राजस्थान का प्रथम साका
रणथंभौर का साका –
1301 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर के शासक हम्मीरदेव चौहान पर आक्रमण किया।
अलाउद्दीन खिलजी का रणथंभौर पर आक्रमण का कारण – अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति मीर मुहम्मद शाह एक मंगोल था। अलाउद्दीन खिलजी की बेगम का चिमना था। मुहम्मद शाह बेगम चिमना से प्रेम करता था। बेगम चिमना और मुहम्मद शाह दोनों ने मिलकर अलाउद्दीन खिलजी को मारने का षडयंत्र रचा। लेकिन सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को इस षडयंत्र का पता चल गया।
मुहम्मद शाह व बेगम चिमना दोनों दिल्ली से भागकर रणथंभौर हम्मीरदेव चौहान की शरण में आ गए। हम्मीरदेव चौहान शरणागतों की रक्षा के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करता था। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने हम्मीरदेव चौहान को पत्र लिखा कि ” हम्मीरदेव मेरे मन में आपके प्रति कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है यदि आप शरणागतों (मुहम्मद शाह व बेगम चिमना) को खुद मार दो या उन्हें शाही सेना को सौंप दो तो शाही सेना दिल्ली लोट आएगी”। हम्मीरदेव चौहान अपने वचन का पक्का था।
हम्मीरदेव ने मुहम्मद शाह व बेगम चिमना को अलाउद्दीन को सौंपने से इंकार कर दिया। तब शाही सेना ने रणथंभौर दुर्ग पर घेरा डाला।
- अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर विजय के लिए पहले अपने सेनापति नुसरत खां को भेजा।
- नुसरत खां रणथंभौर दुर्ग की घेराबंदी करते समय हम्मीर के सैनिकों द्वारा दुर्ग से की गई पत्थर वर्षा से वह मारा गया।
- इस घटना से नाराज़ होकर अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं रणथंभौर दुर्ग के लिए शाही सेना लेकर दिल्ली से निकल गया। लम्बे समय तक शाही सेना ने रणथंभौर दुर्ग की घेराबंदी रखी।
- अलाउद्दीन खिलजी ने कूटनीति से हम्मीर के सेनापति रणमल्ल व रतिपाल को बूंदी का परगना इनायत में देने का लालच दिया।
- रणमल्ल व रतिपाल ने लालच में आकर किले के अन्दर खाद्यान्न में हड्डीयां मिलवा कर अपवित्र करवा दिया।
- रणमल्ल व रतिपाल ने लालच में आकर रणथंभौर व अपने स्वामी हम्मीरदेव चौहान के साथ गद्दारी की।
- खाद्यान्न सामाग्री की कमी को देखते हुए हम्मीर देव चौहान ने युद्ध करना उचित समझा।
- 11 जुलाई 1301 ई. को हम्मीरदेव चौहान के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने केसरिया किया।
- हम्मीरदेव चौहान की रानी रंगदेवी तथा हम्मीर की पुत्री देवल दे के नेतृत्व में राजपूत स्त्रियों ने जल जौहर किया। जो राजस्थान का प्रथम जल जौहर था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने विजय के बाद रणथंभौर दुर्ग में स्थित मंदिर व मूर्तियां तोड़ने का आदेश दिया।
- अलाउद्दीन खिलजी की रणथंभौर विजय के बाद अमीर खुसरो ने कहा ” आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया “।
- राजस्थान का प्रथम साका 11 जुलाई 1301 ई. को हुआ।
रणथंभौर युद्ध (1301 ई.): विस्तृत ऐतिहासिक वर्णन
13वीं सदी के अंत में, दिल्ली सल्तनत तेजी से विस्तार कर रही थी और अधिकांश राजपूत रियासतों को अधीन कर चुकी थी।
रणथंभौर का किला उस समय चौहान शासक हम्मीर देव के नियंत्रण में था, जिन्होंने अपनी वीरता, धर्मनिष्ठा और स्वतंत्र नीति के चलते दिल्ली की अधीनता स्वीकार नहीं की।
युद्ध की कालक्रमानुसार घटनाएं:
1299 ई. – विद्रोही मंगोलों को शरण:
- दिल्ली सल्तनत की सेना में शामिल मंगोल सैनिकों ने अलाउद्दीन के खिलाफ विद्रोह किया।
- वे रणथंभौर भाग गए और हम्मीर देव से शरण मांगी।
- हम्मीर ने उन्हें शरण दी और कुछ को सैन्य पदों पर भी नियुक्त किया।
- यह कार्य मुस्लिम सत्ता की दृष्टि से विद्रोह माना गया।
1299–1300 ई. – पहला हमला:
- अलाउद्दीन ने अपने सेनापतियों उलुग खां और नुसरत खां को भेजा।
- दिल्ली सेना ने रणथंभौर पर हमला किया लेकिन हम्मीर देव की वीरता और किले की मजबूती के कारण असफल रहे।
- हमले में नुसरत खां मारा गया।
1301 ई. – अलाउद्दीन का स्वयं नेतृत्व में हमला:
- पराजय से क्रोधित अलाउद्दीन ने स्वयं सेना का नेतृत्व किया और रणथंभौर की घेराबंदी की।
- घेरा महीनों तक चला। किले की जल, भोजन, और अन्य आवश्यकताओं को काट दिया गया।
- जब किले के अंदर स्थिति संकटपूर्ण हो गई, तब हम्मीर देव ने अंतिम युद्ध का निर्णय लिया।
- स्त्रियों ने जौहर किया, और राजपूत वीरों ने केसरिया बाना पहनकर अंतिम युद्ध किया।
- हम्मीर देव युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए।
- अलाउद्दीन ने किले पर कब्ज़ा कर लिया।
रणथंभौर किला: ऐतिहासिक और सामरिक विश्लेषण
बिंदु | विवरण |
---|---|
स्थिति | राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में, पहाड़ी पर स्थित |
निर्माण | प्रारंभिक निर्माण 10वीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा |
सामरिक महत्त्व | ऊँचाई पर स्थित, गगनचुंबी दीवारें, प्राकृतिक सुरक्षा |
विशेषता | अंदर जलाशय, गोदाम, मंदिर, सुरक्षित प्रवेशद्वार |
सुरक्षा | 7 विशाल द्वार, मोटी दीवारें, घुमावदार चढ़ाई |
किले के अंदर | गणेश मंदिर, जैन मंदिर, हम्मीर महल, जल महल |
रणथंभौर युद्ध का ऐतिहासिक महत्त्व:
- यह युद्ध राजपूत अस्मिता और आत्मबलिदान का प्रतीक है।
- हम्मीर देव चौहान वंश के अंतिम स्वतंत्र शासक थे।
- युद्ध के बाद रणथंभौर पर मुस्लिम शासन स्थापित हुआ।
- यह युद्ध दर्शाता है कि एक छोटा किंतु साहसी राज्य भी शक्तिशाली साम्राज्य को चुनौती दे सकता है।
स्मृति और विरासत:
- रणथंभौर किला अब UNESCO विश्व धरोहर स्थल है।
- हम्मीर देव की वीरता पर आधारित कई काव्य रचनाएं प्रसिद्ध हैं:
- हम्मीर रासो
- हम्मीर महाकाव्य
- हम्मीर हठ
रणथंभौर युद्ध केवल एक किले की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह एक राजपूत योद्धा के स्वाभिमान, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा का संग्राम था। हम्मीर देव ने दिखाया कि मृत्यु भी स्वीकार की जा सकती है, लेकिन पराधीनता नहीं।
क्या है “साका”?
साका एक राजपूत परंपरा है, जिसमें जब किसी दुर्ग की रक्षा असंभव हो जाती है, तब स्त्रियाँ जौहर (आत्मदाह) करती हैं और पुरुष योद्धा केसरिया पहनकर अंतिम युद्ध में निकल जाते हैं – बिना वापस लौटने की आशा के। यह स्वाभिमान, आत्मबलिदान और धर्मरक्षा का प्रतीक होता है।
रणथंभौर का साका – पृष्ठभूमि:
- समय: 1301 ईस्वी
- स्थान: रणथंभौर दुर्ग, राजस्थान
- राजा: महारावल हम्मीर देव चौहान
- आक्रमणकारी: अलाउद्दीन खिलजी, सुल्तान, दिल्ली सल्तनत
साका से पहले की घटनाएं:
1. अलाउद्दीन का हमला:
- हम्मीर देव ने दिल्ली के मंगोल विद्रोहियों को शरण दी थी।
- यह बात अलाउद्दीन को नागवार गुज़री, और उसने रणथंभौर पर हमला कर दिया।
2. किले की घेराबंदी:
- कई महीनों तक रणथंभौर को घेरे रखा गया।
- खाद्यान्न, पानी, और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बंद हो गई।
- अंदर स्थिति भयावह होती गई।
रणथंभौर का जौहर:
- जब स्पष्ट हो गया कि किला अब टिक नहीं पाएगा, तब रानी रत्नावली, अन्य रानियाँ, और सैकड़ों राजपूत स्त्रियों ने जौहर कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
- यह धर्म, इज़्ज़त और स्वाभिमान की रक्षा हेतु किया गया अंतिम उपाय था।
- जौहर के समय पूरे किले में शंख-घंटों की आवाज, स्त्रियों की वेदना भरी गूंज, और दीप प्रज्वलित थे।
रणथंभौर का साका:
- जौहर के बाद हम्मीर देव ने केसरिया बाना पहना – भगवा वस्त्र जिसमें मृत्यु निश्चित होती है।
- राजपूत वीरों ने तलवारें उठाई, मातृभूमि की जयघोष की और युद्ध के लिए दुर्ग से निकले।
- अंतिम क्षण तक युद्ध करते रहे, लेकिन अंततः सभी योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए।
ऐतिहासिक उल्लेख:
स्रोत | विवरण |
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हम्मीर महाकाव्य (नयचंद्र सूरी) | जौहर की हृदयविदारक गाथा, हम्मीर की वीरता का चित्रण |
तारीख-ए-फिरोजशाही (ज़ियाउद्दीन बरनी) | अलाउद्दीन के दृष्टिकोण से रणथंभौर विजय का वर्णन |
फतवा-ए-जहाँदारी | रणथंभौर की घेराबंदी और मुसलमान सेना की रणनीतियाँ |
साका के विशेष बिंदु:
बिंदु | विवरण |
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जौहर | सैकड़ों स्त्रियाँ अग्निकुंड में कूदीं |
साका | हज़ारों राजपूत योद्धा आत्मबलिदान के लिए युद्ध में उतरे |
नेतृत्व | स्वयं राजा हम्मीर देव युद्ध में शहीद हुए |
परिणाम | रणथंभौर पर खिलजी का कब्ज़ा, लेकिन राजपूत गौरव अमर हुआ |
स्मृति और विरासत:
- आज भी रणथंभौर दुर्ग में जौहर स्थल को “जौहर कुंड” कहा जाता है।
- वहां स्त्रियों ने जिस शक्ति, त्याग और आत्मबल का प्रदर्शन किया, वह राजस्थानी लोकगीतों, रासों और कविताओं में आज भी जीवित है।
- यह भारत के तीन प्रमुख साकाओं में गिना जाता है:
- चित्तौड़ का साका (1303, 1535, 1568)
- जैसलमेर का साका
- रणथंभौर का साका (1301)
निष्कर्ष:
रणथंभौर का साका भारतीय इतिहास की उन घटनाओं में है जो केवल युद्ध नहीं, बल्कि आत्मगौरव, बलिदान और आत्मरक्षा की अमर मिसाल बन गए। हम्मीर देव और उनके साथियों ने “जीते जी अधीनता नहीं, तो मृत्यु स्वीकार है” की भावना से इतिहास में अपना स्थान अमर कर लिया।