महाराणा उदयसिंह: उदयपुर के संस्थापक और मेवाड़ की पुनर्स्थापना का इतिहास

महाराणा उदयसिंह का इतिहास

राणा उदयसिंह 1537- 1572 ई.-

महाराणा उदयसिंह द्वितीय राणा सांगा के छोटे पुत्र थे। महाराणा सांगा के सबसे बड़े पुत्र भोजराज थे जिनका विवाह मेड़ता की मीरा बाई से हुआ था इनकी मृत्यु सांगा के शासन काल में ही हो गई थी।

राणा सांगा की मृत्यु के पश्चात् राणा रतनसिंह 1528- 1531 ई. व इनके बद राणा विक्रमादित्य मेवाड़ का शासक बना 1536 ई. में दासी पुत्र बनवीर ने एक दिन रात के समय महाराणा विक्रमादित्य को उनके बिस्तर पर ही मार डाला।

इसके बाद बनवीर उदयसिंह द्वितीय को मारने के लिए गया लेकिन पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर उदयसिंह को बचाया। मेवाड़ का प्रथम पितृहंता उदा था मेवाड़ का दूसरा पितृहंता बनवीर हुआ।

अब मेवाड़ पर बनवीर का शासन हो गया। महाराणा उदय सिंह को लेकर पन्नाधाय कुम्भलमेर पहुंची यहां के किलेदार आशा देवपुरा ने उदयसिंह को अपने पास सुरक्षित रखा।

1537 ई. में कुंभलगढ में उदयसिंह को मेवाड़ राज्य का स्वामी मानकर सरदारों ने राज्याभिषेक कर दिया। उदयसिंह ने मेवाड़ी सरदारों की सहायता से चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया इस युद्ध में बनवीर मारा गया।

1540 ई. में उदयसिंह मेवाड़ के शासक बने। 4 वर्ष तक बनवीर ने मेवाड़ पर शासन किया। 9 मई,1540 ई. को कुंभलगढ के कटारगढ़ के बादल महल में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ ।

1559 ई. में महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर की नींव रखी। जोधपुर के 100 वर्षों के बाद उदयपुर शहर बसा 1459 ई. में राव जोधा ने जोधपुर को बसाया। उदयसिंह द्वितीय ने उदयसागर झील का निर्माण करवाया।

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महाराणा उदयसिंह और अकबर के संघर्ष :-

महाराणा उदयसिंह द्वितीय और अकबर के बीच संघर्ष का संबंध मुख्यतः चित्तौड़गढ़ और मेवाड़ की स्वतंत्रता से है। यह संघर्ष अकबर के भारत में साम्राज्य विस्तार की नीति और मेवाड़ की स्वतंत्रता की रक्षा करने की दृढ़ इच्छा के बीच था।

आइए इस संघर्ष को विस्तार से समझते हैं:- पृष्ठभूमि महाराणा उदयसिंह द्वितीय (1537–1572 ई.) मेवाड़ के शासक थे और राणा सांगा के पुत्र थे। अकबर (1556–1605 ई.) ने मुगल सम्राट हुमायूं के बाद गद्दी संभाली और भारत में मुगलों के साम्राज्य को विस्तार देने की योजना बनाई।

मेवाड़, उस समय भारत का एक स्वतंत्र और प्रतिष्ठित राज्य था, जो मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं कर रहा था।

संघर्ष की शुरुआत :

1. अकबर की चित्तौड़ पर नजर 1567 ई. में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ को घेर लिया। अकबर चाहता था कि मेवाड़ जैसे शक्तिशाली और प्रतीकात्मक राज्य को मुगल अधीन कर दिया जाए ताकि बाकी राजपूत भी आत्मसमर्पण कर दें।

2. महाराणा उदयसिंह की रणनीति उदयसिंह ने प्रत्यक्ष युद्ध की बजाय रणनीतिक रूप से पीछे हटना उचित समझा। वे चित्तौड़ छोड़कर पहाड़ों की ओर गिरवा घाटी चले गए, जहाँ उन्होंने उदयपुर नगर की स्थापना की। उन्होंने चित्तौड़ की रक्षा का जिम्मा अपने सेनापतियों जयमल और फत्ता को सौंपा।

चित्तौड़गढ़ का युद्ध (1567–1568 ई.)अकबर ने चित्तौड़ पर तीन महीने से अधिक घेरा डाले रखा। जयमल और फत्ता जैसे वीर योद्धाओं ने अत्यंत वीरता से रक्षा की। जब किले की स्थिति बिगड़ गई, तब जौहर और शाका हुआ स्त्रियों ने अग्नि में कूदकर जौहर किया। पुरुषों ने अंतिम युद्ध के लिए निकलकर शाका किया।

अंततः अकबर ने किले पर अधिकार कर लिया और लगभग 30,000 नागरिकों की हत्या का आदेश दिया। परिणाम चित्तौड़ अकबर के अधीन आ गया, लेकिन महाराणा उदयसिंह की मेवाड़ की आत्मा जीवित रही। उन्होंने उदयपुर को नई राजधानी बनाया और वहीं से शासन जारी रखा। यह संघर्ष राजपूती स्वाभिमान और स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया

महाराणा प्रताप की भूमिका –

उदयसिंह की मृत्यु 1572 ई. में हुई। उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ संघर्ष को और भी अधिक वीरता और दृढ़ता से आगे बढ़ाया।* हल्दीघाटी का युद्ध (1576 ई.) इसी संघर्ष की अगली कड़ी थी।

निष्कर्ष –

महाराणा उदयसिंह और अकबर का संघर्ष केवल क्षेत्रीय युद्ध नहीं था, बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता बनाम साम्राज्यवाद का प्रारंभिक रूप था। उदयसिंह भले ही चित्तौड़ न बचा पाए, पर उन्होंने मेवाड़ की गरिमा को बचाने की नींव रखी, जिसे उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने आगे बढ़ाया।

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