महाराणा कुम्भा (1433–1468 ई.)
- महाराणा कुम्भा के दादा का नाम राणा लाखा था।
- महाराणा कुम्भा की दादी का नाम हंसाबाई था।
- महाराणा कुम्भा के पिता का नाम महाराणा मोकल था।
- महाराणा कुम्भा की माता का नाम सौभाग्य देवी था।
- महाराणा कुम्भा के ताऊ का नाम चुंडा था।
ऐसा कहा जाता हैं कि जिस समय चाचा और मेरा ने महाराणा मोकल की हत्या की उस समय कुम्भा भी उस शिविर में उपस्थित था, चाचा और मेरा ने कुम्भा पर भी हमला किया था, परंतु वहां उपस्थित सरदार कुम्भा को बचाकर चितौड़ ले आए।
महाराणा मोकल की हत्या के बाद कुम्भा जिस समय मेवाड़ का शासक बना तो उसके सामने दो निम्न समस्याएं थी।
- अपने पिता महाराणा मोकल के हत्यारे महपा पंवार, चाचा और मेरा का दमन करना।
- महाराणा मोकल के मामा रणमल राठौड़ के मेवाड़ पर बढ़ते हुए प्रभाव को कम करना।
महाराणा कुम्भा ने चाचा और मेरा को मारने के लिए एक योजना बनाई। कुम्भा ने मारवाड़ से रणमल राठौड़ को सेना सहित मेवाड़ बुला लिया। कुम्भा ने चाचा और मेरा को मारने के लिए रणमल राठौड़ को भेजा, चाचा और मेरा तो मारे गए लेकिन चाचा का पुत्र अक्का व महपा पंवार जान बचाकर मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी की शरण में चले गए।
महाराणा कुम्भा ने अपने ताऊ चुंडा को पुनः मेवाड़ बुला लिया, मेवाड़ सरदारों ने कुम्भा से कहा कि रणमल द्वारा उच्च पदों पर मारवाड़ के सरदारों को बिठाया गया है। रणमल का मेवाड़ में बढ़ता हुआ हस्तक्षेप से कुम्भा बहुत परेशान होने लगा। कुम्भा इस समस्या से छुटकारा पाना चाहता था।
जब हंसाबाई ने मोकल के संरक्षक के लिए रणमल को मारवाड़ से यहा बुलाया था, तब हंसाबाई की दासी भारमली से रणमल राठौड़ को प्रेम हो गया। इन दिनों इस बात का पता राणा कुम्भा को चला तो कुम्भा ने रणमल को मारने की योजना बनाई। कुम्भा के कहने पर मेवाड़ के सरदारों ने भारमली को अपनी ओर मिला लिया। भारमली जब रणमल राठौड़ के लिए शराब ले जा रही थी, तब मेवाड़ सरदारों ने उसमें जहर मिला दिया। जहरीली शराब पीने के कारण रणमल की मौत हो गई।
चाचा के पुत्र अक्का व महपा पंवार जो मेवाड़ छोड़कर मांडू के सुल्तान की शरण में गए थे, जो कुछ समय बाद मेवाड़ लौट आए और महाराणा कुम्भा से क्षमा याचना की, मेवाड़ की सेवा में लग गए।
अर्बली का युद्ध – अर्बली का युद्ध महाराणा कुम्भा व राव जोधा के मध्य हुआ, जोधा अपने पिता रणमल कि हत्या के समय मेवाड़ में ही था, पिता की हत्या के बाद राव जोधा मेवाड़ से मारवाड़ की तरफ भागा। महाराणा कुम्भा की सेना ने राव जोधा का पीछा किया और जोधा को अर्बली के युद्ध में हारकर पाली, सोजत, मंडोर, लूणकरणसर पर कुम्भा का अधिकार हो गया, राव जोधा ने तब बीकानेर के पास कावनी गांव में जाकर शरण ली।
- महाराणा कुम्भा ने मंडोवर (मंडोर) पर अधिकार कर अपने सरदारों को वहा नियुक्त किया। राव जोधा ने मारवाड़ से दूर रहकर कई बार मंडोर लेने का प्रयास किया, लेकिन जोधा को इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई।
- कुछ वर्षों बाद राव जोधा ने अपनी बुआ ‘हंसाबाई’ के माध्यम से कुम्भा से संधि करने का प्रयास किया, तब मेवाड़ कि राजमाता हंसाबाई ने अपने पौत्र महाराणा कुम्भा से अपने भतीजे जोधा के लिए अभयदान मांगा, कुम्भा ने वचन दिया।
- रणकपुर के शिलालेख के अनुसार महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर, नागौर, गागरोन, नारायणा, अजयमेरू, मंडोर, मांडलगढ़, बूंदी व आबू पर अधिकार कर अपने राज्य का विस्तार किया।
आवल–बावल की संधि (1453 ई .) – मेवाड़ कि राजमाता हंसाबाई की मध्यस्था से मेवाड़ व मारवाड़ के बीच हुई, इस संधि में सीमा निर्धारण इस प्रकार हुआ कि जिस क्षेत्र तक आम – आंवल के पेड़ हों वहा मेवाड़ तथा जिस क्षेत्र तक बबूल के पेड़ हों वहां मारवाड़ का भाग माना गया। आवल – बावल की संधि मेवाड़ के राणा कुम्भा व मारवाड़ के राव जोधा के मध्य 1453 ई. में हुई। इस संधि के बाद राव जोधा को मारवाड़ लौटा दिया गया।
- राव जोधा ने आवल – बावल की संधि के बाद अपनी पुत्री श्रृंगार देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ किया। इसी श्रृंगार देवी ने चितौड़ से 12 मील दूर घोसुंडी बावड़ी का निर्माण करवाया।
- कुम्भा ने अपनी सैनिक शक्ति से आबू, बसंतगढ़, सिरोही, गागरोन व मांडलगढ़ को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। कुम्भा ने बूंदी के शासक को भी कर देने के लिए बाध्य किया।
मेवाड़ मालवा संघर्ष:–
- सारंगपुर युद्ध का कारण –
- महपा पंवार व अक्का महमुद खिलजी के शरण में थे, कुम्भा ने महमूद को पत्र लिखकर दोनों को लौटने को कहा।
- मालवा का सुल्तान दिवंगत होशंगशाह था, उसकी मृत्यु के बाद उतराधिकारी युद्ध हुआ। होशंगशाह के पुत्र उमर खां को गद्दी से हटाकर महमूद खिलजी प्रथम मालवा का सुल्तान बन गया।
- उमर खां मेवाड़ में कुम्भा से सैनिक सहायता प्राप्त करने आया था।
- सारंगपुर युद्ध 1437 ई. – इस युद्ध में महाराणा कुम्भा ने मालवा सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम को हराया था, खिलजी को बंदी बनाकर मेवाड़ लाया गया और 6 माह तक कैद में रखा, फिर रिहा कर दिया। रिहा होकर महमूद खिलजी प्रथम गुजरात के सुल्तान कुतुबद्दीन के पास गया।
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