गुहिल वंश में शिलादित्य
1. परिचय
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शिलादित्य गुहिल (गुहादित्य) का पुत्र और उत्तराधिकारी माना जाता है।
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यह 6वीं–7वीं शताब्दी ईस्वी के आस-पास मेवाड़ क्षेत्र में शासन करता था।
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शिलादित्य को गुहिल वंश का दूसरा शासक माना जाता है।
2. ऐतिहासिक प्रमाण
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शिलालेख और स्थानीय ख्यात ग्रंथों में शिलादित्य का उल्लेख मिलता है।
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शिलादित्य के समय में गुहिल वंश धीरे-धीरे मेवाड़ में अपनी सत्ता को संगठित कर रहा था।
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उसके वंशजों ने आगे चलकर चित्तौड़ और आसपास के क्षेत्रों पर मजबूत पकड़ बनाई।
3. कार्य और महत्व
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शिलादित्य ने अपने पिता गुहिल द्वारा स्थापित सत्ता को आगे बढ़ाया।
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उसने मेवाड़ में गुहिल वंश के प्रभाव को सुदृढ़ किया।
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शिलादित्य के उत्तराधिकारियों में नागादित्य और आगे चलकर बप्पा रावल जैसे महान शासक हुए।
शिलादित्य और गुहादित्य: गुहिल/सिसोदिया वंश की आरंभिक कथा
एक किवदंती के अनुसार गुर्जर राज्य में कैहर नामक नगर था, उस नगर में देवादित्य नामक ब्राह्मण व उसकी पुत्री सुभागा देवी रहती थी, जिस सुभागा का विवाह होना था उसी रात को वो विधवा हो गई, तब उसके गुरु ने उसे बीजमंत्र की शिक्षा दी और कहा कि सुभागा जब भी तुम इस मंत्र का उच्चारण करोगी तो सूर्य भगवान प्रकट होंगे। एक दिन सुभागा से अचानक बीजमंत्र का उच्चारण हो गया, जिससे सूर्य भगवान प्रकट हुए और सुभागा गर्भवती हो गई।
जब सुभागा के गर्भवती होने की बात उसके पिता देवादित्य को पता चली तब उसने समाज और लोगों के डर से सुभागा को वल्लभीपुर भेज दिया। वल्लभीपुर में रहते हुए सुभागा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जब धीरे धीरे वो बड़ा हुआ तो वो खेलने जाता, जहा भी वो खेलने जाता तो उसके मित्र उस उसके पिता का नाम पूछते और उसे अपमानित करते थे।
एक दिन वह अपनी मां के पास आया और पूछा की मां मेरे पिता कोन है तभी वहा सूर्य भगवान प्रकट हुए, उन्होंने उस बच्चे को सारी बात बताई और उसे एक पत्थर का टुकड़ा दिया और कहा कि इस पत्थर के टुकड़े को हाथ में रखकर तुम किसी को भी छुओगे तो वह तत्काल गिर जाएगा। उसी पत्थर की सहायता से उसने वल्लभीपुर के राजा को हराकर वहा का शासक बन गया, उसी समय से उसे शिलादित्य के नाम से जाना जाने लगा।
शिलादित्य के समय 524 ई. में विदेशियों का आक्रमण हुआ, उस आक्रमण में विदेशियों ने वल्लभी नगर को नष्ट कर दिया । जब वल्लभी नगर पर आक्रमण हुआ तब शिलादित्य की पत्नी गर्भवती थी। आक्रमण के समय शिलादित्य की पत्नी पुष्पावती पुत्र की मनौती के लिए अपने परमार वंशीय पिता के राज्य चंद्रावती (आबू) में जगदम्बा के दर्शन करने गई थी। पुष्पावती को वापिस वल्लभी जाते समय आक्रमण का समाचार मिला, तो पुष्पावती ने सती होना चाह लेकीन गर्भवती होने के कारण सती होना संभव नहीं था। पुष्पावती ने सहेलियों के साथ “माव्लेया नामक गुफा” में शरण लेकर अपने पुत्र “गोह/गुहेदत “को जन्म दिया, जो आगे चलकर गुहिल के नाम से विख्यात हुआ।
माव्लेया नामक गुफा के पास एक वीरनगर नामक गांव था, जिसमें कमलावती नाम की ब्राह्मणी रहती थी, रानी पुष्पावती ने अपने पुत्र का दायित्व कमलावती को सौंपकर सती हो गई। बालक गुफा में पैदा हुआ था इसलिए कमलावती ने उस बालक का नाम “गोह” रखा जो आगे चलकर गुहिल के नाम से विख्यात हुआ।