियों की संयुक्त सेना धौलपुर में प्रविष्ट हो गई। क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति के कारण धौलपुर रियासत की सेना तथा अनेक अधिकारी राजा का साथ छोड़कर क्रांतिकारियों से मिल गए, जिससे धौलपुर की सत्ता खतरे में पड़ गई। क्रांतिकारियों ने धौलपुर में खूब लूटमार की। उन्होंने वहां के राजा को घेरकर जान से मारने की धमकी दी। विवश होकर राजा को क्रांतिकारियों की मांगें स्वीकार करनी पड़ी।
धौलपुर में इन क्रांतिकारियों ने राव रामचन्द्र और हीरालाल के नेतृत्व में राज्य की अधिकांश तोपों पर अधिकार कर लिया और उनकी सहायता से आगरा पर आक्रमण कर दिया। यह स्थिति तब तक बनी रही, जब दिसंबर में पटियाला के शासक द्वारा भेजी गई सेना की सहायता से धौलपुर में व्यवस्था स्थापित नहीं हो गई।
जयपुर में महाराजा को उनके एक पदाधिकारी राव शिवसिंह ने यह सलाह दी कि वे अंग्रेजों तथा मुगल बादशाह बहादुरशाह दोनों से मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखें। किन्तु उनके प्राइवेट सेक्रेटरी पं. शिवदीन ने महाराज पर अंग्रेजों का साथ देने के लिए जोर डाला। जयपुर में नवाब विलायत खाँ, मियां उस्मान खाँ और सादुल्ला खाँ मुगल सम्राट से मिलकर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध क्रांति का षड्यंत्र रच रहे थे। मुगल सम्राट के साथ किए गए इनके पत्र व्यवहार की जानकारी महाराज को मालूम हो गई। अतः उन्होंने सादुल्ला खां को राज्य से निष्कासित कर दिया और शेष दोनों को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया।
टोंक में भी नवाब की सेना ने मीर आलम खां के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। टोंक का नवाब अंग्रेजों के साथ था, मगर नवाब की सेना ने नीमच के क्रांतिकारियों को टोंक आने के लिए आमंत्रित किया और उनकी सहायता से नवाब के किले को घेर लिया। नवाब ने सैनिकों को डराने धमकाने का भरपूर प्रयास किया, किन्तु वह सफल नहीं हो सका।
1857 की क्रांति में कोटा की भूमिका – राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी
भूमिका:
1857 की क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला संगठित प्रयास था। इस क्रांति ने राजस्थान के अनेक राज्यों को भी प्रभावित किया। विशेष रूप से कोटा रियासत में जो विद्रोह हुआ, उसने अंग्रेजी शासन को बुरी तरह चुनौती दी।
कोटा में विद्रोह के कारण
कोटा में विद्रोह के मूल कारणों में से एक था ब्रिटिश एजेंट मेजर बर्टन द्वारा शासक महाराव को यह सलाह देना कि कुछ अफसर अंग्रेज-विरोधी हैं और उन्हें पदच्युत करके अंग्रेजों के हवाले कर दिया जाए। इसमें जयदयाल सिंह, रतनलाल, जियालाल जैसे प्रमुख अधिकारी थे।
यह जानकारी जब सैनिकों तक पहुँची, तो उनमें रोष की लहर दौड़ गई और उन्होंने अंग्रेजों से बदला लेने का निर्णय लिया।
कोटा विद्रोह की शुरुआत – 15 अक्टूबर 1857
- 15 अक्टूबर 1857 को कोटा के सैनिकों ने रेजीडेंसी को घेर लिया और उसमें आग लगा दी।
- मेजर बर्टन और उसके दोनों पुत्रों की हत्या कर दी गई।
- क्रांतिकारियों ने शहर में जुलूस निकाला और महाराव के महल को घेर लिया।
- महाराव को एक संधिपत्र पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया गया, जिसमें लिखा गया कि बर्टन की हत्या महाराव के आदेश से हुई है।
क्रांतिकारियों का शासन – 6 महीने का नियंत्रण
क्रांतिकारियों ने:
- कोटा में स्वतंत्र शासन की स्थापना की
- सरकारी भवन, दुकानें, अस्त्र-शस्त्र भंडार लूटे और जलाए
- शहर में आतंक फैलाया
- जिले के खजानों पर कब्जा कर लिया
अधिकांश प्रशासनिक अधिकारियों ने क्रांतिकारियों का साथ दिया।
अंग्रेजों का पलटवार – कोटा पर पुनः अधिकार
22 मार्च 1858 को नसीराबाद से मेजर एच. जी. रॉबर्ट्स 5500 सैनिकों के साथ चंबल किनारे पहुँचा।
कोटा में:
- तोपों से हमला
- विद्रोही भागने को विवश
- जयदयाल सिंह को पकड़कर तोप से उड़ा दिया गया
अन्य रियासतों में क्रांति की गूंज
भरतपुर
- आगरा और मथुरा के निकट होने के कारण भरतपुर में भारी उथल-पुथल रही
- गूजर व मेवातियों ने सक्रिय भागीदारी की
- मेजर मॉरिसन को रियासत छोड़नी पड़ी
अलवर
- दिल्ली के क्रांतिकारियों के आगमन से गतिविधियाँ तेज हुईं
- गूजरों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध जताया
धौलपुर
- ग्वालियर और इंदौर के क्रांतिकारियों की सेना धौलपुर पहुँची
- सेना और अधिकारियों ने राजा का साथ छोड़ दिया
- राव रामचन्द्र और हीरालाल के नेतृत्व में तोपों पर कब्जा कर आगरा पर हमला किया
जयपुर
- एक ओर राव शिवसिंह ने मुगल व अंग्रेज दोनों से संतुलन की सलाह दी
- दूसरी ओर पं. शिवदीन ने अंग्रेजों का समर्थन किया
- नवाब विलायत खाँ और सादुल्ला खाँ जैसे नेताओं को बंदी बनाया गया
टोंक
- सेना ने मीर आलम खां के नेतृत्व में विद्रोह किया
- नीमच के क्रांतिकारियों को आमंत्रित किया गया
- नवाब की किलेबंदी को घेर लिया गया
राजस्थान में कोटा रियासत की क्रांति 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी। यह विद्रोह न केवल एक राजनीतिक विरोध था, बल्कि यह आत्मसम्मान, स्वराज्य और देशभक्ति की जीवंत मिसाल थी।
जयदयाल सिंह जैसे योद्धाओं की बलिदान गाथा आज भी राजस्थान के शौर्य और स्वाभिमान की प्रतीक है।
उपयोगी FAQs:
Q. कोटा में 1857 की क्रांति का मुख्य कारण क्या था?
मेजर बर्टन द्वारा देशभक्त अफसरों को पकड़वाने की साजिश।
Q. कोटा में विद्रोह कब हुआ?
15 अक्टूबर 1857
Q. जयदयाल सिंह का अंत कैसे हुआ?
उन्हें पकड़कर तोप से उड़ा दिया गया।
Q. राजस्थान के कौन-कौन से राज्य 1857 की क्रांति से प्रभावित हुए?
कोटा, भरतपुर, अलवर, धौलपुर, जयपुर, टोंक आदि।