मेवाड़ का गुहिल वंश | मेवाड़ का इतिहास

                    गुहिल वंश 

मेवाड़ का गुहिल वंश


  • गुहिल वंश का संस्थापक गुहिल / गुहेदत / गोह था।
  • गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल था 
  • शिवि - उदयपुर राज्य का प्राचीन नाम किवी/शिवि भी रहा है। जिसकी राजधानी मध्यमिका ( वर्तमान नगरी ) थी।
  • मेदपाट - यहा मेद जाति का अधिकार था, यहां के शासक हमेशा मलेच्छो से संघर्ष करते रहे, इसलिए इस देश को मेद की संज्ञा दी गई, और उसे मेदपाट (मलेच्छो को मारने वाला) कहा जाने लगा।
  • क्षेत्र - चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, राजसमंद, उदयपुर तथा इसके आस पास का क्षेत्र मेवाड़ कहलाता था।
  • मेवाड़ की आरंभिक राजधानी नागदा थी।
  • मेवाड़ की राजधानियों का क्रम - नागदा, आहड़, चितौड़गढ़, कुम्भलगढ़, चावंड, उदयपुर।
  • राजस्थान में राजपूतों के सभी वंशो में मेवाड़ का गुहिल/ सिसोदिया वंश सबसे प्राचीन (566-1947ई.) है।
  • उदयपुर (मेवाड़) के प्राचीन नाम शिवि, प्राग्वाट, मेदपाट आदि रहे हैं। मेवाड़ क्षेत्र प्राचीन समय में मेद/मेव या मेर जाति का अधिकार होने पर इसका नाम मेवाड़ (मेदपाट) पड़ा। जब से राणा उदयसिंह ने उदयपुर को बसाया तब से इसे उदयपुर राज्य के नाम से भी जाना जाता है।
  • पूरे भारत में जितने भी राजवंश हुए हैं उनमें से में सबसे गौरवपूर्ण इतिहास मेवाड़ या उदयपुर राजवंश का रहा है।
  • एक छोटे से राज्य ने जितने वर्षो तक अपने से अधिक ताकतवर और सम्पन साम्राज्य का जिस वीरतापूर्ण सामना किया है, इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं।
  • यह राजवंश ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में एक ही राज्य पर शासन करने वाला सबसे प्राचीन राजवंश है।

  • भगवान रामचंद्र के पुत्र कुश के वंशजों मे से 566 ई. में मेवाड़ में गुहादित्य (गुहिल) नाम का प्रतापी राजा हुआ, जिसने गुहिल वंश की नीव मेवाड़ में रखी।
  • 566 ई. से लेकर राजस्थान के निर्माण तक इसी राज्य पर शासन किया। इतने अधिक समय तक एक ही प्रदेश पर शासन करने वाला विश्व का एकमात्र राजवंश गुहिल/सिसोदिया राजवंश है।
  • जब भारत पर मुगलों का अधिकार हुआ तब तत्कालीन अधिकांश राजाओं ने मुगलों की अधिनता स्वीकार कर ली, लेकीन मेवाड़ के महाराणाओ ने कितने भी दुःख झेले लेकीन अपने राज्य को स्वतंत्र रखा और अपने कुल की रक्षा की।
  • इसी कारण से आज भी मेवाड़ के महाराणा को 'हिंदुआ सूरज ' कहलाते है।
  • जब मेवाड़ ने मुगलों की अधिनता स्वीकार कर ली तब भी कभी मेवाड़ के महाराणा मुगलों के दरबार में नहीं गए। ना ही मेवाड़ के महाराणा ने मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये।
  • उदयपुर राजवंश के राज्य चिन्ह में अंकित पंक्तियां " जो दृढ़ राखै धर्म को, तिहि राखै करतार" ।
  • मेवाड़ राज्य के इतिहास की जानकारी गुहिल / गुहादित्य के काल से प्रारंभ होती है।
  • एकलिंगजी (शिवजी) :- मेवाड़ के शासकों के कुल देवता एकलिंगजी (कैलाशपुरी) हैं। इन्हें मेवाड़ का वास्तविक शासक माना जाता है। मेवाड़ में एकलिंगजी का मंदिर बप्पा रावल ने बनवाया।
  • आसका लेना :- उदयपुर के शासकों द्वारा स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानकर राजधानी छोड़ने से पूर्व उनकी स्वीकृति लेना।
  • बायण माता - मेवाड़ के शासकों की कुलदेवी बायण / बाणमाता है।
  • रक्ततिलक - मेवाड़ राजाओं के सिंहासनरोहण के समय उन्दरी गांव ( ईडर ) का भील राजा अपने अंगूठे के रक्त से तिलक करता था।

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