बीसलदेव चौहान/ विग्रहराज चतुर्थ – (1158–63)
1158 ई. बीसलदेव चौहान ने अपने भाई जगदेव चौहान को पराजित कर अजमेर पर अधिकार कर लिया।
इन्होंने कुमारपाल से पुनः नागौर, पाली, जालौर को विजित किया।
कुमारपाल के सामंत सज्जन जो चितौड़ पर शासन कर रहा था उसे पराजित कर चितौड़ को अपने सम्राज्य में मिलाया।
चौहान वंश के प्रथम राजा जिन्होंने दिल्ली के तोमर वंश के राजा तंवर को पराजित कर दिल्ली को अपने सम्राज्य में मिलाया।
बीसलदेव चौहान को “ कविबांधव ” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह कवियों तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे।
बीसलदेव चौहान को कविबांधव जयानक कृत पृथ्वीराज विजय में कहा गया है।
बीसलदेव चौहान के दरबार में निम्न विद्वान थे –
1. सोमदेव – ललित विग्रहराज (ग्रन्थ)
2. नरपति नाल्ह – बीसलदेव रासौ (ग्रन्थ)
बीसलदेव चौहान स्वयं एक विद्वान थे इन्होंने “ हरिकेली नाट्य ” की रचना की।
हरिकेली नाट्य – रचना – बीसलदेव / विग्रहराज चतुर्थ। उल्लेख – महाभारत कालीन भगवान शिव (किरात अवतार) व अर्जुन के मध्य संवाद का उल्लेख इसमें मिलता है।
हरिकेली नाटक के पंक्तियों का उल्लेख निम्न स्थानों पर किया गया है – 1. राजाराम मोहन राय स्मारक – ब्रिस्टल (इंग्लैंड) 2. संस्कृत पाठशाला – अजमेर
बीसलदेव चौहान ने थार प्रदेश की संस्कृत पाठशाला की तर्ज पर अजमेर में “ सरस्वती कंठाभरण पाठशाला ” का निर्माण करवाया।
संस्कृत पाठशाला को कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1198 ई. में ध्वस्त करवाकर ढाई / अढ़ाई दिन का झोपड़ा बनवाया।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा –
इसका वास्तविक रूप यह 16 खम्भो की एक मीनार है। इस झोपड़े का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक 1198 ई. में करवाया था। अढ़ाई दिन का झोपड़ा का वास्तुकार अबू बकर था। सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहा था।
नोट:– बीसलदेव चौहान ने दिल्ली विजय के बाद विग्रहराज चतुर्थ की उपाधि ग्रहण की।
- बीसलदेव चौहान ने दिल्ली में 1163 ई. में शिवालिक स्तंभ का निर्माण करवाया।
- बीसलदेव चौहान ने पशु वध पर प्रतिबंध लगाया था।
- बीसलदेव चौहान ने टोंक में बीसलपुर नगर बसाया व वहा पर बीसलपुर बांध का निर्माण करवाया।
- बीसलपुर बांध परियोजना वर्तमान में टोंक में कार्यरत हैं।
- नोट:– किलहोर्न नामक विद्वान ने बिसलदेव की तुलना कालीदास व भवभूति से की। भवभूति का ग्रन्थ मालती माधव हैं।
- बीसलदेव के दो पुत्र थे – 1. नागार्जुन 2. अपरगराय
- दशरथ शर्मा ने बीसलदेव चौहान के शासनकाल को चौहान वंश का स्वर्णकाल कहा है।
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